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साहत्यिकार का कॉलम ::: सृजनकर्मियों का विरोध उनका अधिकार

साहित्यकार का कॉलम ::: सृजनकर्मियों का विरोध उनका अधिकारउदयमनुष्य हमेशा से आजादी पसंद रहा है. बंदिशें तोड़ने के संघर्ष ने ही सभ्यता को आगे बढ़ाया है. सभ्यता के विकास के क्रम में आज हम जहां खड़े हैं यह लोकतंत्र और विज्ञान का युग है. हम इससे पीछे नहीं जा सकते. लोकतंत्र की मजबूती के लिए […]

साहित्यकार का कॉलम ::: सृजनकर्मियों का विरोध उनका अधिकारउदयमनुष्य हमेशा से आजादी पसंद रहा है. बंदिशें तोड़ने के संघर्ष ने ही सभ्यता को आगे बढ़ाया है. सभ्यता के विकास के क्रम में आज हम जहां खड़े हैं यह लोकतंत्र और विज्ञान का युग है. हम इससे पीछे नहीं जा सकते. लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है अभिव्यक्ति की आजादी. आवाज व्यक्ति की हो या समुदाय की उसे दबाना सभ्यता, लाेकतंत्र और इतिहास विरोधी है. विरोधी स्वर का सम्मान, लोकतंत्र का गुण है. अभिव्यक्ति की आजादी और सहिष्णुता एक दूसरे से जुड़ा है. असहिष्णु होकर प्रगतिशील आवाज को बंद करना किसी दल विशेष का मामला नहीं है. सत्ता हमेशा यथास्थिति बनाये रखने का हमेशा प्रयास करती रही है. कोई राजनीतिक दल खुल कर असहिष्णुता का समर्थन नहीं करता. किंतु गौर से देखें तो फरेब के सहारे नफरत और असहिष्णुता को बढ़ाने का प्रयास हो रहा है. एक व्यक्ति भड़काउ और विभेदकारी बयान देता है दूसरा विरोध करता. फिर तीसरा अन्य बयान लेकर आ जाता है. असहिष्णुता के राजनीतिक इस्तेमाल के गंभीर परिणाम हो सकते हैं. जब भी अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा बढ़ेगा, कमजोर और उत्पीड़ित वर्ग इसके ज्यादा शिकार होंगे. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत राष्ट्र का निर्माण किस प्रकार हुआ है. भारतीय राष्ट्र के अंदर कई उपराष्ट्रीयता निहित है. भाषा, खाना-पान, वेशभूषा, मान्यताओं की भिन्नता से हमारा राष्ट्र बना है. इन मान्यताओं की भिन्नता का सम्मान करना ही होगा. जो लोग देश पर एक खास धर्मजनित संस्कृति थोपने की बात कर रहे हैं, सही मायने वे राष्ट्र विरोधी है. भारत राष्ट्र को कमजोर कर रहे हैं.अगर हमारा देश विरोधी स्वर को सम्मान नहीं देता, अभिव्यक्ति की आजादी नहीं होती तो कबीर नहीं होते, राजा राजामोहन राय नहीं होते. साहित्यकार, कलाकर या कोई भी सृजनधर्मी वर्तमान से आगे का भविष्य देखता है. सभ्यता का वाहक बनता है. समाज के इन सृजन कर्मियों ने अपने सम्मान लौटा कर असहिष्णुता और नफरत की राजनीति के प्रति विरोध प्रकट किया है. यह उनका अधिकार है. सम्मान लौटाना देश का अपमान कतई नहीं है. ये कहना भी सही नहीं है फलां समय में सम्मान क्यों नहीं लौटाये. फलां समय पर विरोध क्यों नहीं किया. अापातकाल हो या दिल्ली दंगा हमेशा साहित्यकारों, पत्रकारों, कलाकारों, रंगकर्मियों ने अपना विरोध दर्ज किया है. साहित्यकारों, वैज्ञानिकों, फिल्मकारों आदि द्वारा सम्मान लौटाने को सलाम किया जाना चाहिए. संस्कृतिकर्मी, परिधि

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