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जीते तो हम, हारी तो जनता !

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By Prabhat Khabar Digital Desk | October 13, 2015 12:40 AM

नजरिया

कुमार राहुल

वोट पड़ चुका है. इस बार भी शहर ने निराश किया. गांव जागते रहा. इसके पीछे कई कारण हैं. विडंबना है कि सबसे पढ़े-लिखे का दावा करनेवाले अपने घर में कैद रहे. वो टीवी देखते रहे, अखबार बांचते रहे, मन ही मन गुणा-भाग करते रहे, लेकिन वोट करने बूथ तक नहीं गये. धूप ज्यों ही तीखी हुई शहर में सन्नाटा अपना डैना फैलाने लगा, लेकिन गांव आबाद रहा. सबौर, पीरपैंती, कहलगांव के सुदूर ग्रामीण इलाके भरी दोपहरी में भी गुलजार रहे.

गांव में किसी उत्सव से कम नहीं लग रहा था नजारा. जिस दियारा क्षेत्र में इससे पहले अप्रिय घटनाएं घटती थी, इस बार शांत रहा. लोगों ने इस इलाके में झूम कर वोट डाला. वोट प्रतिशत बढ़ाने में जागरूकता के साथ ही इच्छाशक्ति की कमी भी एक महत्वपूर्ण कारक है, नहीं तो जिस क्षेत्र में सभी प्रत्याशी रात-दिन एक किये रहते हैं, उस इलाके में ही वोट प्रतिशत में गिरावट काफी कुछ कहता है.

इसे राजनीति के गुणा-भाग से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए. आज भले ही वोट के बाद सभी प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन उन्हें यह जानना होगा कि कही न कहीं, किसी न किसी रूप में इस जीत के दावे के पीछे शहरी जनता का बूथ तक नहीं जाना बड़ी हार है. इससे अलहदा ये भी ध्यान देने की बात है कि यदि सब जीत ही रहे हैं, तो हार कौन रहा है! जैसे जीत का दावा करना एक ‘सच्चा झूठ’ की तरह है, वैसे ही हार का ठीकरा फोड़ना भी ‘पारंपरिक औचार’. यह भी तय जैसा है कि हार का ठीकरा परिणाम के बाद जनता पर फोड़ा जायेगा. अब जनता कुछ तय करे कि वह किस ओर है!

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