शेड्यूल चेक-अप के लिए भी तरस जाते हैं मरीज संडे यानी मरीजों का बुरा दिन

भागलपुर: जिले का लाइफलाइन कहलानेवाले सरकारी अस्पताल जेएलएनएमसीएच में रविवार मरीजों के लिए बुरे दिन से कम नहीं होता है. जूनियर डॉक्टरों के भरोसे रहने वाले अधिकतर विभागों में मरीज शेड्यूल चेक-अप के लिए भी तरसते रहते हैं. इलाज की बात तो दूर, मरीजों का हाल-चाल पूछने की औपचारिकता पूरी करने भी कोई डॉक्टर नहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 24, 2014 2:02 AM

भागलपुर: जिले का लाइफलाइन कहलानेवाले सरकारी अस्पताल जेएलएनएमसीएच में रविवार मरीजों के लिए बुरे दिन से कम नहीं होता है. जूनियर डॉक्टरों के भरोसे रहने वाले अधिकतर विभागों में मरीज शेड्यूल चेक-अप के लिए भी तरसते रहते हैं. इलाज की बात तो दूर, मरीजों का हाल-चाल पूछने की औपचारिकता पूरी करने भी कोई डॉक्टर नहीं आते.

किसी-किसी विभाग में तो चार-पांच दिन तक रविवार जैसी ही दिनचर्या होती है. हड्डी रोग विभाग की हालत और भी खराब है. यहां दो माह से लेकर साल भर से लोग इलाज के इंतजार में दिन काट रहे हैं. एक-दो सप्ताह पूर्व आये कुछ मरीज संतुष्ट हैं, तो दूसरी ओर नौ माह से इलाज के लिए मरीज तरस रहे हैं. खून के अभाव में रोजाना ही उन्हें आज-कल कह कर टाला जा रहा है. कुछ मरीज जो जैसे-तैसे कर खून की कमी पूरी कर ले रहे हैं, उनका भी ऑपरेशन नहीं किया जा रहा. और तो और रविवार को ओपीडी बंद रहने के बावजूद भी मरीज को बुलाया जाना भी लापरवाही का ही एक नमूना है.

रविवार को पियुष कुमार रैबीज की सूई लेने के लिए अस्पताल पहुंचे थे. जब उन्हें रविवार को ओपीडी बंद रहने के बारे में बताया गया तो उन्होंने ओपीडी परची दिखायी, जिस पर 20 तारीख को पहला इंजेक्शन देने के बाद 23 को दूसरे इंजेक्शन के लिए बुलाया गया था. एक डॉक्टर ने बताया कि तीन दिन के अंतराल पर पड़ने वाला यह इंजेक्शन चौथे दिन भी पड़ने पर कोई दिक्कत नहीं है.

थोड़ी बहुत कमियां हैं, कुछ सीमाएं भी हैं. अपने रहते नियमित व व्यवस्थित सेवा देने की कोशिश रहती है. एक सम्मेलन में भाग लेने के कारण शहर से बाहर था. मरीजों की परेशानी को संज्ञान में लेते हुए समाधान करने की कोशिश करूंगा. सामूहिक रूप से जिम्मेदारी का निर्वहन करने की आवश्यकता है.

डॉ दिलीप कुमार सिंह, एचओडी, हड्डी रोग विभाग

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