रेयरेस्ट टय़ूमर का ऑपरेशन जेएलएनएमसीएच में संभव

रेडियोलॉजी व सजर्री की टीम ने मिल कर आदर्श के पेट से सोमवार को निकाला था छह किलो का टय़ूमर दुनिया में इस तरह के 100 से भी कम मामले अभी तक आये हैं सामने निशि रंजन ठाकुर भागलपुर : जवाहरलाल नेहरू अस्पताल, मायागंज में राघोपुर, परबत्ता के 10 साल के आदर्श कुमार के पेट […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 12, 2015 7:11 AM
रेडियोलॉजी व सजर्री की टीम ने मिल कर आदर्श के पेट से सोमवार को निकाला था छह किलो का टय़ूमर
दुनिया में इस तरह के 100 से भी कम मामले अभी तक आये हैं सामने
निशि रंजन ठाकुर
भागलपुर : जवाहरलाल नेहरू अस्पताल, मायागंज में राघोपुर, परबत्ता के 10 साल के आदर्श कुमार के पेट से सजर्री के जरिये 6 किलो का ट्यूमर निकाला गया. डॉक्टरों के अनुसार यह एक दुर्लभतम मामला है.
इस टय़ूमर का ऑपरेशन करनेवाले सजर्री विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉक्टर डॉ पंकज के अनुसार इस तरह के टय़ूमर को डरमायोड कहा जाता है. इस तरह के टय़ूमर में दांत और केश भी होते हैं. महिलाओं में यह टय़ूमर होता है, लेकिन पुरुष में यह टय़ूमर दुर्लभतम है.
पेट में यह टय़ूमर रेयरेस्ट ऑफ द रेयर है. इस टय़ूमर का एक 10 साल के पुरुष बच्चे में मिलना व उसका सफलतापूर्वक ऑपरेशन डॉक्टरों के अनुसार पूर्वी बिहार के महत्वपूर्ण अस्पताल जेएलएनएनसीएच की महत्वपूर्ण उपलब्धि है. डॉ पंकज ने बताया कि विश्व में इस तरह के 100 से भी कम मामले अभी तक सामने आये हैं.
क्यों था मुश्किल ऑपरेशन
इस टय़ूमर ने पेट में आइवीसी नली को चारों तरफ से घेर लिया था. आइवीसी नली से ही हृदय से खून का संचरण होता है. ऑपरेशन के दौरान इस नली से जरा सा भी छेड़छाड़ से मरीज की जान जा सकती है.
डॉक्टर पंकज ने बताया कि टय़ूमर को आंत व आइवीसी नली से बगैर किसी क्षति के अलग करना सबसे बड़ी चुनौती थी. लेकिन इस चुनौती को हमारी टीम ने बखूबी पूरा किया. इसके अलावा टय़ूमर की पहचान करना काफी मुश्किल था.
कैसे हुई टय़ूमर की पहचान
डॉ पंकज के अनुसार टय़ूमर की पहचान का पूरा श्रेय रेडियोलॉजी विभाग के प्रभारी अध्यक्ष डॉ एके मुरारका को है. इसकी पहचान काफी मुश्किल थी. रोगी काफी गरीब था, इसलिए बेहद महंगे जांच नहीं हो सकते थे. लेकिन डॉ मुरारका ने इसकी पहचान कर ऑपरेशन की पूरी रूपरेखा बनायी.
रेडियोलॉजी विभाग की ये बड़ी उपलब्धि है. डॉ मुरारका ने बताया कि 18 साल में उन्होंने जेएलएनएमसीएच में इस तरह का पहला केस देखा. डॉ पंकज ने कहा कि डॉ राकेश का भी इसमें बड़ा योगदान रहा. जेएलएनएमसीएच में इस तरह के ऑपरेशन से एक नयी शुरुआत हुई है, जिससे मरीजों को काफी फायदा होगा.
क्यों है यह रेयरेस्ट मामला
आदर्श के मामले में टय़ूमर टेस्टिज में नहीं, पेट में था. मतलब टेस्टिज की कोशिका से टय़ूमर पेट में बन गया था. 6 किलो और 20 सेंटीमीटर गुणा 18 सेंटीमीटर के टय़ूमर में बाल के गुच्छे, दांत, हड्डी के साथ टूथपेस्ट जैसा तरल द्रव्य भी था. पेट में बाल और हड्डी लिये टय़ूमर दुलर्भतम था.

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