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ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे सरल व उत्तम साधन है प्रेम : साध्वी प्राची

ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे सरल व उत्तम साधन प्रेम है, जहां प्रेम है वहीं ईश्वर है. मनुष्य चाहे जितना भी जप, तप, दान कर लें लेकिन ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता.

By Prabhat Khabar News Desk | July 10, 2024 9:31 PM

बछवाड़ा. ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे सरल व उत्तम साधन प्रेम है, जहां प्रेम है वहीं ईश्वर है. मनुष्य चाहे जितना भी जप, तप, दान कर लें लेकिन ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता. प्रेम ही एक ऐसा मार्ग है जिस पर चलकर मनुष्य भगवान की कृपा प्राप्त कर सकता है. उक्त बातें मध्य प्रदेश के जबलपुर से पधारी कथावाचिका साध्वी प्राची ने बुधवार को प्रखंड मुख्यालय पंचायत रानी एक स्थित राम जानकी ठाकुरवाड़ी झमटिया के प्रांगन में आयोजित नौ दिवसीय श्री विष्णु महायज्ञ के चौथे दिन श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कही. उन्होंने कहा सतयुग,द्वापर व त्रेता युग में भगवान ने पृथ्वी पर मनुष्य रुप में अवतार लेकर मनुष्य को अपने कर्म,प्रेम व त्याग की भावना को सिखाने का काम किया था. उस समय भी देव, मनुष्य व दानव हुआ करते थे, आज भी मनुष्य के साथ दावन मौजूद हैं. जो मनुष्य दुसरे के अधिकार को अपनी ताकत के बल पर हासिल कर लें,मनुष्य को विभिन्न प्रकार के कष्ट दे,भोजन में मांस मदिरा का प्रयोग कर पराये स्त्री को जबरन अपने अधिकार में कर लें वही मनुष्य दानव कहलाता है. जो मनुष्य समाज के हर वर्ग के लोगों के साथ समान भाव रखकर प्रेम करें,दुसरो के दुख को अपना दुख समझे, समाज के कल्याण के लिए हमेशा तत्पर रहे वह मानव कहलाता है. भगवान श्री कृष्ण भागवत में कहा है कि कर्म के आधार पर मनुष्य को फल की प्राप्ति होती है जो मनुष्य अपने जीवन में जैसा कर्म करता है उन्हें उसी के हिसाब से फल की प्राप्ति होती है. इसलिए मनुष्य को हमेशा नि:स्वार्थ रुप से कर्म करना चाहिए. उन्होंने कहा भक्त प्रहलाद दानव कुल में जन्म लेने के बावजूद श्री नारायण का भक्त था और उसने लाख परिस्थिति के बाद भी भक्ति को अपना कर्म मानकर भक्ति करता रहा, जबकि उसके पिता हिरण्यकश्यप के द्वारा विभिन्न प्रकार के यातनाएं दी गयी, जिससे भक्ति छोड़कर वो अपने पिता को ही भगवान मान लें. लेकिन परिणाम क्या हुआ भगवान को नरसिंह रूप में अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का बंध करना परा. उन्होंने कहा आज संसार में जो भी रत्न है वो सब देव व दानव के द्वारा समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुआ, साथ ही देवताओं को अमृत की प्राप्ति हुई. ये संसार भी एक समुद्र के समान है जिसे मंथन करने की आवश्यकता है जो मनुषृय इस संसार रूपी समुद्र का मंथन कर लेता है उसे विकास प्राप्त होता है, वो मनुषृय अपने विकास के कर्म से आगे बढ़ता रहता है और उसे ईश्वर की कृपा हमेशा प्राप्त होते रहता है. मौके पर भागवत कथा के मुख्य आचार्य संजय कुंवर सरोवर, ममता देवी, पंडित अरविंद झा, पंकज राय, कन्हैया कुमार,हरे राम कुंवर, संजीत कुमार, नवीन राय, चमरू राय, सागर कुंवर, भोला महतो, प्रमेश्वर महतो, रामाशीष महतो, खाखो यादव समेत यज्ञ समिति के अध्यक्ष रविंद्र राय, सचिव आनंद कुंवर, कोषाध्यक्ष मंगल देव कुंवर एवं संतोष कुंवर, मनोज कुमार राहुल, टिंकू कुमार व झमटिया, नारेपुर गांव के अन्य ग्रामीण मौजूद थे.

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