इस माह में इबादत की है खास अहमियत मस्जिदों में उमड़ी नमाजियों की भीड़

भागलपुर : माहे रमजान के पहले जुमे के मौके पर शहर की सभी मस्जिदें नमाजियों से खचाखच भरी नजर आयीं. मुल्लाचक, तातारपुर, शाहजंगी व बरहपुरा के ईदगाह, भीखनपुर की जामा मस्जिद, कबीरपुर, हबीबपुर सहित सभी बड़ी-छोटी मस्जिदों में बुजुर्गों व वयस्कों के अलावा नन्हें रोजेदारों की जमात भी शामिल थी. लोगों का मजमा जाहिर तौर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 19, 2018 2:50 AM

भागलपुर : माहे रमजान के पहले जुमे के मौके पर शहर की सभी मस्जिदें नमाजियों से खचाखच भरी नजर आयीं. मुल्लाचक, तातारपुर, शाहजंगी व बरहपुरा के ईदगाह, भीखनपुर की जामा मस्जिद, कबीरपुर, हबीबपुर सहित सभी बड़ी-छोटी मस्जिदों में बुजुर्गों व वयस्कों के अलावा नन्हें रोजेदारों की जमात भी शामिल थी. लोगों का मजमा जाहिर तौर पर अन्य दिनों से अधिक था और मस्जिदों में इमाम ने जुमे की नमाज से पहले खुतबा पढ़ा. नमाज के बाद सबके लिए भलाई और दुनिया में अमन-चैन की दुआ मांगी गयी. इस बार यह खास संयोग आया है कि रोजेदारों को पांच जुमा मिल सकेगा.

जुमे की नमाज का है खास मकसद: जुमे की नमाज जामा मस्जिद और बड़ी मस्जिद में हमेशा होती है. इस दिन छोटे-छोटे मस्जिद से जुड़े लोग जामा मस्जिद पहुंचते हैं. इसका मकसद यह है कि सब एक दूसरे से मिलें और एक दूसरे की खबर खैरियत जानें. इस्लाम में एक भाई का दूसरे भाई से अच्छे से मिलना, प्यार से मिलना सवाब का काम माना जाता है. खास यह है कि जुमे की नमाज में अलग से बयान होता है
जिसमें लोगों को हिदायत की बातें बतायी जाती है.
सभी दिनों का सरदार होता है जुमा: हदीस में जुमा को सय्यैदुल अय्याम कहा गया है यानी कि सभी दिनों का सरदार होता है. इसको ईद का दिन भी कहा जाता है. शही बुखारी शरीफ में दर्ज है कि नबी करीम ने फरमाया कि जुमे के दिन खूब अच्छी तरह स्नान करें, मस्जिद तक पैदल जाये, फिर खुतबा सुनें और दरम्यान में कोई बेकार की बातें न करें. ऐसा करने पर रोजेदार के हर कदम के बदले एक साल की इबादत का सवाब मिलता है. नबी करीम ने फरमाया कि लोग नमाजे जुमा जमाअत के साथ हर मुसलमान पर पढ़ना वाजिब है. औरत,
नाबालिग और बीमार इसके अपवाद हो सकते हैं.
खूब करें तिलावत और इबादत: रोजा का मतलब केवल भूखा रहना नहीं होता है. रमजान में रोजे के साथ-साथ नमाज और कुरआन की तिलावत की भी बड़ी अहमियत है. उलेमाओं के मुताबिक जहां तक हो सके माहे रमजान में अधिक से अधिक वक्त नमाज और तिलावत में गुजारना चाहिए. मस्जिद में कुरआन की तिलावत को बेहतर माना जाता है. यह इसलिए जरूरी है कि इस पाक महीने में खुदा रोजदारों की दुआ कुबूल करते हैं और रोजेदारों पर अल्लाह रहमतों की बारिश करते हैं.
तरावीह की नमाज की है खास अहमियत: रमजान के पाक महीने में नमाजे तरावीह की भी खास अहमियत होती है. तरावीह की नमाज में मुकम्मल कुरआन शरीफ पढ़ी जाती है. तरावीह की नमाज 20 रकात की होती है जो इशा की नमाज के बाद पढ़ी जाती है. इसी माह में कुरआन पाक नाजिल हुई.

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