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सोडियम की कमी से मरीजों की जा सकती है जान

भागलपुर : एपीआइ बिहार चैप्टर इकाई की ओर से रविवार को स्थानीय होटल में एक सेमिनार का आयोजन किया गया. इसमें हाइपोनेट्रिमिया व हाई बीपी समेत अन्य बीमारियों से बचाव पर चिकित्सकों ने व्याख्यान दिया. इसके पूर्व एपीआइ के स्थानीय चेयरमैन डॉ केडी मंडल, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ डीपी सिंह व अन्य सदस्यों ने संयुक्त […]

भागलपुर : एपीआइ बिहार चैप्टर इकाई की ओर से रविवार को स्थानीय होटल में एक सेमिनार का आयोजन किया गया. इसमें हाइपोनेट्रिमिया व हाई बीपी समेत अन्य बीमारियों से बचाव पर चिकित्सकों ने व्याख्यान दिया. इसके पूर्व एपीआइ के स्थानीय चेयरमैन डॉ केडी मंडल, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ डीपी सिंह व अन्य सदस्यों ने संयुक्त रूप से कार्यक्रम का उद्घाटन किया.
सेमिनार में एपीआइ के राज्य सचिव डॉ अमित कुमार दास ने हाइपोनेट्रिमिया की बीमारी पर कहा कि शरीर में सोडियम की कमी होने पर मरीज की जान भी जा सकती है. इससे कई गंभीर बीमारी भी हो सकती है.
उन्होंने बताया कि आइसीयू में भरती मरीजों के इलाज में सोडियम चढ़ाने की जरूरत होती है. इसमें थोड़ी सी भी गलती होने पर मरीज की जान जा सकती है. यह बीमारी दवा के गलत इस्तेमाल, सिर में गंभीर चोट लगने, डायरिया व हार्मोन की गड़बड़ी से भी होती है. सोडियम चढ़ाने में कम से कम 48 घंटे का समय देना चाहिए. कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन एपीआइ सचिव डॉ शांतनु घोष ने किया. उन्होंने बताया कि एपीआइ की ओर से अभी गांव को गोद लेने पर चर्चा की गयी है.
इस पर सभी सदस्यों की अलग से राय लेने के बाद ही निर्णय लिया जायेगा. कार्यक्रम में डॉ पीबी मिश्र, डॉ आरपी जायसवाल, डॉ महेश कुमार, डॉ एके पांडेय, डॉ एके सिन्हा, डॉ देवी राम समेत अन्य मौजूद थे.
हाई बीपी को न करें नजरअंदाज : डॉ हेम शंकर
डॉ हेम शंकर शर्मा ने हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी पर कहा कि हाई बीपी की वजह से किडनी फेल, हर्ट अटैक व ब्रेन हेमरेज की संभावना तीन से पांच गुणी बढ़ जाती है. 18 वर्ष से अधिक होने पर ब्लड प्रेशर 140 बाइ 90 से कम होना चाहिए. अगर इससे अधिक होता है तो नियमित जांच कराएं और अतिरिक्त नमक न लें.
जिन्हें बीपी की शिकायत है, वे नियमित जांच कराएं और दवा का सेवन करें. अगर परिवार में किसी भी सदस्य को बीपी, मधुमेह या किडनी से संबंधित समस्या पूर्व में रही हो, तो उन्हें नियमित तौर पर बीपी जांच करानी चाहिए. इसका असर होने पर आंखों की रोशनी भी प्रभावित होती है. इसे टारगेट ऑर्गन डैमेज कहते हैं.

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