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यहां चलती है पॉकेटमारी की पाठशाला

लैलख से बरियारपुर के बीच पार्टनरशिप पर चलता है पॉकेटमारों का धंधा, इलाके के हिसाब से बेचे जाते हैं ग्राहक भीड़ में पकड़े जाने पर पहचान छिपाने के लिए बॉस बदल देता है अपने गुर्गे का इलाका भागलपुर : भीड़ के बीच जेब पर डाका डालने के लिए नौसिखियों के लिए लैलख से बरियारपुर रेलवे […]

लैलख से बरियारपुर के बीच पार्टनरशिप पर चलता है पॉकेटमारों का धंधा, इलाके के हिसाब से बेचे जाते हैं ग्राहक

भीड़ में पकड़े जाने पर पहचान छिपाने के लिए बॉस बदल देता है अपने गुर्गे का इलाका

भागलपुर : भीड़ के बीच जेब पर डाका डालने के लिए नौसिखियों के लिए लैलख से बरियारपुर रेलवे स्टेशन के बीच जेबकतरों की पाठशाला चलती है. पॉकेटमार के गुरु नये युवकों के साथ चलते हैं. इस काम में चूक होने पर गुरु अपने चेले के बचाव में सामने आता है और भीड़ से बचाकर उसे सुरक्षित निकालने की कोशिश में जुटा रहता है.

लोगों को गुरु यह समझाने में सफल होते हैं कि गलती से ऐसे युवक का हाथ भीड़ की वजह से जेब पर चला गया था. लैलख का जुगवा के आपराधिक जीवन की शुरुआत भी जेब काटने से ही हुई थी. जिसके बाद वह गैंग ही जेबकतरों का चलाने लगा था. हालांकि इसके साम्राज्य को नये जेब कतरों ने तोड़ना शुरू कर दिया है. ये नये पौध जुगवा के ही चेले बताये जाते हैं.

शिकार की पहचान कर डालते हैं जेब पर हाथ : जिले में पॉकेटमारों का आतंक लैलख स्टेशन से ही शुरू हो जाता है. छोटे से स्टेशन में जब ट्रेन आती है, तो शिकार की पहचान पॉकेटमार करते हैं. ट्रेन में अगर मौके नहीं मिलता है, तो शिकार करने के लिए सबौर के पॉकेटमार को लगाते हैं. यहां से शिकार करने के लिए पॉकेटमार भागलपुर स्टेशन तक अपने कस्टमर (यात्री) के पीछे पड़ते हैं. खास तौर पर जब यात्री ट्रेन से नीचे उतरते हैं, तो भीड़ का सहारा लेकर ऐसे शातिर जेब काटने की कोशिश करते हैं.

स्टेशन के आसपास भटकते रहते हैं ऐसे पॉकेटमार : भागलपुर स्टेशन के प्लेटफार्म के पास ऐसे पॉकेटमार भटकते रहते हैं. जो जेब के साथ-साथ सामान पर भी हाथ साफ करते हैं. रेल थाना में पॉकेटमारों के शिकार लोग रोजाना पहुंचते हैं. मामला दर्ज करने के बाद थाने से इन्हें विदा तो कर दिया जाता है, लेकिन चोरी का सामान मिलेगा ही इसकी उम्मीद काफी कम ही रह जाती है. बताया जाता है कि भागलपुर स्टेशन पर ही ऐसे लगभग तीन दर्जन से अधिक पॉकेटमार हैं, जो इस तरह की घटना को अंजाम देते हैं.

नशे में रहते हैं अधिकांश जेब कतरे : पूर्व में जो भी पॉकेटमार पुलिस के हाथ लगे हैं, उसमें ज्यादातर नशीली दवा का सेवन किये होते हैं. इनके साथ भीड़ अगर मारपीट भी करती है, तो पॉकेटमार के शरीर पर कोई असर नशा की वजह से नहीं होता. पिछले दिनों भी नशे की हालत में मोबाइल छीन कर भाग रहे एक युवक को लोगों ने पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया था.

शामिल हो रहे नये गुर्गे, पॉकेटमारी करते पकड़े गये तो ट्रांसफर दूसरे स्टेशन पर : जेबकतरे की मानें तो इस धंधे में जोखिम है, तो लाभ का प्रतिशत भी है. इस वजह से नये लड़के इसमें आ रहे हैं. पुलिस जिस को एक बार पकड़ लेती है, उसे दूसरे स्टेशन पर काम के लिए भेज दिया जाता है. यानी पुलिस नये लड़के को आसानी से नहीं पहचान सके, इसलिए इसका इलाका बदल दिया जाता है. नाथनगर के भी लगभग एक दर्जन से ज्यादा नये लड़के ने गैंग ज्वाइन किया है. इसके अधिकांश अभी ट्रेनिंग में है. इनको सुरक्षा देने के बदले कमाई का 80 प्रतिशत बॉस को देना होता है.

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