सात हजार से लेकर 40 हजार रुपये तक के बिके बकरे, पूरे दिन बकरे की बाजार में दिखी रौनक

जिले में ईद-उल-अजहा यानी बकरीद सोमवार को मनाई जा रही है.बकरीद की पूर्व संध्या पर बकरीद को लेकर बाजारों में विशेष चहल पहल दिखी.

By Prabhat Khabar News Desk | June 15, 2024 10:02 PM

बेगूसराय. जिले में ईद-उल-अजहा यानी बकरीद सोमवार को मनाई जा रही है.बकरीद की पूर्व संध्या पर बकरीद को लेकर बाजारों में विशेष चहल पहल दिखी.बाजार सज-धज कर तैयार है. ईदगाह सहित जिले के सभी मस्जिदों में नमाज अदा करने की तैयारियां पूरी हो चुकी है.कचहरी चौक स्थित मस्जिद के पास शहर की सबसे बड़ी बकरों की मंडी लगी है.बकरों की जमकर बिक्री चल रही है. बकरीद को लेकर सात हजार रुपये से लेकर 35 हजार रुपये तक बकरों की बिक्री की गयी.वहीं एक दो बकरे 42 हजार रुपये से अधिक की कीमत पर बिकने की भी चर्चा है.वहीं बाजार में नमाज के लिए दुकानों पर डिजाइनदार टोपियां सज गई हैं.कढ़ाई वाली,कुरशिये की व बुकरम लगी टोपियां भी बाजार में हैं. महिलाओं के लिए चिकन कुर्ते व सलवार सूट और पुरुषों के लिए कुर्ते,पायजामों,पठानी सूट, स्कार्फ (बड़े रूमाल) की बिक्री भी जारी है. पिछले साल की अपेक्षा इस साल बकरों के दामों में कमी देखी गयी.वहीं कुछ बकरा व्यापारी ने बताया कि कीमत पूर्व के वर्ष की भांति ही है.औसत दर्जे का बकरा जो पिछले साल 9 हजार रुपये का था, उसकी कीमत इस वर्ष 8 हजार रुपये हो गयी.व्यापारियों को बकरों के भावों में तेजी आने की उम्मीद नही है. बकरा हाट व्यपारी मोहम्मद शहादत, मो महफूज,मो शमीम,मो अफरोज आदि ने बताया कि इस साल बकरों की कीमत में कमी का कारण अधिक संख्या में बकड़े का बाजार में आ जाना है. बकरीद को अरबी में ईद-उल-अजहा कहा जाता है.मुस्लिम धर्मावलंबियों का कहना है कि इस दिन हजरत इब्राहिम साहब अपने बेटे हजरत इस्माइल को खुदा के हुक्म पर कुर्बान करने जा रहे थे. अल्लाह ने उनके प्राण प्रिय बेटे को जीवनदान दे दिया और कुर्बानी के लिए भेड़ को पेश कर दिया.उसी वाकया के यादगार के तौर पर ये त्योहार कुर्बानी के रूप में मनाया जाता रहा है.ईद-उल-अजहा पर ही हज का मुबारक महीना होता है.इस माह में मुसलमान हज करने के लिए मक्का मदीना जाते हैं.मुस्लिम धर्मावलंबी के अनुसार यह कुर्बानी हर उस शख्स पर फर्ज है, जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी या इन दोनों में से किसी एक के बराबर मालियत हो.जिस जानवर की कुर्बानी दी जा रही हो वह साल भर का हो और शरीर के किसी हिस्से में कोई चोट न हो.बीमार जानवर की कुर्बानी नहीं की जाती है.कुर्बानी के तीन बराबर के हिस्से किए जाते हैं.एक हिस्सा अपने पास, दूसरा हिस्सा अजीजों को, तीसरा हिस्सा गरीबों को दिया जाता है.यह कुर्बानियां तीन दिन तक होती हैं.

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