बिहार उत्तर प्रदेश बांसी धाम पर श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी, किया दान पुण्य
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यूपी-बिहार की सीमा पर स्थित प. चंपारण के बगहा पुलिस जिला के बांसी में शुक्रवार की सुबह आयोजित ऐतिहासिक नहान मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने बांसी नदी में पवित्र डुबकी लगाई.
बांसी धाम नदी. कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यूपी-बिहार की सीमा पर स्थित प. चंपारण के बगहा पुलिस जिला के बांसी में शुक्रवार की सुबह आयोजित ऐतिहासिक नहान मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने बांसी नदी में पवित्र डुबकी लगाई. श्रद्धालुओं ने स्नान और पूजा-अर्चना करने के बाद गोदान किया. इस वर्ष मेले में पिछले वर्षों की तुलना में अधिक श्रद्धालुओं की उपस्थिति देखी गयी. गुरुवार की सुबह से ही श्रद्धालु मेले में पहुंचना शुरू हो गए थे और शाम तक श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में पहुंच गयी. गुरुवार की रात दो बजे से ही लोग नदी में स्नान के लिए डुबकी लगाने लगे. श्रद्धालुओं के मनोरंजन के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने-अपने कैंपों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया. मेला समिति के अनुसार इस वर्ष बांसी मेले में रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही. मधुबनी प्रखंड के बीडीओ कुंदन कुमार व सीओ नंदलाल राम रात भर मेले में घूम-घूमकर स्थिति का जायजा लेते रहे. ऐतिहासिक मेला का हक दिलवाने के लिए कृत संकल्पित-विधायक वाल्मीकिनगर विधायक धीरेंद्र प्रताप उर्फ रिंकू लोगो को संबोधित किया. जिसमें बांसी धाम नदी में स्नान दान पुण्य की सभ्यता को भव्यता के साथ दिखाने की पहल की और बांसी धाम मेला राष्ट्रीय पर्यटन के मानचित्र पे सदैव ऊंचा रहे इस बात का संकल्प लिया. जिसमें ऐतिहासिक बांसी धाम मेला का उद्घाटन वाल्मीकिनगर विधायक धीरेंद्र प्रताप उर्फ रिंकू सिंह, सांसद सुनील कुमार तथा मधुबनी प्रखंड प्रमुख प्रतिनिधि विजय सिंह द्वारा संयुक्त रूप से फीता काट कर किया गया एवं अन्य गणमान्य लोगों को शॉल ओढ़ा व माल्यार्पण कर सम्मानित किया गया. वही विधायक ने इस ऐतिहासिक मेला का हक दिलवाने के लिए कृत संकल्पित अपार समर्थन करने का आह्वान किया एवं अन्य राज्यों से आई उपस्थित भारी भीड़ ने तालियों के साथ महोत्सव लुत्फ उठाते हुए लोगों द्वारा मेला को भव्य बनाने के लिए बड़े ही भव्य रूप से साज सजावट की गयी हैं. गजब की भीड़, गजब का उत्साह भी देखा गया. जाने बांसी नदी की महिमा बिहार और यूपी की सीमा पर बहने वाली बांसी नदी रामायण काल की कई यादों को अपने अंदर समेटे हुए है. इस नदी का वर्णन वाल्मीकि रामायण में भी है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक सिंघा पट्टी गांव से होकर गुजरने वाली बांसी नदी के किनारे भगवान राम ने माता सीता और बारातियों संग रात बिताई थी. यही वजह है कि इस इलाके के कई गांवों का नाम बारात से जुड़ा हुआ है. जहां दासियां ठहरी थी. उसका नाम दहवा पड़ गया. जहां घुड़सवार रुके थे उसका नाम घोड़हवा हो गया. बांसी नदी में ही भगवान श्री राम ने किया था स्नान मान्यता के मुताबिक भगवान श्री राम ने त्रेता युग में जनकपुर में माता सीता से विवाह के बाद अयोध्या के लिए रुख किया था. बांसी पहुंचते-पहुंचते दिन ढलने लगा था. देवारण्य क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध यह जगह जंगलों से घिरी हुई थी. नदी का किनारा होने के कारण काफी रमणीय भी था. इस वजह से भगवान राम की बारात यहीं रुक गयी, रात्रि विश्राम किया. सुबह बांसी में भगवान श्री राम ने स्नान भी किया था. साथ ही शिव की पूजा के लिए खुद शिवलिंग की स्थापना की थी. इसके बाद आगे का सफर तय किया. रामघाट नाम से प्रसिद्ध है विश्राम स्थल बांसी धाम से एक किलोमीटर पश्चिम की ओर बांसी नदी के किनारे रामघाट स्थित है. कहते हैं यही भगवान राम के रुकने का स्थान था. यहां एक राउटी डालकर भगवान ने रात बिताई थी. मतलब भगवान श्री राम ने यहां पर एक रात वास किया था. जिसके बाद इस नदी का नाम बांसी पड़ गया. यहां पर एक मां जानकी का मंदिर भी है, जो काफी पुरानी है. लोग बताते हैं कि यहां पर माता जानकी उस रात को निवास किया था. इसलिए इस जगह का नाम रामघाट पड़ गया. कई गांव का नाम बारात की दिलाती है याद बांसी का यह क्षेत्र भगवान राम और उनसे जुड़े संस्मरण विभिन्न समय, काल और स्थान से जुड़े हैं. त्रेता युग में भगवान श्री राम के साथ पूरी बरात ने यही पर विश्राम किया था. अलग-अलग जगह तंबू डाले गए थे. जिसका जहां तंबू पड़ा. उस जगह का नाम उसी से प्रसिद्ध हो गया. यहां इस प्रकार के नाम 3 किलोमीटर के रेडियस में मिलते हैं. विभिन्न नाम जैसे दहावा लोग बताते हैं कि यहां मां जानकी के साथ चल रही दासियां ठहरी थी. इसलिए इसका नाम दहवा पड़ गया. घोड़हवा यहां पर बरात में आए घुड़सवार निवास किए थे इसलिए इसका नाम घोड़हवा पड़ गया. इसके बगल में ही देवीपुर है. यहां पर एक सिंघा पट्टी है. जिसे लोग बताते हैं कि यहां पर सिंघा बजाने वाले ठहरे थे. इसलिए इसका नाम सिंघा पट्टी पड़ गया. बारात के सबसे आगे स्वयं भगवान शिव चल रहे थे और उन्होंने जहां निवास किया वह त्रिलोकपुर के नाम से जाना जाता है. इसे आगे चलने पर उत्तर प्रदेश में पडरौना मिलता है. पडरौना का सबसे पुराना नाम पद रौन था. यानी पैर से रौंदा हुआ. लोग बताते हैं कि यह नगर श्रीराम और उनके भाइयों को ऐसा भाया की बारात से लौटने के दौरान सभी भाइयों ने इस नगर का भ्रमण किया. इसलिए इसका नाम पद रौन पड़ गया. बाद में यह पडरौना के नाम से जाना जाने लगा. भगवान श्री राम ने स्थापित किया था शिवलिंग भगवान श्रीराम सुबह स्नान के बाद शिव की आराधना करते थे. बांसी नदी तट पर रात्रि विश्राम के बाद सुबह स्नान पश्चात उन्होंने शिवलिंग बना कर पूजा की. घने जंगल में स्थापित इस पिंडी के बारे में जानने वाले स्थानीय लोगों ने यहां पूजा-अर्चना शुरू कर दी थी. अब यहां आने वाला हर श्रद्धालु बांसी घाट पर इस शिव मंदिर में पूजा-अर्चना किए बगैर नहीं लौटते. ऐसी मान्यता है कि यहां नदी में स्नान करने से पुण्य मिलता है. जीवन के समस्त अवरोधों से मुक्ति मिलती. लेकिन यूपी-बिहार की सीमा में बहने वाली बांसी नदी में एक डुबकी लगाने से काशी में सौ बार जाकर स्नान-ध्यान करने का लाभ मिलता है. ऐसी पौराणिक मान्यता है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है