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भागलपुर में भी सरकारी नौकरी छोड़ रहे डॉक्टर

भागलपुर: भागलपुर प्रमंडल के भी कई चिकित्सकों ने सरकारी व्यवस्था से दु:खी होकर वीआरएस ले लिया. अधिकतर चिकित्सक प्राइवेट प्रैक्टिस में लगे हैं, तो एक चिकित्सक चिकित्सा पेशा के अलावा राजनीतिक दल से जुड़ कर जनप्रतिनिधि तक बन गये हैं. चार चिकित्सकों में तीन शिशु रोग विशेषज्ञ व एक स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं. कई ऐसे […]

भागलपुर: भागलपुर प्रमंडल के भी कई चिकित्सकों ने सरकारी व्यवस्था से दु:खी होकर वीआरएस ले लिया. अधिकतर चिकित्सक प्राइवेट प्रैक्टिस में लगे हैं, तो एक चिकित्सक चिकित्सा पेशा के अलावा राजनीतिक दल से जुड़ कर जनप्रतिनिधि तक बन गये हैं. चार चिकित्सकों में तीन शिशु रोग विशेषज्ञ व एक स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं. कई ऐसे जूनियर डॉक्टर भी हैं, जो अधिक पैसे के कारण भागलपुर छोड़ दिल्ली-मुंबई व अन्य राज्यों में चले गये.

उनका कहना है कि एक तो यहां आसानी से नौकरी नहीं मिलती, दूसरी बात नौकरी मिल भी जाये तो समय पर वेतन नहीं दिया जाता है और राशि भी बहुत कम रहती है. इसलिए हमलोग बिहार में नौकरी नहीं करना चाहते हैं. जानकारी है कि जेएलएनएमसीएच के भी एक चिकित्सक वीआरएस लेने की तैयारी कर रहे हैं. बांका जिला में पदस्थापित स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ एनके यादव ने 2008 में सरकारी सेवा से त्याग पत्र दे दिया. तब से वह राजनीतिक दलों के साथ जुड़ कर कार्य कर रहे हैं. अब तो वह विधान पार्षद बन गये हैं. हालांकि वे अपना प्राइवेट प्रैक्टिस अभी भी कर रहे हैं.

जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पदस्थापित शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ शंभु शंकर सिंह ने भी सरकारी व्यवस्था से नाखुश 2011 में सरकारी नौकरी को अलविदा कह दिया. वे भी अब आदमपुर में प्रैक्टिस कर रहे हैं. तीसरे चिकित्सक चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ विनय मिश्र सदर अस्पताल में पदस्थापित थे. उन्होंने भी सितंबर 2011 में वीआरएस ( वोलेंटरी रिटायरमेंट) ले लिया. डॉ मिश्र के करीबी बताते हैं कि उन्हें सिविल सजर्न बनाने की तैयारी चल रही थी. वह सीनियर हो गये थे और वे सीएस पद पर जाने को इच्छुक नहीं थे. उनके साथ कार्य करने वाले चिकित्सकों का कहना है कि वह मरीजों का इलाज करने में अधिक भरोसा रखते थे पर कभी सरकारी लापरवाही के चलते जांच टीम में शामिल करने व कभी एंबुलेंस ड्यूटी समेत अन्य तरह की परेशानियों के कारण वीआरएस ले लिया. रजिस्ट्री कार्यालय के पास स्थित नर्सिग होम चला रहे शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ अजय सिंह भी सरकारी सेवा में थे. उन्होंने भी नौकरी छोड़ दी.

उनका कहना है कि वे 1998 में कानपुर रेलवे अस्पताल में कार्यरत थे पर वहां एक लिमिटेशन था. जिस तरह से पढ़ाई किये थे उस अनुपात में वहां काम करने का न तो साधन न ही सुविधा थी. इसलिए वहां से त्याग पत्र देकर भागलपुर आ गये. सन 2000 से भागलपुर में प्रैक्टिस कर रहे हैं. चूंकि बिहार के किसी भी सरकारी संस्थान में कार्य करने के दौरान पूरा समय नहीं दे पाते चूंकि वहां इस तरह की व्यवस्था नहीं थी. ऐसे में काम के दौरान कहीं-न-कहीं कंजूसी करनी पड़ती जो हमें मंजूर नहीं था. इसलिए सरकारी सेवा में दोबारा नहीं आये. ठीक यही हाल जेएलएनएमसीएच में इंटर्नशिप कर रहे एमबीबीएस के छात्रों का मानना है. उनका कहना है कि भागलपुर में इंटर्नशिप करने का 12 हजार रुपये प्रति माह दिये जाते हैं. दिल्ली व अन्य राज्यों में 30 से 35 हजार रुपये दिये जाते हैं. यही वजह है कि अधिकतर चिकित्सक पढ़ाई करके दूसरे राज्यों में नौकरी करने चले जाते हैं.

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