दूसरे के सुख को देखकर दुखी होना क्षय रोग का प्रतीक
कहलगांव. कहलगांव गांगुली स्कूल के मैदान में श्रह हरिनाम संकीर्तन समिति के तत्वावधान में 33वें वार्षिक अध्यात्मिक समारोह के सातवें दिन झांसी से आये पंडित श्री सतपाल जी महाराज ने मानस रोगों का वर्णन करते हुए कहा कि दैहिक रोगों से देह छिन्न हो जाता है. मन के रोग से मनोयोग, सामाजिक संतुलन व व्यवहारिक […]
कहलगांव. कहलगांव गांगुली स्कूल के मैदान में श्रह हरिनाम संकीर्तन समिति के तत्वावधान में 33वें वार्षिक अध्यात्मिक समारोह के सातवें दिन झांसी से आये पंडित श्री सतपाल जी महाराज ने मानस रोगों का वर्णन करते हुए कहा कि दैहिक रोगों से देह छिन्न हो जाता है. मन के रोग से मनोयोग, सामाजिक संतुलन व व्यवहारिक पक्ष भी कमजोर होता है. दूसरो के सुख को देखकर दु:खी होना क्षय रोग का प्रतीक है जिससे श्वास सुख (अपना सुख) के होने का भी सुख प्राप्त नहीं होता. सत्संग में इन्हीं विविधाओं का परिचय होता है. इसलिए अध्यात्मिक सत्संग पारस्परिक एकता व सामाज्रिज अखंडता के लिये अति आवश्यक है. वृंदावन से आये मानस किंकर पुनित पाठक ने राम कथा का वर्णन में कहा राम की कथा जिससे व्यक्ति, समाज, परिवार और राष्ट्र इन तीनों का कल्याण होता है फिर भी हमारी दशा वही की वही है. जहां हम खड़े थे. सदग्रंथों की उपस्थिति में आज भी हमारी स्थिति वहीं की वहीं है क्योंकि हमने जीवन में तीन काम नहीं किये. हमने कभी किसी को अग्रगामी नहीं माना, अनुगामी नहीं माना एवं सहगामी नहीं माना. किसी को जीवन में न मानते हुए आगे निकल गये. परिणाम स्वरूप रास्ते में ठोकर खते गये. प्रभु की कथा यह शिक्षा देती है कि आज के समय में उसी का जीवन सफल है जिसके भीतर सुमति का धन है.