दीपक राव, भागलपुर: देर से बारिश कतरनी के लिए संजीवनी साबित हुई है. इतना ही नहीं कतरनी उत्पादक प्रक्षेत्र अंतर्गत तीन जिलों भागलपुर, बांका व मुंगेर में 800 हेक्टेयर से बढ़कर 1700 हेक्टेयर में खेती हो गयी. ऐसे में पिछले चार वर्षों से बिहार कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से भागलपुर कतरनी उत्पादक संघ की ओर से दुगुना रकबा बढ़ाने का लक्ष्य पूरा हो गया, जो कि सुखाड़ के कारण आड़े आ रही थी. दरअसल सामान्य देसी धान की खेती पर देर से बारिश का प्रतिकूल असर पड़ा. देर से बारिश होने के कारण कम पानी में अधिक मुनाफा कमाने के लिए किसानों ने कतरनी की सीधी बोआई व बिचड़ा के माध्यम से इतनी रोपनी की कि दुगुने से भी अधिक रकबा हो गया.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से भागलपुरी कतरनी उत्पादक संघ की ओर से भागलपुर प्रक्षेत्र अंतर्गत भागलपुर, बांका और मुंगेर जिले में कतरनी की खेती दोगुने रकबे में करने की तैयारी थी. भागलपुरी कतरनी की खेती पहले जहां प्रक्षेत्र में 800 हेक्टेयर में होती थी, इसे 1600 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर कतरनी धान की खेती करने की योजना बनायी गयी थी. लगातार प्रयास के बाद भी लक्ष्य पूरा नहीं हो पा रहा था. जबकि कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ व संघ के पदाधिकारी व सदस्य लगातार प्रचार-प्रसार कर रहे थे. इसे लेकर किसानों को जागरूक किया गया था.
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बिहार कृषि विश्वविद्यालय के पौधा प्रजनन विभाग के कनीय वैज्ञानिक डॉ मंकेश कुमार ने बताया कि इससे पहले तक मुंगेर, बांका और भागलपुर में 800 हेक्टेयर में कतरनी की खेती हो रही थी, इसका दुगुना करने की तैयारी पहले से थी, जिसे किसानों ने एक साल पहले स्वीकार कर लिया था, लेकिन सुखाड़ ने किसानों के मंसूबे पर पानी फेर दिया. मुंगेर में अभी 100 हेक्टेयर में, बांका के अमरपुर, रजौन, बाराहाट व बौंसी में 300 हेक्टेयर की खेती हो रही थी. भागलपुर के जगदीशपुर, सुल्तानगंज, शाहकुंड, सन्हौला में केवल 300 हेक्टेयर में कतरनी की खेती होती थी. मुंगेर में 200, बांका में 600, जबकि भागलपुर में 800 से 1000 हेक्टेयर तक रकबा बढ़ाने का लक्ष्य था, जो कि पूरा हो गया. उन्होंने बताया कि किसान इतने उत्साहित हैं कि सुल्तानगंज में काफी रकबा बढ़ा. इससे तीनाें जिले में 1700 हेक्टेयर में खेती हो गयी.
इतना ही नहीं, जैविक तरीके से हुई कतरनी की खेती ने कतरनी की खुशबू को और बढ़ा दी थी. इससे कतरनी चूड़ा और चावल की मांग बढ़ने के साथ कीमत भी मुंहमांगी मिल रही है. इससे किसानों का उत्साह देखते ही बन रहा है. कृषि वैज्ञानिक मंकेश कुमार ने बताया कि कतरनी की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों की परेशानी को कम करने के लिए शोध जारी है. मौसम में सुधार होने के साथ-साथ जैविक तरीके से खेती को बढ़ावा मिला है. बिहार कृषि विश्वविद्यालय और भागलपुर कतरनी उत्पादक संघ की देखरेख में जिले के जगदीशपुर, सन्हौला, शाहकुंड व सुल्तानगंज प्रखंड में कतरनी की खेती की गयी थी. लगातार प्रयास के बाद दो क्विंटल से अधिक उपज बढ़ गयी. पहले जहां एक हेक्टेयर में 28 क्विंटल कतरनी धान की उपज हुई थी, अब 30 से 32 क्विंटल हो रही है.
जगदीशपुर के कतरनी उत्पादक किसान राजशेखर ने बताया कि बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक फसल की राह में आयी मुश्किलों को दूर कर विस्तार मिला. योजना के मुताबिक कतरनी का रकबा दोगुना हो गया. उन्होंने बताया कि कतरनी का रकबा उम्मीद से अधिक बढ़ गयी. जहां कतरनी की खेती नहीं करनी थी, वहां देर की बारिश के कारण कतरनी की सीधी बुआई कर दिया. दरअसल देर इतनी हो गयी कि बिचड़ा उगने में अधिक देरी होती. अब 800 हेक्टेयर से बढ़कर 1700 हेक्टेयर खेतों में लहलहाने लगी व्यावसायिक खेती बनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. इसमें कतरनी के प्रगतिशील किसान भरपूर सहयोग कर रहे हैं.
वहीं सुल्तानगंज के प्रगतिशील कतरनी उत्पादक किसान मनीष सिंह ने बताया कि केवल खानपुर पंचायत में 175 एकड़ में कतरनी की खेती की गयी, जो कि पिछले तीन साल में 60 एकड़ भी बमुश्किल खेती हो पा रही थी. कतरनी की खेती देर से बारिश में उपयुक्त है. खुद 40 बीघा में लगाये हैं. पिछले साल सुखाड़ के कारण मन होने के बाद भी 10 बीघा में खेती ठीक से नहीं कर पाये थे. उन्होंने बताया कि सुलतानगंज प्रखंड के बाथू करहरिया, नया गांव, कुमैठा, देवधा, हल्कारचक में बड़े पैमाने पर कतरनी की खेती हुई है. लगभगत 1000 एकड़ में सुलतानगंज व शाहकुंड में खेती की गयी है.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय के पौधा प्रजनन विभाग के कनीय वैज्ञानिक सह कतरनी धान विशेषज्ञ डॉ मंकेश कुमार ने कहा है कि लगातार प्रयास व देर से हुई बारिश कतरनी की खेती के लिए उपयुक्त रहा. अब कतरनी की खेती के लिए माहौल बन गया है. भागलपुरी कतरनी को जीआइ टैग मिलने के साथ निर्यात भी शुरू हो गया है. मलेशिया, इंग्लैंड आदि देशों में निर्यात हुआ. इस बार किसानों को शुद्ध कतरनी की खेती के लिए 73 रुपये किलो की दर से 45 क्विंटल बीज बांटा गया. उम्मीद से अधिक रकबा बढ़ने से सभी का उत्साह बढ़ गया है.