बाघ ने बदला आशियाना और पहुंचा लिपनी गांव, जान बचाकर भागीं महिलाएं
बाघ ने अपना ठिकाना बदल दिया है
मैनाटांड़. पुरैनिया के कौड़ेना नदी के तट पर गन्ने के खेत में तीन दिन तक रहने के बाद बाघ ने अपना ठिकाना बदल दिया है. मंगलवार की शाम को कौड़ेना नदी होते हुए बाघ पुरैनिया के बगल के गांव लिपनी पहुंच गया. शाम को लिपनी गांव से दक्षिण मंदिर के पास घास काटने गयी महिलाओं ने जब बाघ को देखा तो हो हल्ला करते हुए भागते पड़ते गांव में पहुंचीं. लिपनी की उर्मिला देवी, विंध्यवासिनी देवी, बबिता देवी, निक्की कुमारी आदि महिलाएं मंदिर के बगल में घास काटने गयी थी, तभी गन्ने के खेत से हुंकार भरते हुए बाघ को निकलते देखा. महिलाएं अपनी जान बचाकर गांव आयीं. मामले की सूचना सरपंच प्रतिनिधि दीपक पटेल ने वन विभाग के अधिकारियों को दी. सूचना मिलते ही वन विभाग की टीम लिपनी गांव स्थित मंदिर के पास पहुंचा. वहां पहुंचते ही वन कर्मियों ने मंदिर के पास बंधे भैंस और गायों को पशुपालकों से कहकर वहां से हटवाया. साथ ही लोगों को उधर नहीं आने की सख्त हिदायत दीं. उधर मंगुराहा वन रेंजर सुनील पाठक ने बताया कि बाघ मृत नीलगाय के सतर प्रतिशत मांस खाने के बाद अपना ठिकाना बदल लिया है. लिपनी तक बाघ के पग मार्क देखें गये हैं. उसके बाद पगमार्क नहीं मिल रहे हैं. बाघ को ट्रेस करने के लिए बीस वन कर्मियों को लगाया गया है. लिपनी के बाद अब पगमार्क नहीं मिलने से काफी परेशानी हो रही है, हालांकि लिपनी जंगल से काफी दूर है. फिर भी वन विभाग का पूरा प्रयास है कि बाघ सुरक्षित जंगल की ओर लौट जाये. उधर लिपनी, सुखलही, पदमौल, पुरैनिया आदि गांव के लोगों में बाघ को लेकर काफी भय है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है