कोई एमआरपी कम करके जोड़ रहा टैक्स, तो कोई सीधे रिटेल प्राइस पर ले रहा जीएसटी
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बाजार में जीएसटी की उलझनें बरकरार
कोई एमआरपी कम करके जोड़ रहा टैक्स, तो कोई सीधे रिटेल प्राइस पर ले रहा जीएसटी भागलपुर : जीएसटी लागू हुए दो सप्ताह का समय बीतने को है. बाजारों में अभी कामकाज की हलचल कम ही नजर आ रही है. ज्यादातर प्रतिष्ठानों पर जून माह की रसीद पर बिलिंग की जा रही है. व्यापारी ही […]
भागलपुर : जीएसटी लागू हुए दो सप्ताह का समय बीतने को है. बाजारों में अभी कामकाज की हलचल कम ही नजर आ रही है. ज्यादातर प्रतिष्ठानों पर जून माह की रसीद पर बिलिंग की जा रही है. व्यापारी ही नहीं, आम खरीदार भी दुकानों पर बिल में की जा रही गणनाओं को समझने में लगे हैं. बिल में जिस अंदाज में जीएसटी लगाया जा रहा है, उसे देख कर तो आम आदमी को यह वस्तुओं को महंगा करने वाला टैक्स लग रहा है. कुल मिला कर नयी बिलिंग की गणना लोगों की समझ से बिलकुल परे है. मजे की बात तो ये है कि व्यापारी वर्ग खुद जीएसटी की गणना समझने में जुटा है.
फिलहाल बाजार में सलाह और अंदाज के आधार पर ही जीएसटी की वसूली हो रही है.
विसंगतियां सामने : व्यापारी वर्ग विभागीय कार्रवाई के डर से टैक्स वसूल रहा है, वहीं आम आदमी को बाजार महंगा लग रहा है. विश्लेषकों और जानकारों की मानें तो जीएसटी की गणना को लेकर विसंगतियां सामने आ रही हैं.
यह सारा मामला पुरानी कीमतों की वजह से है. नये माल और प्रिंट आने के बाद ही जीएसटी से वस्तुओं के महंगा होने या सस्ता होने के असर का पता चल सकेगा. फिलहाल सच्चाई यही है कि बाजार में कन्फ्यूजन है और आम आदमी को जीएसटी महंगा सौदा लग रहा है.
दुकानों से मिल रहे बिल की गणना समझने में लगा आम आदमी
ये हैं उलझनें
मिठाई-नमकीन पर गणना
शहर की एक प्रतिष्ठित मिठाई की दुकान पर खरीदारी करने पर गुरुवार को हर सामान पहले के मुकाबले 10 से 15 फीसदी अधिक चुकाना पड़ा. बिल को समझने की कोशिश की तो पता चला कि दुकानदार ने जीएसटी के नाम पर टैक्स पर ही टैक्स जोड़ दिया. दुकानदार ने एक किलो पेड़ा (प्रति किलो 400 रुपये) पर पहले 12 फीसदी टैक्स लगा कर 448 रुपये कीमत लगायी. बाद में फिर छह फीसदी जीएसटी लगा कर 24 रुपये और वसूल लिये. यानी 400 रुपये प्रति किलो मिलने वाला पेड़ा 472 रुपये में मिला.
जूते-चप्पल की एमआरपी पर लिया टैक्स
जीएसटी में फुट बियर पर टैक्स की दर अलग-अलग है. 400 रुपये की चप्पल की एमआरपी पर टैक्स की गणना कुछ इस तरह से की गयी. एमआरपी में से पांच प्रतिशत राशि कम करके टैक्सेबल प्राइस बनायी गयी. फिर 25-25 प्रतिशत राज्य व केंद्र के कर की गणना कर एमआरपी वसूली गयी. दिलचस्प बात ये रही कि पहले फुट बियर पर एमआरपी से भी कम दाम ग्राहक देता था, अब जीएसटी को जोड़ कर दुकानदार ने पूरी एमआरपी की राशि वसूल ली.
जून का ही बिल थमा दिया
दो दिन पहले एक व्यक्ति कंप्यूटर की दुकान पर पहुंचा, उसने 700 रुपये का कीमत का एडाप्टर खरीदा. दुकानदार ने बिल बना कर दिया. तारीख के कॉलम पर गौर किया तो ग्राहक असमंजस में पड़ गया. बिल पर तारीख 28 जून की डाली गयी थी. ग्राहक ने दुइसकी वजह पूछी, तो वह बोला-सॉफ्टवेयर अपडेट नहीं है. इस लिए पुरानी तारीख में ही बिल बना रहे हैं.
धीरे-धीरे स्थिति साफ होगी. सरकार ने खाने-पीने की वस्तुओं पर जीएसटी में टैक्स की दरें काफी कम की हैं. आम आदमी के उपयोग की वस्तुओं को तो टैक्स फ्री भी किया है. इस का असर धीरे-धीरे बाजार पर दिखने लगेगा. अनाज पर टैक्स नहीं है. कपड़े पर वास्तव में टैक्स कम हुआ है, हालांकि ब्रांडेड कपड़े महंगे होंगे. जीएसटी को लेकर चिंता की बात नहीं है.
शैलेंद्र कुमार सराफ, अध्यक्ष, इस्टर्न बिहार चैंबर अॉफ कॉमर्स,
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