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प्रो अरुण के कार्यकाल में फंसा था हजारों छात्रों का भविष्य

भागलपुर: मगध विश्वविद्यालय में वर्ष 2012 में हुए 12 फर्जी प्राचार्य नियुक्ति घोटाला मामले में शुक्रवार को निगरानी द्वारा गिरफ्तार किये गये तत्कालीन कुलपति प्रो अरुण कुमार वर्ष 2013 में 22 दिनों तक तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति के प्रभार में रहे थे. उनकी इतनी कम दिनों की सेवा के दौरान हुए दो मामलों का […]

भागलपुर: मगध विश्वविद्यालय में वर्ष 2012 में हुए 12 फर्जी प्राचार्य नियुक्ति घोटाला मामले में शुक्रवार को निगरानी द्वारा गिरफ्तार किये गये तत्कालीन कुलपति प्रो अरुण कुमार वर्ष 2013 में 22 दिनों तक तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति के प्रभार में रहे थे.

उनकी इतनी कम दिनों की सेवा के दौरान हुए दो मामलों का खुलासा उनके जाने के बाद हुआ और विश्वविद्यालय का माहौल पूरी तरह गरमा गया था. पहला मामला यह था कि बीएड, एमबीए व प्री पीएचडी की उत्तरपुस्तिकाएं उनके कार्यकाल में जांचने के लिए कहां भेजी गयी थी, इसका पता उन्होंने किसी को नहीं दिया था. दूसरा मामला यह था कि मगध विश्वविद्यालय के लेटरपैड पर प्रो कुमार ने टीएमबीयू के परीक्षा नियंत्रक की नियुक्ति कर दी थी.

बीएड, एमबीए व प्री पीएचडी की कॉपियां नहीं मिलने से छात्र व छात्र संगठनों ने लगातार आंदोलन किया था. आंदोलन के दौरान हुई तोड़फोड़ व बंदी के कारण विवि को भारी क्षति उठानी पड़ी थी. 14 मार्च 2013 तक वह यहां कुलपति रहे. इसके बाद प्रो अंजनी कुमार श्रीवास्तव कुलपति बनाये गये.

प्रो श्रीवास्तव ने भी कॉपी ढूंढ़ने की जोर लगायी, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी. इस दौरान प्रो श्रीवास्तव को राजभवन ने कुलपति पद से हटा दिया और प्रो एनके वर्मा को कुलपति का प्रभार सौंपा. प्रो वर्मा ने भी कॉपियां ढूंढ़ने में मशक्कत की. इस कार्य में तत्कालीन डीएसडब्ल्यू को जिम्मेवारी सौंपी गयी. पड़ताल शुरू की गयी. कॉपियां जांच के लिए प्रो अरुण कुमार के कार्यकाल में बनाये गये रजिस्टर में केवल इतना ही लिखा मिला कि बीएड, एमबीए व प्रीपीएचडी की कॉपियों का फेयर इवेल्वेशन के लिए अन्यत्र भेजा गया है. इससे कुछ पता नहीं चलने के कारण विवि प्रशासन ने पूर्व कुलपति प्रो कुमार से संपर्क किया. बार-बार कुरेदे जाने के बाद उन्होंने एक मोबाइल नंबर दिया. उस नंबर पर संपर्क करने के बाद पता चला कि सारी कॉपियां बीआरए बिहार विवि मुजफ्फरपुर में हैं.

दूसरी ओर मगध विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो अरुण कुमार ने जिस लेटर पैड पर परीक्षा नियंत्रक की नियुक्ति की थी, उसमें कई विसंगतियां उजागर हुई थी. एक तो यह कि परीक्षा नियंत्रक की नियुक्ति मगध विश्वविद्यालय के लेटर पैड पर की गयी थी और दूसरा परीक्षा नियंत्रक का नाम डॉ रामचंद्र पूर्वे लिखा था, जबकि परीक्षा नियंत्रक के पद पर डॉ रामाशीष पूर्वे कार्यरत हुए थे. तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक की नियुक्ति को लेकर वर्ष 2013 में 13 मार्च को पत्र संख्या 185/सी जारी किया था. इस पत्र में मारवाड़ी कॉलेज भागलपुर के डॉ रामचंद्र पूर्वे को परीक्षा नियंत्रक बनाने की बात कही गयी थी. इसे गैरकानूनी बताते हुए छात्र संगठनों ने जम कर विरोध किया था.

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