सबौर : आनेवाले समय में हवा में तैरेगी हरियाली. बगैर मिट्टी के ही किसान अब पशुचारा सहित सब्जी का उत्पादन सालों भर करेंगे. हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम से अब बिहार में किसानी शुरू होनेवाली है. इसके लिए सरकार ने बीएयू को जिम्मेदारी सौंपी है. बिहार में इसे पहली बार धरातल पर उतारने का प्रयास किया जा रहा है. इस परियोजना के धरातल पर उतरते ही स्थानीय बाजारों में सालों भर बेमौसमी सब्जी उपलब्ध होगी. वहीं डेयरी उद्योग में भी पंख लगेंगे. बिहार के किसान समृद्ध बनेंगे.
क्या होगा इस तकनीक से लाभ
इस तकनीक में उत्पादन लागत भी कम और पशुओं के लिए पूरे वर्ष हरा चारा एवं बेमौसमी सब्जी का उत्पादन किया जा सकता है. इस तकनीक से 70 से 90 प्रतिशत जल की बचत की जा सकती है. खरपतवार की समस्या होगी ही नहीं. समय की बचत होगी. डेयरी उद्योग को बढ़ावा मिलेगा. हरा धनियां, टमाटर, खीरा इत्यादी पूरे वर्ष उपजाये जा सकेंगे.
क्या है तकनीक
मिट्टी विहीन फसलोत्पादन (हाइड्रोपोनिक्स) तकनीक यह है कि बिना मिट्टी के जल संवर्धन विधि द्वारा पौधों को उगाया जाता है. पौधों के लिए सभी आवश्यक तत्व खनिज पोषक घोल पानी के माध्यम से उसके जड़ों में दिया जाता है. पानी भी मिट्टी में खेती करने की अपेक्षा मात्र 15–20 प्रतिशत ही लगती है. इस तकनीक में जमीन की आवश्यकता है ही नहीं.
क्यों हुई इसकी जरूरत
विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ आर के सोहाने कहते हैं कि बिहार का अधिकांश भाग बाढ़ एवं सूखा से ग्रसित रहता है. इससे किसानों को काफी परेशानी होती है. अकेले बिहार राज्य में तकरीबन 272 लाख पशुपालन होता है. जबकि कुल कृषिगत क्षेत्रफल का लगभग 0. 21 प्रतिशत पर ही हरे चारे का उत्पादन किया जाता है. 90 प्रतिशत किसानों के पास बहुत कम कृषि योग्य जमीन है. मौसमी सब्जी उगाने से किसानों को अच्छा मूल्य नहीं मिल पाता है. जबकि उक्त तकनीक से बिना मौसम के सब्जी उत्पादन कर किसानों को अधिक मुनाफा होगा.
सरकार ने जो जिम्मेदारी हमें सौंपी है उसे धरातल पर उतारने का पहल शुरू कर दी गयी है. हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से खेती कर जल और जमीन दोनों की समस्या का समाधान तो होगा ही किसानी में कम खर्च में अधिक आय होगी.
डॉ अजय कुमार सिंह, कुलपति, बीएयू सबौर