मांझी के बयानों पर बवाल क्यूं: दिलीप

भागलपुर: बिहार में स्वतंत्र दलित राजनीति की जरूरत भी है और संभावना भी. बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी एक दलित नेता के रूप में उभरे हैं और दलितों के उत्थान के लिए उनका पद पर टिके रहना जरूरी है. उक्त बातें वरिष्ठ पत्रकार व दलित चिंतक दिलीप मंडल ने प्रभात खबर से विशेष बातचीत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 12, 2015 7:25 AM
भागलपुर: बिहार में स्वतंत्र दलित राजनीति की जरूरत भी है और संभावना भी. बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी एक दलित नेता के रूप में उभरे हैं और दलितों के उत्थान के लिए उनका पद पर टिके रहना जरूरी है. उक्त बातें वरिष्ठ पत्रकार व दलित चिंतक दिलीप मंडल ने प्रभात खबर से विशेष बातचीत में कही. वह सिल्क सिटी एक शोध संघ (एआइआरएसए) के वर्षगांठ कार्यक्रम में भाग लेने आये थे.

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री मांझी के बयानों पर इतना बवाल क्यों मचाया जाता है. मांझी जिस समाज से आये हैं, वहां असंतोष है, रोष है, आक्रोश है. लोगों को यह सोचना होगा कि मांझी की बातों में इतना कड़वापन कहां से आया. यह समाज का दिया हुआ है. इस कड़वाहट को समाज को समझना होगा. मांझी अपनी जगह सही हैं और अच्छा होगा कि बने रहें, टिके रहें और अच्छा काम करें.

शिक्षा, सवर्णो की उदारता से दूर होगी असमानता की बीमारी
दलितों के विकास पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अबतक दलितों को केवल वोट बैंक के रूप में प्रयोग किया गया है. असमानता की यह बीमारी 3000 वर्ष पुरानी है. यह जाते-जाते जायेगी. अंतरजातीय विवाह, राजकाज में बराबरी, शिक्षा व आर्थिक सबलता इसमें दवा का काम करेगा और इन सबसे जरूरी है सवर्णो की उदारता. इनसान को इनसान समझना जरूरी है. उन्होंने कहा कि वह आशावादी हैं और उम्मीद करते हैं कि आने वाले वर्षो में देश असमानता की बीमारी से मुक्त होगा. अमेरिका की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ओबामा महज 12 प्रतिशत अश्वेतों के वोट से राष्ट्रपति नहीं बने, उन्हें श्वेत समाज ने भी स्वीकारा है. भारत में भी मानसिकता बदलेगी.

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