इफ्तार के वक्त होती हैं दुआएं कबूल

भागलपुर: माह-ए-रमजान के पाक महीने की शुरुआत हो चुकी है. फिजा में घुलती अजान व दुआओं में उठते हाथ खुदा से मुहब्बत के जज्बे को सामने ला रहा है. इस्लाम की पांच बुनियादों में रोजा भी शामिल है और इस पर अमल के लिए अल्लाह ने रमजान का महीना मुकर्रर किया है. खुद अल्लाह ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 2, 2014 11:38 AM

भागलपुर: माह-ए-रमजान के पाक महीने की शुरुआत हो चुकी है. फिजा में घुलती अजान व दुआओं में उठते हाथ खुदा से मुहब्बत के जज्बे को सामने ला रहा है. इस्लाम की पांच बुनियादों में रोजा भी शामिल है और इस पर अमल के लिए अल्लाह ने रमजान का महीना मुकर्रर किया है. खुद अल्लाह ने कुरान शरीफ में इस महीने का जिक्र किया है. इस माह में रोजेदारों की लगभग सभी दुआएं कबूल की जाती हैं और इफ्तार के वक्त की जाने वाली दुआ सबसे पहले कबूल होती है.

सब्र का महीना है रमजान. बरारी जामा मसजिद के मौलाना मो अंजार अहमद ने बताया कि अल्लाह ताला कुरान में फरमाता है कि जिन लोगों ने ईमान लाया है उन पर रोजे फर्ज किये गये हैं. जैसे तुम से पहले वाले लोगों पर फर्ज किये गये थे. उन्होंने बताया कि रोजे हिजरत के दूसरे साल से ही फर्ज किये गये थे. रमजान सब्र का महीना है.

सब्र का सवाब जन्नत के रूप में मिलता है. उन्होंने बताया कि एक हदीस शरीफ में आया है कि हजरत सलमान फारशी रजी अल्लाह अन्हो से मरवी है के हजरत पैगंबर ने शाबान माह के आखिरी दिन खुतबा दिया और फरमाया कि ईमानवालों के लिये एक अजीम महीना आनेवाला है. इस माह में लैलतुल कद्र है, जो हजार महीने से बेहतर है. अल्लाह ताला ने इस माह के रोजों को फर्ज और इसकी रातों में इबादत करने को सुन्नत करार दिया है. जो शख्स इस माह में कोई नेकी का काम करता है, उसे अन्य महीनों में मिलनेवाले सवाब का 70 गुणा फल मिलता है. इस माह में अदा की जानेवाली नफिल नमाजों का सवाब फर्ज नमाज के बराबर मिलता है. और जिसने इस महीने में फर्ज अदा किया, वो ऐसे हैं, जैसे उसने दूसरे महीने में 70 फर्ज अदा किया.

रहमत का है यह अशरा. रमजान के महीने को तीन हिस्सों में बांटा गया है. हर हिस्से में 10-10 दिन आते हैं. जिसे अशरा कहा जाता है. पहला अशरा रहमत का है. इसमें अल्लाह अपने बंदों पर रहमत बरसाता है. इस महीने में पूरी कुरान शरीफ नाजिल(अवतरित)हुई जो इस्लाम की पाक किताब है. हदीस में आया है कि अल्लाह रोजाना 70 हजार बंदों को गुनाहों से बरी करता है. लेकिन रमजान के दौरान इसकी गिनती नहीं की जाती.

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