हाथ लगी सृजन को मालामाल करनेवाली डीडीसी की चिट्ठी
पूर्व डीएम केपी रमैया की संचिका की पड़ताल लायी रंग भागलुपर : पूर्व डीएम केपी रमैया के सरकारी राशि के सृजन समिति के खाते में जमा कराने के निर्देश की संचिका की पड़ताल रंग लायी है. इस पड़ताल में सृजन को हकीकत में मालामाल करने की बुनियाद रखने वाली तत्कालीन डीडीसी ऊषा रानी की चिट्ठी […]
पूर्व डीएम केपी रमैया की संचिका की पड़ताल लायी रंग
भागलुपर : पूर्व डीएम केपी रमैया के सरकारी राशि के सृजन समिति के खाते में जमा कराने के निर्देश की संचिका की पड़ताल रंग लायी है. इस पड़ताल में सृजन को हकीकत में मालामाल करने की बुनियाद रखने वाली तत्कालीन डीडीसी ऊषा रानी की चिट्ठी हाथ लग गयी. नौ अगस्त 2000 को पत्र संख्या-579 के माध्यम से कुछ प्रखंड को निर्देश दिया गया था, कि वह समिति को प्रोत्साहित करने के लिये सरकारी योजना की राशि जमा करें. यह निर्देश मिलते ही कुछ प्रखंड ने कार्रवाई भी की थी.
जिलाधिकारी आदेश तितरमारे ने उक्त पत्र संख्या-579 व उसके आधार पर संचिका की खोज करके उसकी जांच के लिये कमेटी का गठन किया है. यह कमेटी मामले को लेकर अपनी रिपोर्ट देगी. इसमें तत्कालीन डीडीसी के कदम उठाने के पीछे की वजह का खुलासा करेंगे.
हाथ लगी सृजन…
बता दें कि पूर्व डीएम केपी रमैया से संबंधित संचिका गायब है और उस मामले में अन्य विभागों से उक्त डीएम की फाइल मंगवाकर हस्ताक्षर का मिलान हो रहा है.
डीआरडीए में ही मिली तत्कालीन डीडीसी की संचिका
जिला ग्रामीण विकास अभिकरण(डीआरडीए) में सृजन समिति पर मेहरबानी से संबंधित तत्कालीन डीडीसी की वर्ष 2000 में नींव रखने वाली चिट्ठी मिली है.
यह थी कहानी
– वर्ष 2000 में जिला ग्रामीण विकास अभिकरण में उप विकास आयुक्त ऊषा रानी ने सभी प्रखंड के पदाधिकारियों को इंदिरा आवास आदि की राशि सृजन समिति में जमा कराने का निर्देश दिया था. इससे सृजन सहकारी समिति को वित्तीय प्रोत्साहन मिल सके और समिति अपने क्रियाकलाप को बढ़ा सके. तत्कालीन उप विकास आयुक्त के पत्र पर प्रखंडों ने वहां पर खाता खुलवाया और राशि को जमा किया. कुछ प्रखंड विकास पदाधिकारी ने राशि जमा करने में देरी की तो उनके खिलाफ स्पष्टीकरण तक की कार्रवाई हुई थी.
– तत्कालीन उप विकास आयुक्त की मूल फाइल पर वर्ष 2002 में तत्कालीन डीएम गोरेलाल यादव ने अपनी संपुष्टि दे दी. इससे कुछ सरकारी विभाग का भी खाता सृजन समिति में खोलने का रास्ता खुल गया.
– इसके बाद वर्ष 2003 में दिसंबर में तत्कालीन डीएम केपी रमैया ने चिट्ठी जारी कर दिया, इसमें औपचारिक रूप से सभी सरकारी विभाग को राशि सृजन समिति के खाता में जमा करने के निर्देश मिले.
महालेखाकार ने जतायी थी आपत्ति
वर्ष 2007-8 में भी तत्कालीन महालेखाकार(एजी) ने आपत्ति जतायी थी. महालेखाकार की ऑडिट टीम ने प्रखंड के ऑडिट के दौरान यह आपत्ति दर्ज की कि इंदिरा आवास आदि की राशि एक सहकारी समिति में क्यों जमा है. इस तरह की आपत्ति को लेकर तभी के उप विकास आयुक्त ने एजी को जवाब भी दिया था. इसके बाद वर्ष 2013 तक डीआरडीए से संबंधित खाता सृजन समिति में खुले थे.
गायब है फाइल, हस्ताक्षर का होगा मिलान
तत्कालीन डीडीसी ऊषा रानी ने नौ अगस्त 2000 को जारी किया था पत्र
"20 से शुरू किया कारोबार लाखों में पहुंचा
मिसाल l दही, पेड़ा, पनीर, घी का कारोबार कर सुलेखा ने बनायी पहचान
अजीत कुमार ठाकुर4कुरसेला (कटिहार)
सच्ची लगन व मेहनत से किया गया कार्य भाग्य को भी बदल देता है. इसी को चरितार्थ किया है कटिहार जिले के समेली प्रखंड की डुम्मर गांव की सुलेखा देवी ने. मात्र 20 रुपये से दुकान शुरू करनेवाली सुलेखा आज लाखों का कारोबार कर औरों के लिए मिसाल बन गयी है. डुम्मर पुल के पास इनका दूध, दही, खोआ, पनीर, घी, पेड़ा की दुकान है. इनके यहां के दूध से बने सामान के सीमावर्ती देश नेपाल, भूटान, बांग्लादेश सहित असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय, झारखंड सहित प्रदेश के कई जिलों के ग्राहक मुरीद
"20 से शुरू …
हो चुके हैं. यहां से एक बार दूध, घी, पनीर, पेड़ा, दही, खोआ खरीद कर खाने वाले बार-बार यहां आते हैं. एनएच-31 किनारे वर्मा शेल आॅयल रिफाइनरी के गेट के पास छप्परनुमा झोंपड़ी में चलने वाली इनकी दुकान के आगे लग्जरी वाहनों का जमावड़ा सुबह से देर रात तक लगा रहता है. दुकान पर दही, चूड़ा, पेड़ा व खोआ खानेवाले व मटकी के कुल्हड़ में सोंधी चाय का स्वाद लेने के लिए ग्राहक उतावले रहते हैं. इस दौरान 55 वर्षीया सुलेखा देवी धैर्य व शालीनता के साथ ग्राहकों काे सामान देती हैं. प्रतिदिन इनके दुकान की बिक्री 75 हजार से लाख तक की होती है. इनकी दुकान में प्रतिदिन 15 क्विंटल से अधिक दूध की खपत होती है. अलसुबह से लेकर देर रात तक दुकान पर ग्राहकों की भीड़ बनी रहती है.
दियारा बरारी डुम्मर देहात गांवों से दूध की आपूर्ति
सुलेखा की दुकान में दही, पेड़ा, खोआ, पनीर, घी तैयार करने के लिए गंगा पार दियारा क्षेत्र के साथ ही डुम्मर बरारी देहात के गांवों से प्रतिदिन तकरीबन 15 क्विंटल दूध आता है. सुलेखा बताती हैं कि शुद्धता से हम कोई समझौता नहीं करते हैं. ग्राहकों का विश्वास ही हमारे बढ़ते कारोबार का आधार है. उनकी दुकान से प्रतिदिन 60 किलो घी, एक क्विंटल खोआ, 50 किलो पेड़ा, 60 किलो पनीर, एक क्विंटल दही, इतना ही पनीर व इसी तरह चाय की बिक्री है. शादी-ब्याह के सीजन में उनके यहां डिमांड बढ़ जाती है. ऑर्डर पर इनकी आपूर्ति भी की जाती है. मांग होने पर नेपाल सहित देश प्रदेश के अन्य शहरों में भी उनके यहां के बने सामान भेजे जाते हैं. उन्होंने बताया कि अभी सीजन मंदा होने से उनकी दुकान में प्रतिदिन की बिक्री 75 हजार के करीब है. सुलेखा गर्व से कहती हैं कि देश का कोई ऐसा जगह नहीं है, जहां उनके यहां का तैयार समान नहीं पहुंचता है. हाइवे के किनारे दुकान होने से भी उनकी दुकान को काफी प्रसिद्धि मिली है. इनके दुकान का दही, खोआ, पेड़ा, पनीर, घी का एक बार जो स्वाद ले लेता है, वह दोबारा इनकी दुकान पर खिंचा चला आता है. यही वजह है कि इस दुकान की प्रसिद्धि लगातार बढ़ती जा रही है. प्रत्येक माह 30 लाख से अधिक का कारोबार इनके द्वारा अभी किया जा रहा है.
प्रतिमाह 30 लाख से अधिक का होता है कारोबार
25 साल पूर्व डुम्मर पुल पर बेचना शुरू किया था भक्का
डुम्मर गांव निवासी सुलेखा देवी पति महेंद्र पोद्दार ने पारिवारिक भरण पोषण के लिए तकरीबन 25 साल पूर्व चार किलो चावल से इडली (भक्का) बना कर डुम्मर पुल पर आकर बेचना शुरू किया था. सुलेखा बताती हैं कि इडली की एनएच पर ग्राहकों में कम मांग होती थी. इससे इस धंधे से उनका गुजारा
25 साल पूर्व…
होना मुश्किल था. हाइवे से गुजरने वाले ट्रक चालक दही, पेड़ा, खोआ की मांग करते रहते थे. ट्रक चालकों की मांग के अनुरूप उन्होंने टोकरी में दही, पेड़ा तैयार कर बेचना शुरू किया. शुद्धता व स्वाद की वजह से डिमांड बढ़ने लगी. जगह के अभाव के कारण वह टोकरी में ही सामान लेकर सड़कों पर बेचने लगीं. इस तरह पांच वर्ष बीत गये. वह सड़कों के किनारे के साथ ही वर्मा शेल रिफाइनरी के अंदर जाकर साहबों के डेरे पर भी दही, पेड़ा बेचा करती थीं. एक मेम साहब को एक दिन उन पर दया आ गयी और उन्होंने वर्मा शेल के गेट पर उन्हें दुकान लगाने की परमिशन दिला दी. इसके बाद उन्होंने एनएच किनारे वर्मा शेल के गेट के पास दही, पेड़ा की छोटी सी दुकान खोल दी. धीरे-धीरे उनके दुकान का दही, पेड़ा, खोआ, पनीर, घी, चाय को प्रसिद्धि मिलने के साथ ही बिक्री बढ़ने लगी. डिमांड बढ़ने के साथ ही दुकान पर उक्त सामग्री को तैयार करने का काम भी बढ़ गया. कारोबार का विस्तार बढ़ने व ग्राहकों की भीड़ को संभालने में उनके पति महेंद्र पोद्दार, पुत्र धनंजय व अजय हाथ बंटाते हैं.