ललित किशोर मिश्र, भागलपुर: नगर निगम क्षेत्र में वर्ष 2022-23 के लिए स्वच्छता का सर्वेक्षण होना है. पहले नगर विकास एवं आवास विभाग द्वारा पोर्टल पर पूछे गये तीन प्रश्नों का जवाब हां या नहीं में निगम प्रशासन को देना है. निगम प्रशासन के दिये जवाब के आधार पर भारत सरकार की टीम भागलपुर आकर स्थलीय जांच करेगी और फिर स्वच्छता रैंकिंग जारी की जायेगी. लेकिन नगर विकास एवं आवास विभाग ने जो तीन प्रश्न पूछे हैं, उनमें निगम के पास किसी भी सवाल का जवाब ‘हां’ में नहीं है. इस वजह से एक बार फिर भागलपुर को स्वच्छता के मामले में अच्छी रैंकिंग मिलने की संभावना पर संशय है.
नगर निगम क्षेत्र में प्रतिदिन लगभग 300 मीट्रिक टन कूड़े का उठाव होता है. ट्रैक्टर से कूड़े का उठाव कर कनकैथी डंपिंग ग्राउंड में जाकर डंप कर दिया जाता है. डंपिंग ग्राउंड में किसी प्रकार की प्रोसेसिंग का इंतजाम आज तक नहीं किया गया. यहां कूड़े के ऊंचे-ऊंचे टीले खड़े हो गये हैं. बिहार नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन मॉडल उपविधि 2019 के अनुसार हरा, नीला व काला डस्टबिन लोगों को देना है. डोर-टू-डोर कचरा का उठाव करना है. प्रत्येक सड़क पर दैनिक झाड़ू लगाना है. ठोस कचरे का प्रसंस्करण एरोबिक कंपोस्टिंग, वर्मी कंपोस्टिंग, मैकेनिकल कंपोस्टिंग, बायो-मेथॉनेशन, वेस्ट टू इनर्जी के लिए किये जाने का प्रावधान है, पर ऐसा हो नहीं रहा है.
भागलपुर नगर निगम क्षेत्र के नालों का पानी पिछले कई दशकों से सीधे गंगा में चला जा रहा है. नालों के पानी को साफ करने के लिए नमामि गंगे परियोजना से सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण टीएमबीयू के बगल में स्थित पुराने प्लांट को तोड़ कर किया जा रहा है. वर्तमान स्थिति यह है कि गत चार नवंबर तक 4.58 प्रतिशत काम पूरा हुआ है. इसे पूरा करने की समयसीमा 06 नवंबर, 2023 तय की गयी है. इसकी क्षमता 45 एमएलडी है. इसके नाले का नेटवर्क 57.54 किलोमीटर है. सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण की स्वीकृति वर्ष 2017 में ही भारत सरकार से मिली थी. अगर ससमय निर्माण हो गया होता, तो आज निगम के पास स्वच्छता सर्वेक्षण के सवाल का जवाब होता.
नगर निगम क्षेत्र में किसी शौचालय की टंकी खाली करनी है, तो इसके लिए निगम प्रबंधन के पास इसे खाली करने का संयंत्र है. उसकी ढुलाई की व्यवस्था है. लोग इसके लिए शुल्क का भुगतान करते हैं और टंकी सफाई कराते हैं. लेकिन इसकी गंदगी के निस्तारण की कोई व्यवस्था नगर निगम के पास नहीं है. कहीं भी सूनी जगहों पर गंदगी फेंक दी जाती है. नगर निगम क्षेत्र में इसके वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण की व्यवस्था होनी चाहिए. अगर यह व्यवस्था रहती, तो प्रदूषण से बचाव होता और स्वच्छता सर्वेक्षण में निगम प्रशासन जवाब भी दे पाता.
इससे पहले हुए स्वच्छता सर्वेक्षण में व्यवस्था कुछ और थी. आम लोग ऑनलाइन जवाब देते थे. स्वच्छता को लेकर जागरूक करने के लिए चौक-चौराहों पर स्वच्छता के स्लोगनयुक्त बैनर लगाये जाते थे. साइकिल से अभियान चलाया जाता था. स्वच्छता एप जारी किया गया था. चौक-चौराहों व सड़कों की सफाई व्यवस्था, दीवारों पर रंग-रोगन, चित्र और स्लोगन लिखना, नुक्कड़ नाटक आदि किये जाते थे.