मायागंज में होगा सूबे का पहला न्यू बोर्न स्क्रीनिंग सेंटर

भागलपुर : जेएलएनएमसीएच में जल्द ही एनबीएस (न्यू बोर्न स्क्रीनिंग सेंटर) खुलेगा. यह सेंटर सूबे के किसी भी सरकारी हॉस्पिटल में खुलनेवाला पहला होगा. इस सेंटर में जन्म लेनेवाले नवजातों का न केवल उनके सुनने की क्षमता को जांची जायेगी बल्कि उनके इलाज की पूरी मुकम्मल व्यवस्था होगी. सब कुछ सही तरीके से चला तो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 7, 2017 4:06 AM

भागलपुर : जेएलएनएमसीएच में जल्द ही एनबीएस (न्यू बोर्न स्क्रीनिंग सेंटर) खुलेगा. यह सेंटर सूबे के किसी भी सरकारी हॉस्पिटल में खुलनेवाला पहला होगा. इस सेंटर में जन्म लेनेवाले नवजातों का न केवल उनके सुनने की क्षमता को जांची जायेगी बल्कि उनके इलाज की पूरी मुकम्मल व्यवस्था होगी. सब कुछ सही तरीके से चला तो यह सेंटर वर्ष 2018 मार्च माह तक शुरू हो जायेगा. यह सेंटर स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में तीन कमरों में संचालित होगा. सेंटर के लिए स्टाफ व संसाधन आइसिस (आल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ स्पीच एंड हियरिंग) मैसूर उपलब्ध करायेगा, जबकि सेंटर के लिए कमरा जेएलएनएमसीएच उपलब्ध करायेगा.

हॉस्पिटल प्रशासन की आइसिस के डायरेक्टर के साथ हुई वीडियो कांफ्रेसिंग : बुधवार को जेएलएनएमसीएच में आइसिस के डायरेक्टर प्रो (डॉ) आशा यथिराज, पीओसीडी के अध्यक्ष प्रो (डॉ) अनिमेश बर्मन व डीएचएलएस (डिप्लोमा इन स्पीच लैंग्वेज एंड हियरिंग) सेंटर भागलपुर के को-ऑर्डिनेटर डॉ ब्रजेश प्रियदर्शी ने वीडियो कांफ्रेसिंग की. वीडियो कांफ्रेसिंग में जेएलएनएमसीएच के प्राचार्य डॉ अर्जुन कुमार सिंह, अधीक्षक डॉ आरसी मंडल व इएनटी विभाग के अध्यक्ष डॉ वरुण कुमार ठाकुर शामिल हुए.
वीडियो कांफ्रेसिंग में आइसिस के डायरेक्टर प्रो यथिराज ने कहा कि मायागंज हॉस्पिटल उन्हें तीन कमरे उपलब्ध करा दे, जिसमें एक कमरा रिसेप्शन के लिए, दूसरा आडियोमेट्री टेस्ट व तीसरा बैरो टेस्ट के लिए होगा. उनकी इस मांग को हॉस्पिटल प्रशासन ने हरी झंडी दे दी. जल्द ही आइसिस व मायागंज हॉस्पिटल प्रशासन के बीच एमओयू (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) पर हस्ताक्षर करने की सहमति बनी.
सेंटर से हो सकेगा जन्मजात बहरेपन का इलाज
इएनटी विभाग जेएलएनएमसीएच के विभागाध्यक्ष डॉ वरुण कुमार ठाकुर बताते हैं कि अभी मायागंज हॉस्पिटल में इलाज के आने वाले कुल बच्चों (पांच या इससे अधिक उम्र वाले) में तीन से पांच प्रतिशत बच्चे हियरिंग व स्पीच की समस्या के शिकार होते हैं. अगर जन्म लेनेवाले बच्चों की हियरिंग टेस्ट की व्यवस्था इस सेंटर के जरिये हो जायेगी तो शुरुआती दिनों में ही इस बीमारी का इलाज हो सकेगा. इस सेंटर पर जन्म लेनेवाले नवजातों का तुरंत श्रवण क्षमता का टेस्ट होगा. अगर यह बीमारी पायी गयी, तो उस नवजात को छह माह के अंदर पुन: जांच के लिए बुलाया जायेगा. बीमारी का पूरी तरह से डायग्नोसिस होने पर जरूरत के हिसाब से हियरिंग एड या फिर स्पीच थेरेपी दी जायेगी.

Next Article

Exit mobile version