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इनसे गंगा कछार में फैलता है उजास

इनसे गंगा कछार में फैलता है उजासइंट्रो : रात अंधेरा हो, तो जुगुनू का टिमटिमाना भी राहत देता है. गंगा कछार में वर्षों से पिछड़ापन का अंधेरा कायम रहा है. इस अंधेरे में अकेले ही उम्मीद का उजास फैलाते रहे हैं राम किशोर जी. वे गंगा कछार के दर्द को जीते हैं. लेखन के साथ […]

इनसे गंगा कछार में फैलता है उजासइंट्रो : रात अंधेरा हो, तो जुगुनू का टिमटिमाना भी राहत देता है. गंगा कछार में वर्षों से पिछड़ापन का अंधेरा कायम रहा है. इस अंधेरे में अकेले ही उम्मीद का उजास फैलाते रहे हैं राम किशोर जी. वे गंगा कछार के दर्द को जीते हैं. लेखन के साथ आंदोलन में भी बराबर की हिस्सेदारी करते रहे हैं. वे ऐसे लेखक हैं, जो लेखन की कोठरी से कछार-खलिहान तक अधिकार को आवाज देते हैं. उनकी एक हांक पर हजारों मुट्ठियां तन जाया करती हैं. वे कहते हैं- मन को कोई संवेदनात्मक बातें बेहद कुरेदने लगती है, तो कलम हाथ में ले लेता हूं और जब अन्याय बरदाश्त नहीं होता, तो आंदोलन को प्रेरित होता हूं. वे गंगा कछार के बारे में कहते हैं कि यहां कब कौन राजा हो जायेगा, कब कौन मजदूर यह गंगा मैया ही कह सकती है. शरीर साथ नहीं दे रहा, फिर भी वे लेखन व आंदोलन से गंगा कछार में उजास फैलाने में लगे हैं. संजीव, भागलपुरगंगा के कछार (दियारा) में तब जमींदारों की चलती थी, आज प्रभावशाली लोग या यूं कहिए दबंगों का वर्चस्व है. गरीबों की जमीनें तब भी छिनती थी, आज भी छोड़ी नहीं जाती. पहले दियारा में लाठीबाज होते थे, बाद के दिनों में बंदूकधारी उभर आये. गरीबों की इस पीड़ा को आखिर कब तक बरदाश्त करते राम किशोर जी. गुलाम भारत में पहली जनवरी 1947 को जन्मे राम किशोर बताते हैं कि दियारा में आज भी विकास की किरणें नहीं पहुंची हैं. छोटे-छोटे किसानों के साथ रहता था. किसानों के दर्द को नजदीक से महसूस किया और जब यह अंदर से झकझोरने लगा, तो कलम उठा ली. कविता लिखी. नाटक लिख कर दियारा में मंचन भी कराया. कहानियां लिखी. कई पांडुलिपियां गांव में लगी आग में जल गयीं, पर लेखन कार्य आगे बढ़ाता रहा. फिर महसूस होने लगा कि केवल कलम से इस संघर्ष को नहीं जीता जा सकता, तो आंदोलन शुरू किया. जेपी आंदोलन का प्रहरी बना. गंगा क्षेत्र में दियारा गंगा मुक्ति आंदोलन चलाया. किसान संघर्ष मोरचा के लिए काम किया. कहते हैं राजनीतिक लोग आंदोलन को पनपने नहीं देते. क्योंकि आंदोलन उनके खिलाफ में चला जायेगा. खुद की इतनी उम्र हो गयी कि अब ज्यादा चलते हैं, तो बीमार हो जाते हैं. चिकित्सक व बच्चे आराम करने पर जोर देते हैं. दुख है कि जमींदारों से किसानों को जमीन तो मिल गयी, पर सरकार के नाम से निबंधित जमीन पर हक नहीं मिल पाया है. दियारा में आज भी सड़कें नहीं हैं, स्कूल का अभाव है और अस्पताल के लिए सपना देखिये. वे मानते हैं कि शिक्षा के लिए दियारा में लोगों को जागरूक करने की जरूरत है. परिचय :नाम : राम किशोरजन्म : 1 जनवरी, 1947, गांव-शंकरपुर चौअनियां दियारा, भागलपुर प्रकाशित कृति : बलिदान, बबूल के फूल, धुएं की आवाज, गंगा की कोख (सभी कहानी/कथा संकलन), उपन्यास गंगा कछार, गंगोत्री व जह्नु संदेश में संपादन सहयोग, धूप के पत्ते के संस्थापक संपादक आदि.सम्मान : बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना द्वारा साहित्य सेवा सम्मान, अखिल भारती अंगिका साहित्य विकास परिषद, भागलपुर से प्रेमचंद कथा सम्राट सम्मान, अखिल भारतीय जह्नु विचार एवं विकास मंच, पटना से फणीश्वर रेणु सम्मान के अलावा कई अन्य सम्मान भी.

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