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बढ़ते अतिक्रमण से मिटने लगा नदियों का अस्तित्व, कई लोगों ने बना दिये घर

नदियों के किनारे लगातार बढ़ रहे अतिक्रमण की वजह से इसका अस्तित्व मिटने के कगार पर है. बखरी अनुमंडल इलाके से गुजरने वाली छोटी बागमती नदी के दोनों किनारे नदियों का अतिक्रमण बदस्तूर जारी है.

बखरी. नदियों के किनारे लगातार बढ़ रहे अतिक्रमण की वजह से इसका अस्तित्व मिटने के कगार पर है. बखरी अनुमंडल इलाके से गुजरने वाली छोटी बागमती नदी के दोनों किनारे नदियों का अतिक्रमण बदस्तूर जारी है. ससमय अगर इसे नहीं रोका गया तो इससे बाढ़ का ही खतरा नहीं, बल्कि पर्यावरण को भी जबरदस्त नुकसान होने वाला है. हालात ऐसे हो गए हैं कि कई पक्के मकान तक नदियों में पिलर खड़े कर बना दिए गए हैं. वहीं लोग ने घरों के गंदे पानी और शौचालय की गंदगी को भी नदी में गिराने से परहेज नहीं कर रहे हैं.इतना कुछ होने के बाद भी इस पर अंकुश लगाया नहीं जा रहा है. स्थानीय जिला परिषद सदस्य घनश्याम राय, उपमुखिया हुसैन खलीफा, पूर्व मुखिया मो अब्दुल हलीम, अमरजीत कुमार, निलेश कुमार, संतोष सावन, संजीत कुमार महतो, पप्पू खलीफा, पंसस विद्यानंद ठाकुर, गढ़पुरा प्रखंड के मौजी हरि सिंह मुखिया दिलीप राम,सरपंच नागो राम, इमादपुर अनुज कुमार, समाजसेवी संदीप कुमार आदि ने बताया कि नेपाल से निकलकर बिहार के कई जिलों के रास्ते होते हुए दरभंगा के सुपौल व कुशेश्वरस्थान मध्य से होकर बहने वाली बागमती नदी की पुरानी धार को बखरी में अतिक्रमण की शिकार बन गयी है. हालत यह कि अब इसके अस्तित्व पर ग्रहण उत्पन्न् हो गया है. यह समस्तीपुर जिला के बिथान,बेगूसराय जिला के बखरी अनुमंडल अंतर्गत गढ़पुरा,सोनमा,चकहमीद,शकरपुरा होते हुए खगड़िया के बहादुरपुर,छिलकौड़ी,जोगिया,सहसी के साथ संतोष गेट जाकर मिल जाती है.जो आगे चलकर उक्त नदी कोसी नदी में समाहित हो जाती है.तत्पश्चात बदला घाट व धमारा स्टेशन के नजदीक से निकलकर डुमरी के रास्ते से नवगछिया व कुर्सेला के गंगा तथा कोसी के संगम में मिल जाती है.बताया कि जहां नदी में कई जगह काले पानी की वजह से प्रदूषित हो गयी है तो कई जगहों पर नदी नाले में तब्दील होकर रह गई है.कई इलाकों में नदी का निशान तक नहीं दिखता है तो कई इलाकों में नदी की धार को अतिक्रमित कर लिया गया है.जिसके कारण लोगों द्वारा मौके का फायदा उठाकर मकान तो कही मेड़ बना दिया गया. बताते चलें कि पुरानी धार पूर्व में बागमती नदी के नाम से जानी जाती थी.बताया कि वर्ष 1934 के भूकंप में नदी की धार दो भागों में बंट गई थी.मुख्य भाग को बागमती और सहयोगी भाग को छोटी बागमती व मनुषमारा का नाम मिला.इधर,कुछ सालों पूर्व एक बार फिर से बागमती ने अपनी पुरानी धार बदली.लेकिन प्रचंड गर्मी,नियमित रूप से साफ सफाई,सहयोग नहीं मिलने से नदी का पानी पुनः सुख गया.जिसके कारण कई जगहों पर स्थानीय लोगों ने मिट्टी काटकर मटखुनमा दिया.वही बरसात के दिनों में बागमती नदी की पुरानी धार में जलप्रवाह रहता है.शेष दिनों में यह धार गुम हो जाती है. सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ता संजीत कुमार महतो बताते हैं कि कभी बागमती पुरानी धार की धाराओं से हजारों हेक्टेयर खेत में सिंचाई होती थी.नदी के पानी से फसल लहलहाते थे.लेकिन,आज यही नदी पूरी तरह उपेक्षित है.बताते हैं कि सरकार नदी से नदी जोड़ो,जल,जीवन और हरियाली जैसी महत्वाकांक्षी योजना चला रही है.इसके तहत नदी,तालाब,पोखर,नाहर,कुआं और पइन का जीर्णोद्धार कराने की योजना पर काम कर रही है.लेकिन,बखरी अनुमंडल क्षेत्र में छोटी बागमती के पुरानी धार की धाराओं को पुर्नजीवित करने या अतिक्रमण मुक्त कराने की दिशा में कोई पहल तक नहीं की जा रही है. किसान बताते हैं कि अगर पुरानी धार की धाराओं को पुर्नजीवित कर दिया जाता तो किसानों की सिंचाई की समस्याओं के निदान से मुक्ति मिल जाती.बताते हैं कि संरक्षण और संवर्द्धन के अभाव में नदी के अस्तित्व पर ग्रहण उत्पन्न हो गया है.

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