चिकित्सक का काम नर्स व ममता के जिम्मे
भागलपुर: सदर अस्पताल में चिकित्सक का काम नर्स व ममता ही करती हैं. जहां चिकित्सक के हस्ताक्षर की जरूरत होती है, सिर्फ वहीं चिकित्सक काम करते हैं. इसी वजह से अस्पताल में बच्च बदलने का आरोप नर्सो पर लगा है. शनिवार की रात अस्पताल में डॉ एके मंडल की ड्यूटी थी, पर प्रसव के दौरान […]
भागलपुर: सदर अस्पताल में चिकित्सक का काम नर्स व ममता ही करती हैं. जहां चिकित्सक के हस्ताक्षर की जरूरत होती है, सिर्फ वहीं चिकित्सक काम करते हैं. इसी वजह से अस्पताल में बच्च बदलने का आरोप नर्सो पर लगा है. शनिवार की रात अस्पताल में डॉ एके मंडल की ड्यूटी थी, पर प्रसव के दौरान वे अस्पताल में नहीं थे. हंगामा के बाद भी डॉ मंडल अस्पताल में नहीं दिखे. सूत्रों की मानें तो मरीजों के इंडोर में भरती होने पर रजिस्टर और बीएचटी में मरीज का नाम-पता, बीमारी, दवाओं के नाम तक नर्स ही लिखती है. यही वजह है कि हड़बड़ाहट में फीमेल की जगह मेल लिखा और अस्पताल में हंगामा हुआ.
प्रसव होते ही क्यों घर गयी प्रसूता. पूरे मामले में हैरानी की बात यह है कि प्रसव के 48 घंटे के बाद ही मरीज को अस्पताल से छुट्टी देने का नियम है. लेकिन पार्वती देवी प्रसव के आधा घंटा बाद ही परिजनों के साथ घर चली गयी. अस्पताल में मरीजों को रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है, न ही बीएचटी में लामा लिखा जाता है. मेडिकल टर्म के अनुसार अगर कोई मरीज अस्पताल से बिना छुट्टी लिये घर जाता है तो उसे लामा लिखा जाता है. लेकिन सदर अस्पताल से अधिकतर प्रसूता बच्चे को जन्म देने के बाद घर चली जाती है. ऐसे में कई बार उनकी स्थिति गंभीर भी हो जाती है.
सुरक्षा के नाम पर खानापूर्ति. अस्पताल में बच्चे की चोरी या अन्य तरह की घटना को रोकने के लिए सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था सिर्फ कागजों तक सीमित है. अस्पताल में मरीज के आने-जाने का कोई रिकॉर्ड नहीं रहता है. बड़े अस्पतालों में बच्चे के जन्म के बाद एक टैग (नंबर) लगा दिया जाता है ताकि अन्य नवजात से बच्च नहीं बदला जा सके. इसके पूर्व भी एक बार इंडोर में बच्च चोरी करने का आरोप यहां के कर्मियों पर लगा था. लेकिन अस्पताल कर्मियों ने उस घटना से भी कोई सबक नहीं लिया.
अस्पताल में स्टाफ की भी कमी. अस्पताल में शनिवार की रात से रविवार सुबह तक 10 बच्चे का जन्म हुआ. इस दौरान सिर्फ एक नर्स व दो ममता ड्यूटी पर थी. इसके पूर्व एक नर्स शैल वाला की ड्यूटी अस्पताल में प्रसव कक्ष इंचार्ज के तौर पर दी गयी थी, पर दो माह पूर्व सीएस ने उनका स्थानांतरण एएनएम स्कूल कर दिया. कुछ समय पूर्व अस्पताल में महिला व पुरुष चिकित्सकों की संख्या भी पर्याप्त थी, पर एक-एक कर उनको भी प्रतिनियुक्ति तोड़ कर पीएचसी भेज दिया गया. नतीजा यह है कि अब सदर अस्पताल में महिला चिकित्सक के साथ-साथ स्वास्थ्यकर्मियों की भी कमी हो गयी है. फिलहाल गोराडीह पीएचसी की चिकित्सक डॉ सीमा सिन्हा ड्यूटी ऑन कॉल हैं.
नर्सो पर लगते रहे हैं घूस लेने के आरोप. पहले भी सदर अस्पताल के नर्स व कर्मियों पर घूस लेने के आरोप लगते रहे हैं. अस्पताल में प्रसव कराने के बदले खुलेआम तीन से पांच सौ रुपये लिये जाते हैं, पर इस पर लगाम नहीं लग पा रहा है. सिस्टर रेणु पर भी पूर्व में घूस लेने का आरोप लगा था और उन्होंने एक माफीनामा भी प्रबंधन को लिखा था.
बिना इलाज कराये अस्पताल से लौटी महिला, बच्च गंभीर. सदर अस्पताल में सुबह 5:13 बजे लोदीपुर की रेखा देवी ने एक बच्ची को जन्म दिया. बच्ची की स्थिति गंभीर होने के कारण उसे रेफर कर दिया गया. रेखा देवी अपने बच्चे को इशाकचक के किसी चिकित्सक के यहां दिखाने ही गयी थी कि अस्पताल कर्मियों ने उसे फोन कर अस्पताल बुलाया. रेखा देवी बच्ची की जांच कराये बिना ही वापस अस्पताल आ गयी. जब पार्वती देवी के परिजनों ने बच्ची को देख लिया तब उन्हें तसल्ली हुई कि उससे बच्चे की बदली नहीं हुई है. इधर इलाज के अभाव में रेखा देवी की बच्ची की स्थिति बहुत ही गंभीर हो गयी, फिर अस्पताल कर्मियों ने रेखा देवी को बच्ची के इलाज के लिए एंबुलेंस से जेएलएनएमसीएच भेज दिया. दूसरी ओर कोढ़ा की अमृता देवी ने भी सुबह साढ़े छह बजे एक बच्ची को जन्म दिया था. उस बच्चे को भी पार्वती देवी परिजनों को दिखाया गया. हालांकि तब भी परिजन यह मानने को तैयार नहीं हुए कि उनका बच्च नहीं बदला गया है.
डीएनए टेस्ट से चल सकता है पता
घटना के बाद नवजात के पिता शंभु कुमार ठाकुर ने नवजात की रक्त जांच करायी. उसने बताया कि मेरा ब्लड ग्रुप ए पॉजिटिव, नवजात की मां का बी पॉजिटिव, नवजात का ओ पॉजिटिव है. उसकी दो बड़ी बहन में साढ़े चार वर्ष की साक्षी का एबी पॉजिटिव एवं तीन वर्ष की सोनाक्षी का बी पॉजिटिव रक्त है. इधर वरीय पैथोलॉजिस्ट डॉ रवि कांत मिश्र का कहना है कि नये मेडिकल रिसर्च में यह सामने आया है कि रक्त का ग्रुप बदल सकता है. इसमें कोई खास बात नहीं है. वैसे ए और बी पॉजिटिव ग्रुप जब मां-पिता का रहता है तो नवजात में ओ ग्रुप का चांस कम रहता है. इसका सही पता डीएनए टेस्ट से ही पता चल सकता है. यह हैदराबाद में होता है और इसका सैंपल लेने का तरीका भी अलग रहता है.
हंगामा के समय नहीं था कोई चिकित्सक
स्वास्थ्य विभाग के तहत जिला में कार्यरत कर्मचारियों में अधिकारियों के कार्रवाई का जरा भी डर नहीं है. जिसकी जो मरजी होती है, उसी हिसाब से काम करते हैं. रविवार को जब अस्पताल में बच्च बदलने के आरोप में परिजन हंगामा कर रहे थे. उस वक्त अस्पताल में एक भी चिकित्सक मौजूद नहीं थे. प्रभारी डॉ संजय कुमार को सूचना मिली तो वह अस्पताल आये और पुलिस को बुलाया गया. घटना सुबह आठ बजे की है पर सीएस डॉ शोभा सिन्हा को दोपहर एक बजे तक घटना की जानकारी नहीं थी.
गलती से लिखा गया होगा मेल : प्रभारी
सदर अस्पताल के प्रभारी डॉ संजय कुमार का कहना है कि बच्च बदलने का मामला सही नहीं है. ऐसा नहीं हुआ है पर गलती से फीमेल की जगह मेल लिख दिया गया. उन्होंने बताया कि सोमवार से निर्देश दिया जायेगा कि कम से कम 12 घंटे तक प्रसूता को हर हाल में अस्पताल में रखना है. अगर ऐसा नहीं होगा तो उस प्रसूता को लामा (लेफ्ट अगेंस्ट मेडिकल एडवाइस) कर दिया जायेगा. साथ ही उस महिला के साथ आयी आशा कार्यकर्ता व प्रसूता को सुरक्षा राशि से वंचित कर दिया जायेगा.