बंगीय साहत्यि परिषद : पहले था गुलजार, अब है वीरानगी
बंगीय साहित्य परिषद : पहले था गुलजार, अब है वीरानगी -चंदा से नहीं चलेगा काम, बड़े फंड की है जरूरतसंवाददाता, भागलपुरऐतिहासिक स्थल बंगीय साहित्य परिषद का भवन बनने के बाद जिस स्थिति में था, आज भी उसी स्थिति में है. भवन में कोई बदलाव नहीं आया है. एक हॉल और तीन कमरे के इस भवन […]
बंगीय साहित्य परिषद : पहले था गुलजार, अब है वीरानगी -चंदा से नहीं चलेगा काम, बड़े फंड की है जरूरतसंवाददाता, भागलपुरऐतिहासिक स्थल बंगीय साहित्य परिषद का भवन बनने के बाद जिस स्थिति में था, आज भी उसी स्थिति में है. भवन में कोई बदलाव नहीं आया है. एक हॉल और तीन कमरे के इस भवन का विस्तार नहीं हो सका है. दरअसल, सरकारी राशि से नहीं, बल्कि चंदे के पैसे से कराये गये मेंटेनेंस पर भवन टिका है. इसकी खाली पड़ी जमीन पर समिति ने तत्कालीन कृषि मंत्री विजय मित्रा के नाम का मार्केट बनाने की सोची थी, मगर वह भी संभव नहीं हो सका था. भवन में न तो शौचालय है और न ही पानी की व्यवस्था. इस ऐतिहासिक स्थल के भवन के विस्तार के लिए फंड की जरूरत है.आइटी के इस युग में अध्ययन को लेकर लाइब्रेरी का महत्व कम हो गया है. अध्ययन को लेकर सारी जरूरत की सामग्री लाइब्रेरी से बाहर ही मिल जाया करती है. इस कारण बंगीय साहित्य परिषद में अब वीरानगी छायी रहती है. एक समय था, जब इसके चंद्रशेखर हॉल में स्थापित लाइब्रेरी गुलजार रहता था. अब यहां अध्ययन के लिए नहीं के बराबर लोग पहुंचते हैं. केवल छोटा-मोटा आयोजन के लिए बंगीय साहित्य परिषद रह गया है. ये है इतिहास बंगीय साहित्य परिषद कार्य समिति के पूर्व सेक्रेटरी अरुणाभ बोस बताते हैं कि अगस्त 1905 में बंगीय साहित्य परिषद का दूसरा संगठन भागलपुर में बनाया गया. पहला संगठन रंगपुर में बना गया, जो बंगाल दो भागों में विभाजन होने से यह अब बांग्लादेश में है. दरअसल, प्रसिद्ध साहित्यकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय, गिरीश नाथ गंगोपाध्याय, सुरेंद्र नाथ गंगोपाध्याय, विभूमि भूषण भट्ट, निरूपमा देवी आदि का भागलपुर निवास स्थान रहा है. साहित्यकारों के जमावड़ा को लेकर ही संगठन बनाया गया. पहले परिषद की गतिविधियां भागलपुर इंस्टीच्यूट में चलती थी. 13 फरवरी से 15 फरवरी 1910 के बीच बंगीय साहित्य परिषद के तीसरे वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने कवि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर भागलपुर आये थे. 375 रुपये प्रति कट्ठा की दर से मिली थी जमीन बंगीय साहित्य परिषद के सचिव निरूपम कांति पाल ने बताया कि आदमपुर स्थित राजबाटी के सतीश चंद्र बनर्जी के पुत्र शचींद्र बनर्जी ने वर्ष 1932 में 375 रुपये प्रति कट्ठा की दर से तीन कट्ठा आठ धुर जमीन परिषद को दी थी. उस समय परिषद के अध्यक्ष राय बहादुर रंजीत सिंह थे. भागलपुर के तत्कालीन निवासियों ने आर्थिक मदद कर परिषद का भवन बनवाया था. भवन बनवाने में चंद्रशेखर सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका थी. इसलिए परिषद भवन के मुख्य हॉल का नाम चंद्रशेखर हॉल रखा गया है. भवन का उद्घाटन 14 अप्रैल 1939 को रंजीत सिंह व उनकी पत्नी राधा रानी सिंह ने किया था. प्रोफाइल वर्ष 1905 : अगस्त में बंगीय साहित्य परिषद का देश का दूसरा संगठन भागलपुर में बनाया गया था. वर्ष 1932 : 375 रुपये प्रति कट्ठा के दर से तीन कट्ठा आठ धुर जमीन परिषद को मिली थी.वर्ष 1939 : 14 अप्रैल को परिषद के भवन का उद्घाटन हुआ था.