भागलपुर/सुपौल: राज्य खाद्य निगम, जिला प्रशासन, आपूर्ति विभाग और मिल मालिकों द्वारा मिल कर गरीबों के निवाले को डकारने का खुलासा सूचना अधिकार से मिले तथ्यों के आधार पर हुआ है.
मामला वर्ष 2011-12 में एसएफसी द्वारा धान के बदले चावल की प्राप्ति से जुड़ा हुआ है. निर्धारित चावल की मात्र से कम वापसी कर 15 मिल मालिकों ने कुल 18 करोड़ 29 लाख दो हजार 794 रुपये का चूना राज्य सरकार को लगाया है. अब जबकि मामला उजागर हो चुका है तो कार्रवाई के नाम पर जिला प्रशासन द्वारा खानापूर्ति की जा रही है. पब्लिक विजिलेंस कमेटी के सचिव अनिल कुमार सिंह ने राज्य सरकार के आला अधिकारियों को पत्र लिख कर करोड़ों के गबन की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है. उन्होंने इसका खुलासा सूचना के अधिकार से प्राप्त जानकारी के आधार पर किया है.
कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति
करोड़ों के गबन के बाद अब एसएफसी द्वारा गबन के जिम्मेवार राइस मिल मालिकों के विरुद्ध सर्टिफिकेट केस किया जा रहा है. अब तक 09 मिल मालिकों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज हो चुका है और 06 के विरुद्ध प्रक्रिया जारी है. जानकार बतलाते हैं कि सर्टिफिकेट केस महज खानापूर्ति है. अमूमन गबन के मामले में आपराधिक मुकदमा दर्ज होना चाहिए. ऐसी चर्चा है कि चूकि इस लूट में कई बड़े रसूखदार अधिकारी शामिल हैं, इसलिए कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है.
गरीबों के लिए पीडीएस को मिलना था चावल
यह मामला सीधा-सीधा गरीबों की हकमारी से जुड़ा है. योजनानुसार, वर्ष 2011-12 में धान अधिप्राप्ति से हासिल धानों को एसएफसी द्वारा चावल मिलों को दिया गया. इकरारनामा के अनुसार, धान के बदले मिल मालिकों को 67 फीसदी चावल एफसीआई को लौटाना था. प्राप्त चावल एफसीआई एसएफसी को लौटाती जिसे गरीबों के बीच वितरण के लिए जनवितरण प्रणाली को दिया जाना था. लेकिन जिन 19 मिलों को धान दिया गया, उसमें से 04 को छोड़ कर 15 मिल मालिकों ने लूट में हिस्सा लिया. यह सब अधिकारियों की नजर के सामने होता रहा और तमाम जिम्मेवार लोग मूकदर्शक बने रहे.