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बगहा में गिरा था माता सती का गाल, मां चंडी स्थान मंदिर से जुड़ी मान्यताएं

शारदीय नवरात्र के अवसर पर शहर के मलपुरवा स्थित शक्तिपीठ मां चंडी स्थान मंदिर पूजा अर्चना को लेकर सज धज कर तैयार हो गया है.

बगहा. शारदीय नवरात्र के अवसर पर शहर के मलपुरवा स्थित शक्तिपीठ मां चंडी स्थान मंदिर पूजा अर्चना को लेकर सज धज कर तैयार हो गया है. मंदिर परिसर आस्था को लेकर सिद्ध पीठों में से एक है. जहां प्रतिदिन सुबह से लेकर शाम तक पूजा अर्चना को लेकर श्रद्धालु भक्तों का तांता लग रही हैं. ऐसे में परिषद सदैव मनमोहक आकर्षक का केंद्र बना रहता है.नवरात्रि के नौ दिनों में माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है.बिहार राज्य में माता के कई सिद्धपीठ हैं.उनमें से एक है बगहा-बेतिया मुख्य पथ स्थित मलपुरवा के समीप शक्तिपीठ मां चंडी स्थान मंदिर. बता दे कि उक्त मंदिर पर लोगों की अटूट आस्था है. सामान्य दिनों में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है.नवरात्र के दौरान मंदिर की रौनक और भी बढ़ जाती है. इस मंदिर में उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल के अलावा अन्य राज्यों के भी श्रद्धालु आते हैं.बताया जाता है कि यहां पर जो भी मन्नत मांगी जाती है माता उसे पूरा करती हैं .इस मंदिर का वर्णन चंपारण गजटीयर में भी किया गया है. मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती का गाल गिरा था .इस मंदिर में कई बार चमत्कार होने के दावे भी किए जाते हैं.मंदिर के पुजारी पंडित उमेश मिश्र समेत स्थानीय बायो वृद्ध लोग बताते हैं कि एक बार किसी स्थानीय दबंग ने देर रात मंदिर का दरवाजा खोल दिया था. इसके बाद अंदर आग लग गई थी फिर पुजारियों ने लोगों के साथ मिलकर प्रार्थना की तो आग शांत हुई.अगली सुबह मंदिर के अंदर लोग गए तो कुछ भी जला हुआ नहीं था.इसके बाद से ही रात 10:00 बजे से लेकर सुबह 3:00 बजे तक मां का कपाट बंद रहता है.बता दे कि मंदिर के माता की प्रतिमा लाल रंग का हो गया था.पुजारी व ग्रामीण बताते हैं कि यह स्थान बगहा नगर के गंडक नदी के किनारे रत्नमाला मोहल्ला बसा हुआ है . महारानी जानकी कुंवर ने 1920 में करायी थी स्थापान इस गांव के साथ-साथ अन्य गांव के लोग भी मां चंडी की पूजा करते थे . वर्ष 1919 में भारी बारिश के कारण गंडक नदी उफान पर थी रत्नमाला मोहल्ला में भी चारों तरफ से पानी भर गया.वहां से लोग पलायन करके मलपुरवा में आकर बस गए.लेकिन कुछ ही दिनों में लोगों को तरह-तरह के स्वप्न आने लगे .पंडित उमेश मिश्र ने बताया कि नदी के पानी का रंग लाल हो गया था.डोली का बढ़ गया वजन लोग बताते हैं बेतिया राज की महारानी जानकी कुंवर ने 1920 में पंडितों को बुलाकर इस घटना के और स्वप्न के बारे में पूरी जानकारी ली.इसके बाद महारानी स्वयं माता की डोली लेकर पंडितों के साथ रत्नमाला पहुंची और विधि पूर्वक पूजा के बाद माता के आसन को डोली में रखा गया.वहां से बाजे-गाजे बजाते हुए बेतिया के लिए प्रस्थान किया गया.माता की डोली रत्न माला से मूल पुरवा मोहल्ला पहुंची,जहां पर पहले से रतन माला के लोग आकर बसे थे.वहां पर डोली का वजन काफी बढ़ गया . नवरात्रि के दौरान बढ़ जाती है भक्तों की भीड़ बेतिया महारानी ने बनवाया मंदिर महारानी ने डोली को वहां रखवा दिया फिर से उठाने का प्रयास किया गया. लेकिन डोली नहीं उठता इसके बाद वहां पर माता को स्थापित कर दिया गया. फिर महारानी जानकी कुंवर ने इस मंदिर का निर्माण करवाया और माता को स्थापित कर दिया गया.एक सिद्धपीठ होने के नाते चंडी स्थान को सबसे पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है.बता दे कि माता सती का गिरा था गाल पौराणिक कहानियां यह भी कहती हैं कि जब भगवान शिव माता सती के शव को लेकर तांडव करने लगे थे.इसके बाद पृथ्वी हिल गई .तब पूरी सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से 51 टुकड़ों में सती के शव को काट दिया.इस दौरान इस स्थान पर माता का गाल गिरा था

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