Navratri 2024: बेतिया के पटजिरवा सिद्धपीठ माता का महत्व गुवाहाटी के कामाख्या और बिहार के बड़ी पटन देवी, थावे, तारापीठ जैसे प्रसिद्ध सिद्धपीठों की तरह ही है. इस मंदिर का इतिहास सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है. ऐसी मान्यता है कि सतयुग में माता सती ने जलते कुंड में कूदकर अपनी प्राण त्याग दी थी.
इसके बाद भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से मां सती के शरीर के 51 टुकड़े किए थे. जहां-जहां ये अंग गिरे वे सभी जगहें शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है. ऐसा कहा जाता है कि यहां माता सती के पैर के कुछ हिस्से गिरे थे. जो बाद में वहां नर-मादा दो पीपल के पेड़ उपजे, जो शिव और शक्ति के अर्धनारीश्वर स्वरूप के रूप में यहां विराजमान हैं. इसके बाद यह जगह पैरगिरवा के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
क्यों पड़ा इस मंदिर का नाम पटजिरवा?
ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम से विवाह के बाद ससुराल जा रही माता सीता ने अपनी डोली का पट गिराकर यहीं आराम की थीं, जिस वजह से इस जगह का नाम पटजिरवा रखा गया. इस दौरान भगवान राम ने दोनों पीपल के पेड़ों की तीन दिन तक पूजा की और माता की 10 सिद्धियों की स्थापना की थी.
कहां स्थित है पटजिरवा मंदिर?
कालांतर में पुत्रों के जन्म के बाद ही उनकी मौत हो जाने पर नेपाल नरेश ने भी यहां यज्ञ किया था, जिसके बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वह जीवित रह गए. पटजिरवा सिद्धपीठ स्थान जिला मुख्यालय बेतिया से दक्षिण पश्चिम में 16 किलोमीटर दूर बैरिया प्रखंड में स्थित है. इसकी विस्तृत जानकारी मार्कंडेय और शिव पुराण में भी मौजूद है.
कैसे है पटजिरवा मंदिर से माता सीता और भगवान राम का संबंध?
बेतिया में स्थित सिद्धपीठ पटजिरवा धाम से श्रीराम और मां सीता का गहरा संबंध है. कहा जाता है कि त्रेता युग में श्रीराम और माता सीता के विवाह के बाद बारात अयोध्या लौट रही थी. इस दौरान महाराज जनक ने अपने राज्य की सीमा तक हर 13 कोस पर एक तालाब खुदवाया था. जहां बारात का पड़ाव दिया था.
Also Read: नए शादीशुदा जोड़ों के लिए खास है यह बिहार का मंदिर, नवरात्रि में दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
भगवान राम ने यहां की थी तीन दिनों तक पूजा
मिथिला की सीमा उस समय गंडक की तट तक थी. यहां जब कहारों ने माता सीता की डोली रखी तो मां ने अपनी डोली का पट गिरा दिया और विश्राम की इच्छा जताई थी. जिसके बाद इस जगह का नाम पटजिरवा हो गया. इस दौरान ही श्रीराम ने यहां तीन दिनों तक विधिवत पूजा भी की थी. नर-मादा पीपल के पेड़ के बीच सात पिंडियों को अंगीकार करते हुए 10 सिद्धियों की स्थापना की थी. जिसके बाद यहां 10 से अधिक गांवों का नामकरण किया गया. अब यही सिद्धपीठ पटजिरवा धाम के नाम से प्रसिद्ध है.
ये वीडियो भी देखें