…ताकि फिर कचरा न उठाये इस बस्ती के बच्चे

…ताकि फिर कचरा न उठाये इस बस्ती के बच्चेशख्सीयत -जापान जाकर ससुराल में बसी भागलपुर की बेटी मायका नहीं भूली-पति संग भागलपुर की दो झोपड़पट्टियों में अभिभावक को बांस, बच्चे को दिला रही शिक्षाफोटो : विद्यासागरसंजीव, भागलपुरकरीब पांच वर्ष पूर्व जापान के टोक्यो निवासी पति सिया ओकावा के संग अपने मायका भागलपुर के मिरजानहाट आयी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 15, 2015 6:36 PM

…ताकि फिर कचरा न उठाये इस बस्ती के बच्चेशख्सीयत -जापान जाकर ससुराल में बसी भागलपुर की बेटी मायका नहीं भूली-पति संग भागलपुर की दो झोपड़पट्टियों में अभिभावक को बांस, बच्चे को दिला रही शिक्षाफोटो : विद्यासागरसंजीव, भागलपुरकरीब पांच वर्ष पूर्व जापान के टोक्यो निवासी पति सिया ओकावा के संग अपने मायका भागलपुर के मिरजानहाट आयी थीं नरेश प्रसाद साह की बेटी रौनक. घर के बगल में नालियों में बोतल चुनते और उसे बोरे में रखते बच्चों को देख सिया ओकावा को अजीब लगा. पत्नी को उन बच्चों से पूछने कहा कि आखिर वह स्कूल क्यों नहीं जाते और कचरे चुनने की क्या मजबूरी है. रौनक भागलपुर की ही रहनेवाली थीं. वह उन बच्चों के बारे में तो जानती ही थी. उन्होंने उन बच्चों की परेशानी बतायी. उसी दौरान इस दंपती ने ऐसे बच्चों व उनके परिवार का उत्थान करने का निर्णय लिया. पिछले तीन महीने से इशाकचक बुढ़िया काली स्थान के समीप स्थित झोपड़पट्टी के पांच और नाथनगर के ललमटिया चौक स्थित झोपड़पट्टी के तीन परिवार के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं. जो कमाते हैं, उससे बचा कर करते हैं समाजसेवारौनक बताती हैं कि उनका ससुराल जापान के टोक्यो में है. पति ओकावा एक कॉल सेंटर के लिए सेल्स मार्केटिंग का काम करते हैं और खुद एक रेस्टोरेंट में पार्ट टाइम जॉब करती हैं. वह अपनी कमाई से समाजसेवा के लिए बचत करते हैं और फिर ऐसे परिवार पर खर्च करते हैं. यह दंपति हीलिंग द वर्ल्ड एनजीओ चलाते हैं. भागलपुर से पहले मदगास्कर में गरीबों के लिए और नेपाल में हाल ही में आये भूकंप पीड़ितों के लिए मदद के हाथ बढ़ा चुके हैं. भागलपुर में उन्हें परिधि संस्था सहयोग करती है.जिस हाथ में थे कचरे के बोरे, आज रहता है किताबों का बैग इशाकचक बुढ़िया काली स्थान के समीप स्थित झोपड़पट्टी के पांच परिवार के 11 बच्चों में कई बच्चे ऐसे थे, जो पहले कचरा चुनने का काम करते थे. पिछले तीन माह से वे प्राथमिक विद्यालय मुंदीचक के नियमित विद्यार्थी हैं. नाथनगर के ललमटिया चौक स्थित झोपड़पट्टी के तीन परिवार के सात बच्चे भी समीप के सरकारी स्कूल में नियमित रूप से जाने लगे हैं. रौनक कहती हैं कि इन बच्चों की पढ़ाई की हर दिन की प्रगति रिपोर्ट वह जापान से इंटरनेट के माध्यम से देखा करती हैं. कुछ दिन बाद ही लगा कि पढ़ाई अच्छी नहीं हो रही है, तो ट्यूशन के लिए एक टीचर दोनों जगहों के लिए रख दिया, जो माह में 20 दिन पढ़ाते हैं. शिक्षक पर चार हजार रुपये प्रतिमाह खर्च होता है. धीरे-धीरे प्रोजेक्ट को बढ़ाने की योजना है. इशाकचक झोपड़पट्टी में रहनेवाली बेबी देवी, सरिता देवी, रिंकू देवी को हस्ताक्षर करना नहीं आता, लेकिन बच्चे को पढ़ता देख खुश हैं. प्रत्येक परिवार को हर माह 10-10 बांस (सूप, डलिया बनाने के लिए) उपलब्ध कराती हैं ताकि आर्थिक बोझ न पड़े और वह बच्चों को काम में न लगाये.जापान में शादी की रोचक है घटनारौनक सरयूदेवी मोहनलाल बालिका उच्च विद्यालय से 10वीं और एसएम कॉलेज से 12वीं के बाद ओएमएसपी से ग्रेजुएशन की. इसके बाद पीजी की पढ़ाई के दौरान अमूर्त इंटरनेशनल एनजीओ से जुड़ी. वर्ष 2004 में सूनामी पीड़ितों की सहायता के लिए एनजीओ की ओर से श्रीलंका चली गयीं. वहां एनजीओ के लिए काम करने आये जापान के सिया ओकावा से मुलाकात हुई और धीरे-धीरे शादी की बात हो गयी. रौनक बताती हैं कि घरवाले इस शादी के लिए इसलिए तैयार नहीं थे कि कहीं बाद में सिया उसे छोड़ न दे, लेकिन रौनक ने भारत में भी कई शादियां टूटने का हवाला दिया. मामा का साथ मिला और जापान में जाकर शादी की. बाद में घर में भी शादी हुई. रौनक को चार साल का एक बेटा है सेइचरो. जैपनीज शब्द सेइचरो का अर्थ इकलौता होता है. सेइचरो डेढ़ साल की उम्र से अपने ननिहाल में ही रहता है.

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