पर्यटकों के स्वागत को तैयार वाल्मीकिनगर, भागम भाग की जिंदगी में फिर सुकून भरे पल बिता पाएंगे पर्यटक

वीटीआर में मानसून सीजन के कारण पर्यटकों के आने पर रोक लगा दी गयी थी. जिस कारण पर्यटन नगरी में सन्नाटा का आलम था. वन विभाग की ओर से 21 अक्टूबर 2024 से वन विभाग पर्यटन सीजन का पुन: शुरुआत की गयी है.

By Prabhat Khabar News Desk | October 21, 2024 9:02 PM
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वाल्मीकिनगर. वीटीआर में मानसून सीजन के कारण पर्यटकों के आने पर रोक लगा दी गयी थी. जिस कारण पर्यटन नगरी में सन्नाटा का आलम था. वन विभाग की ओर से 21 अक्टूबर 2024 से वन विभाग पर्यटन सीजन का पुन: शुरुआत की गयी है. जिससे पर्यटक वाल्मीकिनगर की सुंदर वादियों में फिर भागम भाग की जिंदगी में सुकून भरे पल बिता पाएंगे. वन प्रमंडल पदाधिकारी पीयूष वर्णवाल ने हरी झंडी दिखाकर पर्यटक सीजन की शुरुआत की. इस मौके पर प्रशिक्षु डीएफओ स्टालिन फीडल कुमार, वन क्षेत्र पदाधिकारी राजकुमार पासवान मौजूद रहे. ज्ञात हो कि भारत नेपाल सीमा पर अवस्थित महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली वाल्मीकिनगर जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए विख्यात है. वाल्मीकिनगर से सटे कल-कल कर बहती नारायणी गंडक की धारा से सटे पड़ोसी देश नेपाल में सर उठाकर खड़े ऊंचे पहाड़ और चारों तरफ से वन और वृक्षों से घिरे वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में निवास करने वाले शाकाहारी, मांसाहारी जीव जंतुओं के साथ विभिन्न प्रकार के पशु पक्षियों के अलावा वन क्षेत्र में प्राचीन काल से स्थापित आस्था के मुख्य केंद्र मंदिरों के अलावा वन विभाग द्वारा निर्मित सैलानियों के लिए बंबू हट, ट्री हट, कैनोपी वाक, गंडक नदी में राफ्टिंग, जंगल सफारी पूरी तरह सज धज कर पर्यटकों के स्वागत को तैयार है. बताते चलें कि वाल्मीकिनगर महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली के रूप में जानी जाती है. यह चारों तरफ से वनों, पहाड़ों और नदियों से घिरी हुई है और यह वाल्मीकि व्याघ्र आरक्ष के रूप में आज पूरी तरह विख्यात है. वाल्मीकि टाइगर रिजर्व वन क्षेत्र लगभग 900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. जिसमें विभिन्न प्रकार के जीव जंतु के साथ विभिन्न प्रकार के पक्षियों की भरमार है. वहीं भारत-नेपाल दो देशों को जोड़ने वाली गंडक बराज में कुल 36 फाटकों में 18 वां फाटक पार करते ही यह अहसास सुखद लगता है की हम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण नेपाल की पवित्र पावन धरती पर अपने कदमों को रख चुके है. वही वन क्षेत्र में प्राचीन काल से स्थापित मंदिर अपने दर्शन के लिए पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करते है. गंडक बराज से सटे ऊंचे पहाड़ के साथ नारायणी नदी की कल-कल धारा के बीच नारायणी के पावन जल में सूर्योदय तथा सूर्यास्त का प्रतिबिंब बेहद अद्भुत नजारा प्रस्तुत करता है जो हृदय को छू जाता है.

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