अवध किशोर तिवारी, बेतिया राज्य सरकार के निर्देश पर पूरे राज्य में आरंभ हुए विशेष भूमि सर्वेक्षण कार्यक्रम रैयतों के लिए जी का जंजाल बन गया है. इस सर्वेक्षण कार्यक्रम ने रैयतों की रातों की नींद उड़ा कर रख दी है. भले हीं सरकार की मंशा इस सर्वेक्षण को कराकर भूमि विवाद के मामलों में कमी लाने की हो, लेकिन इस सर्वेक्षण कार्यक्रम के शुरुआत होने के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भूमि विवाद के मामलों में और वृद्धि होने की संभावना है. स्थिति यह है कि तीन तीन पुश्तों के नाम पर चल रही जमीन का बंटवारा कर इस बार रैयत अपने नाम पर करना चाह रहे हैं, लेकिन व्यावहारिक रुप से कई पेंच सामने आने लगे हैं. नतीजतन चाहते हुए भी वास्तविक रैयत अपनी भूमि को अपने नाम से अभिलेखों को सुधरवा पाने में कमजोर साबित हो रहा है. स्थिति यह है कि भू-सर्वेक्षण की प्रक्रिया बड़े, मझौल और छोटे किसानों के मानसिक तनाव का कारण बन गई है. किसानों को अपनी जमीन हाथ से खिसकने की चिंता सता रही है. कई भू स्वामियों के स्वामित्व के कागजात बाढ़ या अगलगी आदि में नष्ट हो चुके हैं. कई भू स्वामी ऐसे हैं, जिनकी भूमि का बंटवारा कई पुस्त से नहीं हुआ है या फिर खानगी बंटवारा के आधार पर भूमि जोत रहे हैं. लोग कागजातों की तलाश के लिए विभागों का चक्कर लगा रहे हैं तो कई लोग रिकॉर्ड रूम का चक्कर लगा रहे है, तो कोई कार्यालय का. 100 साल से भी अधिक समय बाद मिल्कियत के कागजात मांगे जा रहे हैं. स्थिति यह है कि बेतिया अभिलेखगार से लेकर बेतिया राज के अभिलेखागार तक हजारों लोग प्रतिदिन आ रहे है. बताते है कि पं. चंपारण, पूर्वी चंपारण एवं बगहा के कई इलाकों के पुराने कागजात बेतिया राज के अभिलेखागार में रखे हुए हैं. नतीजतन जिन्हें मोतिहारी या बेतिया के समाहरणालय के अभिलेखागार में कागजात प्राप्त नही हो रह है वे बेतिया राज का दरवाजा खटखटा रहे है। बहरहाल, विशेष भूमि सर्वेक्षण का कार्य रैयतों के लिए सिरदर्द बनकर सामने आया है और आने वाले दिनों में भूमि को लेकर किसी बड़े संघर्ष की भी आशंका सामने आ सकती है.
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