हिंसा को बढ़ावा दे रही हैं बोल्ड व हिंसात्मक फिल्में

भागलपुर : हिंसा व बोल्ड दृश्य वाली फिल्में कहां तक जायज हैं. क्या यह समाज के बदलाव का हिस्सा है? इस सवाल के जवाब में शहर के लोगों ने फेसबुक के माध्यम से प्रभात खबर भागलपुर फेसबुक साइट पर अपनी प्रतिक्रिया दी. लोगों ने माना कि इस तरह की फिल्में हिंसा को बढ़ावा दे रही […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 12, 2013 3:21 AM

भागलपुर : हिंसा बोल्ड दृश्य वाली फिल्में कहां तक जायज हैं. क्या यह समाज के बदलाव का हिस्सा है? इस सवाल के जवाब में शहर के लोगों ने फेसबुक के माध्यम से प्रभात खबर भागलपुर फेसबुक साइट पर अपनी प्रतिक्रिया दी. लोगों ने माना कि इस तरह की फिल्में हिंसा को बढ़ावा दे रही है. लड़कियों के प्रति जो हिंसा में बढ़ोतरी हुई है ये इन्हीं फिल्मों के कारण हैं. प्रज्ञा सोलंकी का कहना है कि ऐसी फिल्में समाज में हिंसा को बढ़ा रही हैं और बुरी घटनाओं को बढ़ावा दे रही हैं.

गुलशन कुमार भी इसे हिंसा को बढ़ावा देने का माध्यम मानते हैं. बंटी कुमार कहते हैं कि ऐसी फिल्में समाज को चौपट कर रही है. शाहबाज खान कहते हैं कि समाज फिल्मों से ही बहुत कु सीखता है. ऐसी फिल्में समाज को बिगाड़ रही हैं. सिद्धार्थ आनंद कहते हैं, आज का फिल्म सिर्फ फूहड़पन को परोस रहा है. वास्तविकता से इसका कोई लेना देना नहीं है. चांद झुनझुनवाला कहते हैं कि ये सिर्फ पैसा कमाने का माध्यम है.

आशुतोष राय कहते हैं कि बदलते जमाने के हिसाब से थोड़ा खुलापन जरूरी है. नीरज कुमार कहते हैं कि फिल्मों में अब वो बात नहीं रही जो पहले थी. यह कुछ सीख देने के बदले समाज को गलत दिशा में भटका रही है.

सुमित सोलंकी कहते हैं कि ऐसी फिल्में अगर 20 प्रतिशत अच्छा रिजल्ट दे रही है तो 80 प्रतिशत इससे क्राइम भी बढ़ा है. हबीब मुर्शिद खान कहते हैं कि ऐसी फिल्मों पर रोक लगाना चाहिए जो बोल्डनेस के नाम पर ईलता फैला रही है. नीतीश कुमार कहते हैं कि हम भारतीय संस्कृति को भूल पाश्चात्य संस्कृति की ओर जा रहे हैं. पर यहां उस संस्कृति को हम नहीं अपना सकते.

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