आचरण में लाने पर ही भागवत होता फलदायी

भागलपुर : भागवत जीवन का दर्पण है. यह जीवन की एक आदर्श संहिता है. इसे केवल सुनने से कल्याण नहीं, बल्कि आचरण में लाने पर ही फलदायी होगा. नारद जी ने किस प्रकार मंत्रविद् से आत्मविद् होने का सफर तय किया. स्वयं को केवल शास्त्र ग्रंथों के पठन-पाठन तक सीमित नहीं रखा. उनका मंथन कर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 9, 2017 6:02 AM

भागलपुर : भागवत जीवन का दर्पण है. यह जीवन की एक आदर्श संहिता है. इसे केवल सुनने से कल्याण नहीं, बल्कि आचरण में लाने पर ही फलदायी होगा. नारद जी ने किस प्रकार मंत्रविद् से आत्मविद् होने का सफर तय किया. स्वयं को केवल शास्त्र ग्रंथों के पठन-पाठन तक सीमित नहीं रखा. उनका मंथन कर सार भाव को ग्रहण किया. उक्त बातें श्री आशुतोष महाराज की शिष्या विदुषी पद्महस्ता भारती ने शुक्रवार को कही. मौका था दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से सैंडिस कंपाउंड मैदान में श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन का.

जन कल्याण के लिए धरती पर हुआ भगवान का पदार्पण : भगवान श्रीकृष्ण जन्म प्रसंग पर कथा करते हुए सुश्री भारती ने कहा कि द्वापर में कंस के अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के रूप में धरती पर आये. इसी क्रम में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से हुआ. मंच पर भव्य झांकी सजायी गयी. जन्मोत्सव में बधाइयां गायी गयी. नंद महोत्सव मनाया गया. पीले वस्त्र धारण कर बच्चे श्रीकृष्ण सखा के रूप में मनमोहक लग रहे थे. पंडाल परिसर गोकुल का दृश्य बन गया और पूरा माहौल उत्सवी हो गया.
उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि प्रभु का अवतार धर्म की स्थापना के लिए, अधर्म का नाश करने के लिए हुआ. साधु-सज्जन पुरुषों के परित्राण करने के लिए और असुर, अधम, अभिमानी, दुष्ट लोगों का नाश करने के लिए होता है. साध्वी ने बताया कि धर्म कोई बाह्य वस्तु नहीं है. धर्म वह प्रक्रिया है, जिससे परमात्मा को अपने तहत ही जाना जाता है. स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि परमात्मा का साक्षात्कार ही धर्म है. जब जब मनुष्य ईश्वर भक्ति के सनातन-पुरातन मार्ग को छोड़ मनमाना आचरण करने लगता है, तो इससे धर्म के संबंध में अनेक भ्रांतियां फैल जाती है. धर्म के नाम पर विद्वेष, लड़ाई-झगड़े, भेद-भाव, अनैतिक आचरण होने लगता है, तब प्रभु अवतार लेकर इन बाह्य आडंबर से बचाते हैं और मनुष्य के अंदर वास्तविक धर्म की स्थापना करते हैं.

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