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भागलपुरः नगर निकाय चुनाव में चौंकाने वाला आया परिणाम, विकास को मिला समर्थन, नहीं चला धन बल का जादू

शिक्षा व विकास की चाह में पसंदीदा प्रत्याशी को पांच साल काम करने का समय दिया. इतना ही नहीं सभी जगहों पर मतदाताओं ने समुदाय व जाति को भुनाने की कोशिश दरकिनार कर दी.

दीपक राव

नगर निकाय चुनाव का चौंकाने वाला परिणाम आया. हालांकि मेयर पद पर डॉ वसुंधरा लाल और डिप्टी मेयर पद पर डॉ सलाह उद्दीन अहसन के निर्वाचित होने की चर्चा मतदान से दो दिन पहले से ही होने लगी थी, लेकिन इनमें मेयर पद को लेकर सटीक परिणाम पर अधिकतर लोग आश्वस्त नहीं दिख रहे थे. भागलपुरवासियों ने मेयर, डिप्टी मेयर व पार्षद के वैसे प्रत्याशी को नगर सरकार के लिए चुना, थोड़ी असमंजसता की स्थिति देखी जा रही थी.

पूर्व प्रतिनिधियों के चेहरे पर आत्मविश्वास भी लोगों को असमंजस में डाल रहा था. लेकिन पर्दे के पीछे की रणनीति और मतदाताओं के बदले रुख का असर यह रहा कि अधिकतर नये चेहरे ने बाजी मार ली. मेयर व डिप्टी मेयर के लिए नये चेहरे जीत कर आये. इतना ही नहीं सभी जगहों पर मतदाताओं ने समुदाय व जाति को भुनाने की कोशिश दरकिनार कर दी. शिक्षा व विकास की चाह में पसंदीदा प्रत्याशी को पांच साल काम करने का समय दिया. कुछ को दिग्गज नेताओं के अनुभव का लाभ मिला, तो कुछ ने पिछले पांच-10 साल में मतदाताओं से संबंध गहरे कर जीत का सेहरा पाने में कामयाबी पायी.

टोना-टोटका नहीं आये काम

मेयर, डिप्टी मेयर व पार्षद पद के लिए वैसे प्रत्याशियों जिन्हें इस बार पराजय का सामना करना पड़ा, वे जनता से रू ब रू करने व राजनीतिक दांव में अलग-अलग बारीकियों को समझने में नाकामयाब हो गये. लोगों की मानें तो कई प्रत्याशी पुराने ढर्रे पर चलते रहे, तो कई प्रत्याशी टोना-टोटका, गुरु घंटाल व अनुभवहीन मार्गदर्शक के सहारे चुनावी नैया को पार करना चाह रहे थे. जनता को रिझाने के लिए सोशल मीडिया से लेकर क्षेत्र में भीड़ जुटा कर खुद को विजयी साबित करने की गलती करते रहे. इसके विपरीत विजयी प्रत्याशी उनके दांव को समझते हुए जनता के बीच जाकर चुनाव प्रचार करते हुए दिखे. इतना ही नहीं एक-एक लोगों को अपने साथ में लेने की कोशिश करते हुए दिखे.

कुछ लोगों ने धनबल को प्रधानता भी दी. इसका कुछ फायदा भी मिला, लेकिन जीत तक पहुंचने में नाकामयाब रहे. जनता ने उन्हें ऐसा आइना दिखाया कि अब भविष्य में ऐसा सोचने की भूल नहीं करेंगे. कई वार्डों में साम, दाम, दंड व भेद के जरिये कुछेक प्रत्याशी जीतने में सफल रहे, लेकिन जनता ने उन्हें भी जता दिया कि यदि विकास नहीं करेंगे, तो उनकी नैया अगले चुनाव में डूब जायेगी. कम से कम वोट की मार्जिन से जीत हासिल हुई.

जनता के बीच नहीं जाने का भुगता खामियाजा

अलग-अलग पद के लिए पराजित प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार चमक-दमक के बीच दिखा. जनता से दूरी बनाने और कुछेक मोहल्ले तक प्रचार-प्रसार करने और बाहरी हाव-भाव से जीतने की कोशिश करने में प्रत्याशी लगे रहे. ऐसे में जनता ने उन्हें खामियाजा भुगतने को मजबूर कर दिया. कई वार्डों में लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत हरेक पांच साल में नये प्रत्याशी को मौका दिया, ताकि बदलाव से विकास में भी बदलाव होगा.

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