यहां से एक नयी राजनीतिक ऊर्जा के साथ बिहार की खिदमत का संकल्प लिया. बुधवार के विश्वासमत को लेकर उनके चेहरे पर कहीं कोई तनाव नहीं था. हां एक नयी बात जो देखने को मिली वह था कार्यकर्ताओं को पूरा तवज्जो देना और लोकसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा को लेकर अपनी गलती को स्वीकार करना.
उन्होंने साफगोई से कहा अब भावना से नहीं संकल्प के साथ बिहार की खिदमत करुंगा. बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विधानसभा में अपनी सरकार के लिए विश्वास मत हासिल करना है. अमूमन ऐसे समय कोई नेता राजधानी नहीं छोड़ता लेकिन मुख्यमंत्री इन सब के तनाव से दूर अपने जनता दरबार कार्यक्रम को स्थगित कर सोमवार को भागलपुर पहुंचे. इससे इतना तो समझा ही जा सकता है कि भागलपुर को वो कितना तवज्जो देते हैं. ऐसे भी उनके राजनीतिक जीवन का अहम पड़ाव भागलपुर है.
भागलपुर व सुलतानगंज दोनों जगह उन्होंने विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जतायी तो यह भी कहने से नहीं चूके कि 2010 में जनता ने उनके ही चेहरे पर वोट दिया था. ऐसे में लोकसभा चुनाव के बाद पद छोड़ कर बिहारवासियों के साथ अच्छा नहीं किया. अपने पूरे संबोधन में उन्होंने न तो जीतनराम मांझी का नाम लिया और न ही पुराने घटनाक्रम पर बहुत कुछ कहा. सुलतानगंज शायद अहम इसलिए भी था उसके एक तरफ शकुनी चौधरी का प्रभाव वाला क्षेत्र था तो एक तरफ उनके पुत्र सम्राट चौधरी का. दोनों अभी श्री कुमार के विरोधी हैं.
ये लोग आज पटना में श्री मांझी के साथ उपवास पर बैठे थे. मुख्यमंत्री के न्याय और विकास यात्र का पड़ाव सुल्तानगंज रह चुका है. मंच से उन्होंने राजनीति की बातें बहुत कम की. शिक्षकों की समस्याओं के समाधान की बात कह कर उन्होंने एक बड़े वर्ग को संतुष्ट किया तो खेल की चर्चा कर युवाओं को भी खुश किया. अंगिका अकादमी की बात कह कर भाषा की राजनीति के जरिए एक बड़ी आबादी को खुश भी किया. ऐसे भी सूबे की राजनीति में भाषा की राजनीति का अहम रोल है. उन्होंने आने वाले महीनों में बीते नौ माह की भरपायी की बात कह कर सभी को संतुष्ट करने एवं राजनीति एक नयी लकीर खींचने की कोशिश की. बहरहाल इतना तो तय है कि मुख्यमंत्री का यह दौरा न सिर्फ भागलपुर बल्कि अंग व कोसी दोनों की राजनीति को दूर तक प्रभावित करेगा.