भागलपुर: आधुनिक विकास के नारों ने हमें विनाश के कगार पर ले आया है. इससे हमारी समृद्धि एवं शांति नष्ट हुई. हम असहाय और परावलंबी हुए हैं. बाढ़ व सुखाड़ हमारा बुलावा है. इसे रोकना भी हमें ही होगा.
उक्त बातें पर्यावरणविद् एवं गांधीवादी चिंतक अनुपम मिश्र ने शनिवार को किसान संघर्ष समिति, गांधी शांति प्रतिष्ठान केंद्र समेत विभिन्न सामाजिक संस्थाओं की ओर से केंद्र के सभागार में आयोजित पानी विमर्श : पूर्वी बिहार का जल संकट के दौरान कही. श्री मिश्र ने कहा कि देश की राजधानी दिल्ली में पहले आठ सौ तालाब थे, लेकिन आज खोजते नहीं मिलेंगे. वहां यमुना नदी दूषित होकर नाला हो गयी है. भारी मशक्कत व पैसे खर्च कर तीन सौ किलोमीटर दूर से पेयजल लाना पड़ता है.
यह सब विकास के नाम पर ही हो रहा है. आज शहर के तालाब बिल्डरों की जेब में चले गये. पहले तालाब था तो भूजल स्तर बना रहता था. पानी के लिए मारामारी नहीं होती थी. उन्होंने कहा कि हमारे नीति निर्माताओं ने नदियों-तालाबों जैसी हजारों-हजार वर्षो की अनुभव सिद्ध प्राकृतिक जल प्रबंधन व्यवस्था को सुनियोजित तरीके से नष्ट कर दिया है. इससे जुड़ी खेती-पशुपालन-दस्तकारी की उत्पादन वितरण व्यवस्था टूट गयी है. उन्होंने राजस्थान जयपुर के लापोड़िया गांव की चर्चा करते हुए बताया कि सिर्फ 15-20 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र में पुरखों के ज्ञान को अपना कर ऐसी जल प्रबंधन व्यवस्था की, जिसकी बदौलत नौ वर्षो का अकाल बिना किसी सहायता से ङोल पाये. कार्यक्रम की अध्यक्षता समाजवादी कार्यकर्ता सह किसान नेता सच्चिदानंद सिंह ने की. मंच का संचालन परिधि के उदय ने किया. विमर्श में बांका, जमुई, मुंगेर, कटिहार, नवगछिया, लखीसराय, खगड़िया आदि जिले के किसानों व प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.
कटिहार के मो मंसूर ने कहा कि पहले हम तैरते थे, अब हम डूबने के कगार पर पहुंच चुके हैं. यही तो विकास है. इस मौके पर रामशरण,भावानंद, डा मनोज,भगवान सिंह कुशवाहा, जवाहर मंडल, डा योगेंद्र, राम किशोर, सच्चिदानंद, वासुदेव भाई, संजय कुमार,अधिवक्ता निशित मिश्र, कुमार संतोष, संतोष कुमार, ठाकुर अमरेंद्र दत्तात्रेय, विजय सिंह धावक, एनुल होदा, चांद बहन, सुधांशु शेखर, रामानंद आदि उपस्थित थे.