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भागलपुर : ट्रांजेक्शन की सूचना वाला इ-मेल हर शाम मिलता था सरिता को

भागलपुर : पटना हाइकोर्ट में सृजन घोटाले के विभिन्न आरोपितों के जमानत अर्जी की सुनवाई के दौरान कई तरह के राज खुले. सीबीआइ के जवाब के बाद अरुण कुमार सिंह, सरिता झा, पंकज कुमार झा व हरिशंकर उपाध्याय की जमानत अर्जी खारिज हो गयी. बैंक अधिकारी अरुण कुमार सिंह ने बैंक के अन्य अधिकारी वरुण […]

भागलपुर : पटना हाइकोर्ट में सृजन घोटाले के विभिन्न आरोपितों के जमानत अर्जी की सुनवाई के दौरान कई तरह के राज खुले. सीबीआइ के जवाब के बाद अरुण कुमार सिंह, सरिता झा, पंकज कुमार झा व हरिशंकर उपाध्याय की जमानत अर्जी खारिज हो गयी. बैंक अधिकारी अरुण कुमार सिंह ने बैंक के अन्य अधिकारी वरुण कुमार पर आरोप लगाया कि उनके बजाय वरुण की अन्य बैंक कर्मियों की मिलीभगत से राशि के अवैध ट्रांसफर करवाये गये.
इससे उनका कोई लेना देना नहीं है. सृजन समिति की सरिता झा ने संचालिका स्व मनोरमा देवी को डिक्टेटर बताते हुए आरोप लगाया कि उनके निर्देश पर विभिन्न चेक पर हस्ताक्षर करती थी. दूसरी तरफ सीबीआइ ने आरोपितों के खिलाफ अपनी जांच रिपोर्ट के आधार पर जो जवाब दिया, वह आरोपितों को कटघरे में खड़ा कर रहा है. सरिता झा के पास हर शाम को एक इमेल आता था. यह इमेल एक तरह से घोटाले यानी अवैध राशि के आने-जाने का पूरा ब्योरा होता था. बैंक से सरिता झा को इमेल से तमाम जानकारियां प्रत्येक दिन मिलती थी.
सरिता झा की दलील
सीबीआइ ने जांच में सृजन महिला समिति की सह-हस्ताक्षर के तौर पर आरोपित बनाया है. समित में मनोरमा देवी का शासन चलता था और उनके निर्देश पर आरोपित विभिन्न बैंक के चेक पर हस्ताक्षर करती थी. जो चेक के बारे में जांच में उल्लेख है.
सीबीआइ का जवाब
सामान्य रूप से भारी मात्रा में राशि कभी भी सृजन समिति स्तर के शाखा में नहीं आयी थी.सृजन समिति के पदाधिकारी से बैंकर्स चेक सहित करोड़ों की राशि को अवैध व अवांछित को भुगतान किया जाता था.बैंकर्स अरुण कुमार सिंह के माध्यम से प्रत्येक दिन सरिता झा को इमेल भेजा जाता था. जिसमें सृजन समिति के खाते में आने-जाने वाली राशि का उल्लेख होता था. इस तरह आरोपित सरिता झा को पूरे घोटाले का पता था.
को-ऑपरेटिव बैंक में सृजन घोटाला
सीबीआइ का जवाब
घोटाले के दौर में भागलपुर सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक में हरिशंकर उपाध्याय मैनेजर एकाउंट और पंकज कुमार झा एमडी के तौर पर थे. इन आरोपितों ने करोड़ों रुपये के चेक को इंडियन बैंक के खाते में स्वीप खाता में जमा कराने के प्रस्ताव के साथ किया. इस तरह कोऑपरेटिव बैंक के स्वीप खाते के बजाय राशि सृजन समिति के खाते में चली गयी. लेकिन आरोपित ने इस पर ध्यान नहीं दिया. इसको लेकर होनेवाली प्राथमिकी व सीबीआइ जांच तक भी जिक्र नहीं किया.
आरोपितों ने इंडियन बैंक द्वारा एक फर्जी प्रस्ताव भागलपुर सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक को दिया. इसमें जमा कराये गये रुपये पर 10 फीसदी ब्याज अधिक देने का उल्लेख था. जबकि इंडियन बैंक ने ऐसा कोई प्रस्ताव तभी नहीं दिया था.
आरोपितों द्वारा इंडियन बैंक के उक्त फर्जी प्रस्ताव के पत्र को कोऑपरेटिव बैंक के वेद प्रकाश उपाध्याय को दिया. सीबीआइ पूछताछ में वेद प्रकाश उपाध्याय ने बताया कि फर्जी प्रस्ताव वाले पत्र के आधार पर बढ़ाया गया कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से इंडियन बैंक में परिपक्व राशि को अधिक मुनाफा के लिए जमा कराया जाये. इस तरह इंडियन बैंक में स्वीप खाता खुलावाया गया.
इस तरह इंडियन बैंक में एक दिसंबर 2012 को बैंक खाता खोला गया. इस खाता खोलने में आरबीआइ व सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक के बाइलॉज और बोर्ड के प्रस्ताव का पालन नहीं किया गया. इंडियन बैंक के केवाइसी भी नहीं परिपूर्ण किया गया था.
भागलपुर सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक का चालू खाता बैंक ऑफ बड़ौदा में 26 नवंबर 2011 को खोले जाने का उल्लेख है, मगर कोऑपरेटिव बैंक के कार्यालय में उक्त खाता के चालू होने की तिथि 28 नवंबर 2011 दी गयी.
इंडियन बैंक की शाखा ने भागलपुर सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक में पैसा नहीं जमा कराया. इस दौरान आरोपित भी लंबे समय तक चुप थे.
आरोपितों ने बैंक ऑफ बड़ौदा में भी पैसे जमा करवाये. इस बात को लेकर सीबीआइ की चार्जशीट में उल्लेख है, जिसकी जांच चल रही है.
अरुण कुमार सिंह की दलील
अरुण कुमार सिंह ने 10 जुलाई 2014 को ज्वाइन किया और 31 अक्तूबर 2015 को सेवानिवृत हो गये. उनके खिलाफ कोई भी सीधा आरोप नहीं है.
सीबीआइ की चार्जशीट में बैंक के ब्रांच मैनेजर वरुण कुमार पर आरोप हैं. वे बैंक के अन्य कर्मियों के साथ रुपये के अवैध ट्रांसफर में शामिल थे.

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