दीपक राव, भागलपुर
बॉलीवुड में मशहूर अभिनेता व वरिष्ठ रंगकर्मी संजय मिश्रा ने कहा कि कोई भी शहर हो, उसे 25 मिनट में जाना-समझा नहीं जा सकता. भागलपुर से पुराना रिश्ता है. मेरा यहां ननिहाल है. सभी मामा और भाई हैं. उन्होंने देसी अंदाज में कहा कि यहां का हरियरका तरकारी (हरी सब्जी) की याद बहुत आती है. यहां तो अब भी बहुत फ्रेश तरकारी मिलती है. बचपने से तिलकामांझी में हरियरका तरकारी खरीदते रहे हैं. ममेरा भाई अमित व सुमित सिल्क सिटी भागलपुर में तैयार सिल्क के कपड़े भेंट करते रहते हैं. इसकी कमी मुंबई में खलती है. इसलिए भागलपुर समय-समय पर आते रहते हैं. वे शनिवार को प्रभात खबर से खास बातचीत कर रहे थे.
अभिनेता संजय मिश्रा भागलपुर तिलकामांझी स्थित अपनी मामी रेखा मिश्रा से मिलने उनके घर पहुंचे थे. पिछले दिनों मामी की तबीयत बिगड़ गयी थी. गुवाहाटी में शूटिंग के दौरान जब यह खबर मिली, तो वे सीधे मामी से मिलने भागलपुर पहुंच गये. मामी ने बचपन में अपनी गोद में बैठा कर खिलाया-पिलाया है. उन लम्हों को भुलाया नहीं जा सकता. मैं जड़ से जुड़ा रहना चाहता हूं. अपनी परंपरा और संस्कार को भूलता नहीं, उसे छोड़ता नहीं. बचपन की गलियां लौट कर तो नहीं आयेगी, लेकिन उन यादों को दिल में बसाये हुए तो रखा ही जा सकता है.
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रंगमंच से लंबे समय से जुड़े रहे अभिनेता संजय मिश्रा ने कहा कि रंगमंच बहुत ही नेचुरल है. इसमें टेक्निक नहीं है. सिनेमा में टेक्निक है. लेंस है. दोनों का मकसद एक है, बस कहानी कहना. ऐसे में खुद में थोड़ा बदलाव लाना पड़ता है. भागलपुर के कलाकारों को आगे बढ़ाने में जितना होगा, उतना मदद करेंगे. खासकर युवा कलाकारों के लिए ओटीटी जैसा प्लेटफॉर्म है, जहां उन्हें प्रमोट करने की जरूरत कम है. फिर भी उनका मार्गदर्शन करने को तत्पर हैं.
संजय मिश्रा कहते हैं कि हिंदी पट्टी में रंगमंच शुरू से कमजोर रहा है. इसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैं. संस्कृति व साहित्य काे कम ध्यान देना भी बड़ा कारण है. अपने खानपान को याद रखना होगा. अपनी वेशभूषा और बोली को आगे बढ़ाना होगा. पहले लोग यहां मड़ुआ की रोटी खाते थे. दाल-भात, तरकारी, तीसी की बरी खाते थे. अब मखनी दाल, पुलाव-तड़का, राजमा आदि ने इसकी जगह ले ली है. ऐसे में अपने उत्पादित अनाज को कैसे आगे बढ़ा सकेंगे. हिंदी थियेटर के कल्चर को कमजोर कर दिया गया. हिंदी भाषी क्षेत्र के लोगों ने ही इसे रिजेक्ट करना शुरू कर दिया. इस स्थिति को बदलनी होगी. अन्य भाषी क्षेत्र चाहे गुजराती हो, मराठी हो, कन्नड़ हो, उड़िया, मणिपुरी ही क्यों न हो, सभी अपने-अपने क्षेत्र में आगे हैं.
इन दिनों ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उनकी फिल्म वध काफी सुर्खियां बटोर रही हैं. 30 मार्च को फिल्म भोला और इसके बाद कोर्ट आने वाली है. अपने खास अंदाज और भविष्य की योजनाओं पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि जल्द ही भागलपुर की महालया बोध के साथ मुख्य भूमिका में बोध फिल्म्स के बैनर तले सुमित कुमार के निर्देशन में बनने वाली फिल्म में नजर आयेंगे. बोध फिल्म्स के साथ अपने संबंधों को लेकर संजय मिश्रा ने बताया कि सुमित कुमार खुद एक बहुत अच्छे राइटर भी हैं. उनके स्क्रिप्ट से प्रभावित होकर कोरोना काल में सामाजिक जागरूकता के लिए बनायी गयी डॉक्यूमेंट्री बस कुछ और दिनों की बात है… में मैंने अपनी आवाज भी दी थी.
हवाई सेवा यहां रहने वाले लोगों को स्वास्थ्य लाभ के लिए अधिक जरूरी है. भागलपुर जैसे अन्य शहरों में भी हवाई सेवा की जरूरत है. भागलपुर के कई लोगों को हवाई सेवा के अभाव में खासकर बीमारी की हालत में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.