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सौर उर्जा से फसलों में लगे रोगों का नियंत्रण

सौर उर्जा का प्रमुख वाहक फसलों के अधिक लाभ का जरिया बनेगा. नरकटियागंज कृषि विज्ञान केद्र में तापमान को सौर उर्जा को सौरीकरण कार्य में बदल कर किसानों को लाभ पहुंचाने की जुगत में हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | May 13, 2024 7:12 PM

सतीश कुमार पांडेय, नरकटियागंज . गर्मी की तपिश जहां आम आवाम को प्रभावित कर रही है, वही आग का गोला बना सूरज अब जिले के किसानों के लिए अक्षय उर्जा का प्रमुख श्रोत बनने वाला है. अगर टेंपरेचर 40 से ऊपर या फिर इसके आसपास है तो यह किसानों के लिए वरदान बनने वाला है. यहीं तापमान सौर उर्जा का प्रमुख वाहक फसलों के अधिक लाभ का जरिया बनेगा. नरकटियागंज कृषि विज्ञान केद्र में तापमान को सौर उर्जा को सौरीकरण कार्य में बदल कर किसानों को लाभ पहुंचाने की जुगत में हैं. इसको लेकर जहां विज्ञान केन्द्र में वैज्ञानिक सौर उर्जा का डेमो कर किसानों को जागरूक कर रहे हैं. वही आसमान से आग के गोले बरसा रहे सूरज की गर्मी को लाभ में कैसे बदला जाय, इस दिशा में कार्य जारी है. कृषि विज्ञान केन्द्र के वरीय वैज्ञानिक डा. आरपी सिंह ने बताया कि गर्मी के मौसम में (मई-जून) में जब तापमान 40 डिग्री सेन्टीग्रेट के आस-पास हो या इससे ऊपर पहुंच जाय तो उस समय सौर ऊर्जा का उपयोग सर्वथा उपयुक्त माना जाता है. पौधरोपण या बीज की बुवाई से पूर्व 4-6 सप्ताह तक पारदर्शी प्लास्टिक की चादर जिसकी मोटाई 25 माइक्रोमीटर तथा चैड़ाई 3 मीटर से ढ़क दें. ऐसा करने से प्लास्टिक चादरें सूर्य की ऊर्जा को अवशोषित करती हैं, जिससे मृदा का तापमान 50 डिग्री सेन्टीग्रेट से अधिक हो जाता है, जिसके कारण मृदा में उपस्थित रोगाणु-कीटाणु, कीट पतंगे उनके लार्वा, अण्डे, कृमिकोष तथा खरपतवार आदि नष्ट हो जाते हैं. यह विधि फलों एवं सब्जियों की पौधशाला में लगने वाले रोगों व कीटों के बचाव के लिए अधिक लाभकारी सिद्ध होगी. फसलों के उत्पादन को प्रभावित करने वाले रोग सूत्र कृमि व खरपतवार जैसे-धान के कंडुआ रोग, उकठा रोग (टमाटर, आलू, बैंगन, खरबूजा, तरबूजा, अमरूद, प्याज, चना, मटर, अरहर में), ब्लैक स्कर्फ रोग (चना, मटर, अमरूद), पौध गलन (सभी सब्जियों वाली पौध में व फली वाली फसल में), जड़ विगलन (सजावटी पौधों में, मूंगफली में, ग्वार में), जड़ ग्रन्थ सूत्र कृमि (बैंगन, कद्दूवर्गीय सब्जियों, अरहर, चना, टमाटर), सेहूं सूत्रकृमि (गेंहू), मोल्या सूत्रकृमि (जौ), गेंहूं का मामा (गेंहूं), जंगली जई (विभिन्न फसलों में) तथा हानिकारक कीटों के लार्वा, कृमिकोष आदि तेज धूप से नष्ट हो जाते हैं. सौर ऊर्जा का उपयोग बीज सौरीकरण करके बीज जनित बीमारियों जैसे-गेंहूं, धान, जौ का कण्डुआ रोग, गेंहूं का झुलसा रोग, धान का जीवाणु झुलसा, गेंहूं का सेंहूं रोग, धान का सफेद टिप पत्ती रोग, धान का अफरा रोग, चने का बीजसड़न, जड़ सड़न आदि से बचाया जा सकता है. इसके लिए मई-जून के महीने में जब कड़ी धूप हो तो फर्श पर अच्छी तरह सूखाकर रखें. अगले वर्ष बुवाई से पूर्व बीज का शोधन कार्बोक्सिन या कार्बोक्सिन 37.5 फीसदी थायरम 37.5 फीसदी की 2 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से करें.

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