1.60 करोड़ की योजना, 59 लाख खर्च एक भी शौचालय का निर्माण पूरा नहीं
सिर्फ हुआ ढांचा तैयार, योजना की शेष राशि वापस पूरी होती योजना तो बनते तीन सौ शौचालय, तीन हजार की आबादी को मिलता लाभ खर्च हुए 59 लाख का कौन देगा हिसाब भागलपुर : विभागीय लापरवाही से कैसे काम आदमी का पैसा बर्बाद हो रहा है इसका जीता जागता उदाहरण है साहेबगंज का नया टोला […]
सिर्फ हुआ ढांचा तैयार, योजना की शेष राशि वापस
पूरी होती योजना तो बनते तीन सौ शौचालय, तीन हजार की आबादी को मिलता लाभ
खर्च हुए 59 लाख का कौन देगा हिसाब
भागलपुर : विभागीय लापरवाही से कैसे काम आदमी का पैसा बर्बाद हो रहा है इसका जीता जागता उदाहरण है साहेबगंज का नया टोला मोहल्ला. यहां शौचालय निर्माण के नाम पर 59 लाख रुपये खर्च तो कर दिये गये लेकिन मुहल्ले के एक भी घर में शौचालय नहीं बन पाया. पांच साल पूर्व शुरू की गयी योजना के तहत लोगों से उनका घर तक तुड़वा दिया गया. लेकिन किसी के घर में शौचालय की दीवार बनी है तो टंकी नहीं और कहीं टंकी बनी है तो दीवार नहीं. योजना एक करोड़ 60 लाख की थी जिसमें शेष एक करोड़ एक लाख की राशि विभाग को वापस कर दी गयी. अब योजना के तहत बने आधे-अधूरे ढांचे का कोई उपयोग नहीं रह गया है और योजना ड्रॉप होने के कारण इसके पूरा होने की भी कोई उम्मीद नहीं रह गयी है.
सामान के लिए किसी एजेंसी ने नहीं डाला टेंडर. विभाग का कहना है कि शौचालय के लिए ठेकेदार को केवल इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना था, जो खड़ा कर दिया गया है. शौचालय में लगने वाले सामान के लिए अलग से योजना बनी थी लेकिन, आमंत्रित कोटेशन पर किसी एजेंसी ने टेंडर नहीं डाला. इस बीच डिफेक्ट लैबलिटी पीरियड समाप्त हो गया. इसके चलते योजना ड्रॉप हो गयी और राशि लौटा दी गयी.
शौचालय निर्माण पर खर्च होने थे एक करोड़ 60 लाख रुपये. गंदी बस्ती योजना से मुहल्ले की आधारभूत संरचना को मजबूत करने के लिए साहेबगंज के ही ठेकेदार डॉ तिरुपति नाथ को शौचालय बनाने की जिम्मेदारी मिली थी. 16 मार्च 2013 तक उन्हें चिह्नित सभी घरों में शौचालय का निर्माण कराना था. शौचालय निर्माण पर लगभग एक करोड़ 60 लाख रुपये खर्च होने थे.
अधूरे शौचालय में कोई मुर्गी पाल रहा, तो किसी ने बनाया अपना किचन. मुहल्ले में अर्धनिर्मित शौचालय में कोई मुर्गी पाल रहा है, तो किसी ने किचन बना लिया है. जमीला ने तो सोने-बैठने के लिए बिस्तर तक डाल रखा है. मो रमजानी ने कर्ज लेकर अधूरे शौचालय को पूरा कराया है. जो परिवार सक्षम नहीं है, उन्हें आज भी ठेकेदार के लौटने का इंतजार कर रहे हैं.
महिलाओं को होती है सबसे ज्यादा परेशानी. शौचालय नहीं बनने के चलते मुहल्ले में सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को हो रही है. उन्हें या तो उजाला होने से पहले शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है या अंधेरा होने का इंतजार रहता है. अगर किसी के घर रिश्तेदार आ जाते हैं, तो वे उन लोगों शौचालय का उपयोग करते हैं, जिसने कर्ज लेकर या खुद के पैसे से शौचालय बनवाया है.