संयोजन बदला, मंच वही और निभती रही परंपरा
भागलपुर: आजादी पूर्व से अपने साहित्य-संस्कृति के धनी देश में भागलपुर का अपना रंग ही अलहदा रहा है. ऐतिहासिक शहर की सांस्कृतिक व साहित्यिक विरासत को देखते हुए वर्ष 1961 में शहर के बीचों-बीच एक मंच तैयार हुआ, जहां वासंती माहौल में फगुआ की बयार ऐसी बही कि साहित्य व संगीत के उत्सव की एक […]
आज होली पूर्व होने वाला यह उत्सव मित्र वसंत गोष्ठी के रूप में स्वस्थ मनोरंजन का एक विशाल उत्सव बन चुका है. इस बीच कविवर नेपाली व अंगार जी से लेकर बजरंग लाल सर्राफ, युवाओं संग हरीश चंद्र मिश्र व उनके बाद मारवाड़ी युवा मंच के रूप में कार्यक्रम का संयोजन बदलता रहा, लेकिन मंच वही रहा. 55 वर्ष से होते आ रहे इस अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में भारत के लगभग सभी नामचीन कवि आते रहे हैं. एक ही छत के नीचे काव्य व संगीतमय महफिल आज भी जुटती है. मारवाड़ी पाठशाला के विशाल प्रांगण में जुटने वाले अखिल भारतीय स्तर के कवियों को सुनने के लिए आज भी जनसैलाब उमड़ता है.
ऐसे में साहित्य-संस्कृति के उत्थान के लिए एक पंडाल के नीचे सर्वधर्म सद्भाव के साथ लोगों को एक जगह एकत्र हो प्यार बांटने को एक मंच मिला. समाज के विभिन्न तबके के लोग इससे जुड़ते चले गये और कारवां बनता गया. मारवाड़ी पाठशाला स्थित प्रशाल का नाम गोपाल सिंह नेपाली के नाम पर रखा गया, जिसे भारत के नामचीन कवियों में बाल कवि वैरागी, काका हथरसी, निर्भय हथरसी, संतोष आनंद, रामरिख मनहर, हुल्लड़ मुरादाबादी, सुरेंद्र शर्मा, अशोक चक्रधर, प्रदीप चौबे, माया गोविंद, प्रभा ठाकुर, डॉ मंजु दीक्षित, जेमनी हरियाणवी जैसे कवियों ने सुशोभित किया है.