भागलपुर: पूस की रात में गंगा के धार को छू कर आती सर्द पछिया तेज हवाओं के बीच लंबी कतार में गाड़ियां जाम में फंसी थी. रात के 12 पार हो गये थे और विक्रमशिला पुल पर वाहनों की लंबी कतार थी. इन वाहनों पर उंघते अनमनाते महिला बच्चे और यात्री थे. इनके लिए पुल पर खड़ा वाहन ही आशियाना बन गया था. हालांकि हाड़ कंपा देनेवाली ठंड थी. नीचे कलकल बहती गंगा और ऊपर तेज हवा.
कंपकंपाती ठंड के बीच जाम में फंसे बच्चे, बूढ़े, महिलाओं के लिए सर्द मौसम की मार ही हाड़ बिसबिसा देने के लिए काफी थी. पुल पर तापमान 10 के नीचे जा चुका था. ट्रैक्टर पर लोड धान-पुआल पर एक-दो चादर-कंबल से ठंड से लड़ने की नाकाम कोशिश जारी थी. महुआ(बाराहाट) के खेत में महीने भर की मजदूरी कर लौट रहे तिनटंगा के मजदूर परिवारों ने यह कब सोचा था कि देर शाम तक घर पहुंच कर थकान मिटाने की राह में जाम बाधक बनेगा.
वहीं बाल-बच्चे, किशोरियों समेत बुजुर्ग महिलाएं शाल, चादर ओढ़ नींद का इंतजार कर रही थीं. अपने शॉल से पोती संगीता को पूरी तरह ढक रही लाजो देवी को अपनी फिक्र नहीं थी, उसे तो बच्चों की भूख और तबीयत की चिंता थी.
मजदूर परिवारों को लेकर आते मैक्सी चालक हृदय शर्मा ने बताया कि 40 मन धान काटने के एवज में एक मन धान की मजदूरी के लिए तिनटंगा के मजदूर परिवार महीने भर से बाराहाट में मजदूरी कर लौट रहे थे. कपड़ों की गठरी गाड़ी में लदे धान के नीचे दबी थी और ठंड से बचने के लिए बस चादर ही सहारा था. ट्रक चालक तो खिड़की दरवाजे बंद कर कंबल तान चुके थे, लेकिन ट्रैक्टर चालक ठंड से ठिठुर रहे थे. देर रात घर लौट रहे केला बेचनेवाले लोगों की भूख कम कर रहे थे.