नजर अभी सीटों के बंटवारे पर

भागलपुर भागलपुर विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है, लेकिन पिछले साल हुए उपचुनाव में उसे करारा झटका लगा. वर्ष 2010 के चुनाव में भाजपा जीती थी. उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस की झोली में चली गयी. भाजपा पर जदयू के अलग होने का असर 2014 के उपचुनाव में दिख चुका है. हालांकि इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 2, 2015 4:42 PM

भागलपुर

भागलपुर विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है, लेकिन पिछले साल हुए उपचुनाव में उसे करारा झटका लगा. वर्ष 2010 के चुनाव में भाजपा जीती थी. उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस की झोली में चली गयी. भाजपा पर जदयू के अलग होने का असर 2014 के उपचुनाव में दिख चुका है. हालांकि इस विधानसभा क्षेत्र में उसे सबसे ज्यादा 52.18 फीसदी वोट मिले, लेकिन लोकसभा सीट वह नहीं बचा सकी. 24 वर्ष में पहली बार उसे यहां शिकस्त का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में वह इस नुकसान की भरपाई करने की पूरी कोशिश में है. दूसरी ओर पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस यहां दूसरे नंबर पर रही थी. उपचुनाव के बाद यह सीट उसके पास है, जबकि लोकसभा चुनाव में राजद दूसरे और जदयू तीसरे स्थान पर रहा था. महागंठबंधन में इस सीट पर कांग्रेस की दावेदारी ज्यादा सशक्त हो सकती है.
अब तक :
कांग्रेस का उम्मीदवार लगभग तय है. इसके वर्तमान विधायक अजीत शर्मा दोबारा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. भाजपा में प्रत्याशी के नाम पर खींचतान जारी है.
इन दिनों :
कांग्रेस व भाजपा के वार्ड स्तर पर जनसंपर्क अभियान का एक चरण पूरा कर चुका है. जदयू घर-घर दस्तक के बाद अब कार्यकर्ता सम्मेलन कर रहा है.
नाथनगर
नये समीकरण पर बहस का दौर
इस सीट से लंबे समय तक सुधा श्रीवास्तव जीतती रहीं. 2010 में जदयू के टिकट पर अजय मंडल यहां से जीते. उन्होंने राजद के अबु कैसर को लगभग साढ़े चार हजार वोट के अंतर से पराजित किया था. इस बार जदयू से उनकी उम्मीदवारी पर संकट मंडरा रहा है. अबु कैसर अब जदयू में हैं. महागंठबंधन में यह सीट राजद या कांग्रेस के खाते में भी जा सकती है. पिछले चुनाव में राजद यहां दूसरे और कांग्रेस तीसरे स्थान पर थी. लोकसभा चुनाव में राजद को सबसे ज्यादा वोट मिले थे. एनडीए की ओर से फिलहाल कुछ तय नहीं है, लेकिन यह माना जा रहा है कि यह सीट लोजपा या रालोसपा के खाते में जा सकती है. ऐसे में जिन नेताओं के टिकट कटेंगे, चुनाव में उनकी भूमिका पर बहुत कुछ निर्भर करेगा. जाहिर है कि यहां की चुनावी तसवीर पिछली बार के मुकाबले बिल्कुल अलग होगी. फिलवक्त नये राजनीतिक समीकरण को लेकर कयास ही लगाये जा रहे हैं.
कहलगांव
रहा है कांग्रेस का कब्जा
इस सीट पर फिलहाल कांग्रेस के दिग्गज नेता व विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष सदानंद सिंह का कब्जा है. पिछले चुनाव में उन्होंने जदयू की कहकशां परवीन को शिकस्त दी थी. वैसे तो इस सीट पर 30 वर्षो से कांग्रेस का कब्जा रहा है, लेकिन वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में सदानंद सिंह को जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले अजय मंडल ने हरा दिया था. सदानंद सिंह की हार पीपा पुल के मुद्दे पर हुई थी. वर्षो से यहां के लोग पीपा पुल का दंश ङोल रहे थे. खास कर बारिश के दिनों में कहलगांव के लोग सड़क मार्ग से भागलपुर नहीं जा पाते थे. सदानंद सिंह का इस बार भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है. वहीं राजद और जदयू की भी दावेदारी हो सकती है. एनडीए की ओर से लोजपा व रालोसपा दोनों जोर लगा रही हैं. ऐसे में राजनीतिक तसवीर अब तक साफ नहीं है, लेकिन इतना तय है कि मुकाबला दिलचस्प होगा.
गोपालपुर
जदयू को हैटट्रिक की उम्मीद
यह सीट फिलवक्त जदयू के पास है. उसने राजद को यहां हराया था. इस बार राजद-जदयू साथ-साथ हैं. लिहाजा दोनों दलों के स्थानीय नेता अपनी दावेदारी पेश करने में जुटे हैं. यहां से लगातार दो टर्म से गोपाल मंडल उर्फ नरेंद्र कुमार नीरज जदयू के टिकट पर चुनाव जीतते रहे हैं. पिछले चुनाव में राजद के प्रत्याशी अमित राणा दूसरे स्थान पर रहे थे. उनका जातिगत आधार मजबूत माना जाता है. वहीं भाजपा के लिए भी यह प्रतिष्ठा की सीट है. इसके नेता क्षेत्र की बदहाली को मुद्दा बना रहे हैं और इसका ठीकरा जदयू विधायक के माथे फोड़ने में लगे हैं. हालांकि जदयू के अलग होने के बाद उसके वोट प्रतिशत में कमी आयी है. यह लोकसभा चुनाव में उसके प्रदर्शन के आधार पर कहा जा सकता है. लोकसभा चुनाव में उसे राजद ने दूसरे नंबर पर रोका. राजद का यहां बड़ा वोट बैंक है. इसका लाभ महागंठबंधन को मिल सकता है. हालांकि बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करेगा कि वह उम्मीदवार किसे बनाता है.
बिहपुर
टिकट के लिए लगा रहे दौड़
यह भागलुपर के राजद सांसद शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल का गृह विधानसभा क्षेत्र है. लोकसभा चुनाव में राजद को भागलपुर जिले में सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत इसी विधानसभा क्षेत्र में मिला था. पिछले विधानासभा चुनाव में वह दूसरे नंबर पर था. भाजपा के कुमार शैलेंद्र ने उसके उम्मीदवार बुलो मंडल को बहुत कम मतों के अंतर से हराया था. लिहाजा महागंठबंधन में इस सीट पर राजद की स्वाभाविक दावेदारी बनती है. सांसद भी अपने चहेते को यहां से चुनाव लड़ाना चाहेंगे. वहीं कांग्रेस भी इस सीट के लिए जोर लगा रही है. पिछले चुनाव में वह तीसरे स्थान पर थी. उधर बतौर विधायक कुमार शैलेंद्र ने क्षेत्र के विकास के लिए कई बड़े काम किये हैं. वे इस बार चुनाव में उसे भुनाने की भरपूर कोशिश करेंगे. हालांकि भाजपा के दूसरे नेता भी यहां से टिकट पाने की कोशिश में लगे हुए हैं. जो भी हो, यहां एनडीए से भाजपा का ही उम्मीदवार होगा, इतना तय माना जा रहा है.
सुलतानगंज
हर पार्टी में टिकट के कई दावेदार
यह सीट दो बार से जदयू के खाते में है. पिछली बार सुबोध राय यहां से जदयू के टिकट पर चुनाव लड़े और राजद के रामावतार मंडल को मतों के बड़े अंतर से हराया. उसके पहले यहां से जदयू के टिकट पर सुधांशु शेखर भास्कर चुनाव जीते थे. भास्कर के पूर्व यह सीट राजद के पास थी. उसके गणोश पासवान यहां से विधायक चुने गये थे. इस लिहाज से यह सीट महागंठबंधन के दोनों प्रमुख घटक दलों के लिए अहम है. लोकसभा चुनाव में जदयू से अलग होने के बाद भी भाजपा का वोट प्रतिशत सबसे ज्यादा था. हालांकि राजद और उसके वोटों के बीच मतों का बहुत अंतर नहीं था. फिर भी उसका प्रदर्शन सबसे अच्छा था. इस बात का अहसास उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं को है. लिहाजा इस पार्टी में टिकट पाने की उम्मीद रखने वालों की संख्या कम नहीं है. उधर डॉ चक्रपाणि हिमांशु भी चुनाव में भाग्य आजमाने की तैयारी में हैं. वे पहले राजद के जिलाध्यक्ष थे. अभी किसी दल में नहीं हैं. इस सीट पर लोजपा की भी नजर है. वह भी लंबे समय से यहां अपनी जमीन तैयार करने में जुटी हुई है.
अब तक
विधायक पंचायत स्तर पर जनसंपर्क कर चुके हैं. लोजपा भी पैठ बनाने जुटी हुई है. भाजपा की सभी बूथ कमेटी लगभग गठित हो चुकी है.
इन दिनों
जदयू का कार्यकर्ता सम्मेलन पूरा हो चुका है. भाजपा प्रधानमंत्री के संदेशों व कार्यक्रमों की जानकारी जनता तक पहुंचने में लगी है.

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