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कार्रवाई के खौफ से जर्जर क्वार्टर में रहते हैं कर्मचारी

कार्रवाई के खौफ से जर्जर क्वार्टर में रहते हैं कर्मचारी हाल शहर की ऐतिहासिक इमारतों का : इस्ट रेलवे कॉलोनी के क्वार्टरफोटो : आशुतोष -चार जगहों में सबसे ज्यादा जर्जर हैं इस्ट रेलवे कॉलोनी के क्वार्टर दो-तीन साल पर होती है मरम्मत, मामूली राशि होती है खर्च संवाददाता, भागलपुरआजादी से पहले चार जगहों पर बने […]

कार्रवाई के खौफ से जर्जर क्वार्टर में रहते हैं कर्मचारी हाल शहर की ऐतिहासिक इमारतों का : इस्ट रेलवे कॉलोनी के क्वार्टरफोटो : आशुतोष -चार जगहों में सबसे ज्यादा जर्जर हैं इस्ट रेलवे कॉलोनी के क्वार्टर दो-तीन साल पर होती है मरम्मत, मामूली राशि होती है खर्च संवाददाता, भागलपुरआजादी से पहले चार जगहों पर बने रेलवे के अधिकतर क्वार्टर जर्जर तो एक दशक पहले ही हो चुके हैं, लेकिन अब तो रहने लायक भी नहीं बचे हैं. ऐसे क्वार्टरों का रेलवे न तो नवीनीकरण कर रहा है, न ही जर्जर घोषित कर रहा है. इन क्वार्टरों मेंं रहनेवाले रेल कर्मचारियों से जब पूछा कि क्वार्टर की जर्जर हालत की शिकायत अधिकारी से क्यों नहीं करते हैं, तो उनका जवाब था कि शिकायत कर अपना गला क्यों फंसायें. मतलब अधिकारियों के खौफ से रेलवे कर्मचारी मजबूरन जर्जर क्वार्टर में रहते हैं. वर्तमान स्थित छत कमजोर, तो उखड़ गये हैं प्लास्टर अंगरेजी शासन काल में लोको शेड के नजदीक इस्ट रेलवे कॉलोनी, पार्सल के नजदीक वेस्ट रेलवे कॉलोनी, डिक्सन मोड़ के नजदीक नार्थ-इस्ट रेलवे कॉलोनी एवं बरारी में क्वार्टर बने थे. उक्त सभी स्थानों पर रेलवे के लगभग 425 क्वार्टर हैं. अधिकतर क्वार्टर इस कदर जर्जर हो चुके हैं कि उसमें रहना जान जोखिम में डालने जैसा है. सबसे ज्यादा इस्ट रेलवे कॉलोनी के क्वार्टर जर्जर है. यहां करीब 300 क्वार्टर हैं. अधिकतकर क्वार्टर की बिल्डिंग पर छोटे-छोटे पौधे उग आये हैं, भवन में दरार आ गयी है. छत कमजोर गयी है. प्लास्टर उखड़ गये हैं. सीढ़ियां टूट चुकी हैं. बरसात में छत से पानी टपकता है. बरारी का भी क्वार्टर पूरी तरह से जर्जर है. खिड़कियां टूटी हुई, तो छत कमजोर और पुरानी दीवार भी जवाब दे गया है. यही हाल डिक्सन मोड़ के नजदीक नार्थ-इर्स्ट क्वार्टरों की है. डिक्सन मोड़ से बस स्टैंड जाने वाली सड़क ऊंची होने से क्वार्टर नीचे हो गया है. सड़क और क्वार्टर की खिड़कियां लेवल में आ गयी है, जिससे रेलवे कर्मचारियों को परेशानी होती है. झाड़-पात ने क्वार्टर को ढक रखा है. बरसात में रेलवे कर्मचारियों का रहना मुश्किल हो जाता है. मालदा डिवीजन जब बना, तभी से मरम्मत के लिए पड़ने लगी जरूरतवर्ष 1984 में मालदा डिवीजन बनने के बाद से अंगरेजी शासनकाल में बने इन क्वार्टर को मरम्मत की जरूरत पड़ने लगी. मगर, मरम्मत के नाम पर केवल खानापूरी होती रही. रेलवे सूत्र की मानें तो मरम्मत में सबसे बड़ा बाधक बजट बना रहा. यही कारण है कि दो-तीन साल पर जर्जर क्वार्टर के मरम्मत पर मामूली खर्च किया जाता है. 40-45 लाख के बजट में जमालपुर से लेकर भागलपुर तक के जर्जर क्वार्टरों की मरम्मत होती है. हालांकि रेलवे ने जर्जर क्वार्टर की मरम्मत को लेकर टेंडर निकाला है. इर्स्ट, वेस्ट व नार्थ-इस्ट रेलवे कॉलोनी के लिए टेंडर की प्रक्रिया अपनायी जा रही है. रेल सूत्र की मानें तो दो-चार दिन में टेंडर फाइनल हो जायेगा और इस मार्च तक उक्त में से कोई एक रेलवे कॉलोनी के जर्जर क्वार्टर मरम्मत हो जायेंगे. फिलहाल इस्ट रेलवे कॉलोनी के बिल्डिंग की रंग-रोगन किया जा रहा है. पिछली बार के निरीक्षण में वेस्ट रेलवे कॉलोनी और सुलतानगंज के रेलवे क्वार्टर का निरीक्षण किया था. वैसी स्थिति नहीं है, जिसे गंभीर बताया जा सके. फिर भी अंगरेजी शासन काल में बने क्वार्टर को मरम्मत की जरूरत है. बजट जैसे-जैसे आता है, उसी हिसाब से मरम्मत को लेकर प्लानिंग की जाती है. फिलहाल, एकदम जर्जर क्वार्टरों के बारे में जानकारी नहीं मिली है. डिटेल लेकर जांच करायी जायेगी और मरम्मत हाेगी.राजेश अर्गल, डीआरम, मालदा

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