यूरोपियन देशों में चमड़े पर लिखी जाती थी पांडुलिपि

-राष्ट्रीय कार्यशाला में टीएमबीयू के प्रतिकुलपति ने दिया व्याख्यानफोटो : सुरेंद्रवरीय संवाददाता, भागलपुरतिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय में आयोजित 21 दिवसीय कार्यशाला में प्रतिकुलपति प्रो एके राय ने व्याख्यान दिया. वनस्पति विज्ञान के विशेषज्ञ प्रो राय ने पांडुलिपियों की अपने विषय के नजरिये से व्याख्या की. उन्होंने कहा कि भारत में पेड़-पौधों से प्राप्त […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 23, 2015 12:05 AM

-राष्ट्रीय कार्यशाला में टीएमबीयू के प्रतिकुलपति ने दिया व्याख्यानफोटो : सुरेंद्रवरीय संवाददाता, भागलपुरतिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय में आयोजित 21 दिवसीय कार्यशाला में प्रतिकुलपति प्रो एके राय ने व्याख्यान दिया. वनस्पति विज्ञान के विशेषज्ञ प्रो राय ने पांडुलिपियों की अपने विषय के नजरिये से व्याख्या की. उन्होंने कहा कि भारत में पेड़-पौधों से प्राप्त पत्र पर पांडुलिपि लिखी जाती थी. लेकिन यूरोपियन देशों में जानवर के चमड़े पर लिखी जाती थी. पांडुलिपियां भोजपत्र, तालपत्र, हंसी पत्ता आदि पर मिलता है. भोजपत्र के पेड़ बहुतायत मात्रा में पश्चिम भारत में मिलते हैं. हंसी पत्ता अगरू पेड़ से मिलते हैं. यह असम में पाया जाता है. यूरोपियन देशों में गाय, बकरे, भेड़ के चमड़े पर पांडुलिपि लिखी जाती थी. 200 पेज की किताब लिखने के लिए 100 भेड़ को मारना पड़ता था. इसके चमड़े पर लिखने के लिए समुद्र में पाये जानेवाले जीव स्क्वीड व ओक पेड़ से इंक और हंस के पंख से कलम बनाया जाता था. उन्होंने कहा कि पांडुलिपियों से हम यह जान पाते हैं कि हमारे पूर्वजों का ज्ञान कैसा था. वे अपने ज्ञान को किस तरह किस रूप में सहेजते थे. इस मौके पर आयोजन सचिव बसंत कुमार चौधरी, पीजी मैथिली के विभागाध्यक्ष डॉ केष्कर ठाकुर, पीजी संगीत की विभागाध्यक्ष डॉ निशा झा आदि मौजूद थे.

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