बच्चों को पढ़ाने से पहले टटोल लें अपनी जेब
बच्चों को पढ़ाने से पहले टटोल लें अपनी जेबदिल की बातनिशि रंजन भागलपुर एक एजुकेशन हब के रूप में जाना जाता है. यहां कई अच्छे स्कूल, कॉलेज और शिक्षण संस्थान हैं. सिर्फ यहीं के नहीं, आसपास के शहर से हजारों छात्र प्रतिवर्ष यहां बेहतर शिक्षा के लिए आते हैं. सिर्फ कोचिंग संस्थानों की बात करें, […]
बच्चों को पढ़ाने से पहले टटोल लें अपनी जेबदिल की बातनिशि रंजन भागलपुर एक एजुकेशन हब के रूप में जाना जाता है. यहां कई अच्छे स्कूल, कॉलेज और शिक्षण संस्थान हैं. सिर्फ यहीं के नहीं, आसपास के शहर से हजारों छात्र प्रतिवर्ष यहां बेहतर शिक्षा के लिए आते हैं. सिर्फ कोचिंग संस्थानों की बात करें, तो एक अनुमान के मुताबिक यहां केवल कोचिंग संस्थानों का प्रतिवर्ष दो अरब रुपये का कारोबार है. यहां के छात्र मेडिकल, इंजीनियरिंग सहित प्रतिष्ठित परीक्षाओं में सफल भी हो रहे हैं. यह एक बड़ा लुभावना व आकर्षक दृश्य है. अब एक दूसरी तसवीर. शहर में अच्छे स्कूलों में बच्चों के एडमिशन के लिए अभिभावक महीनों पहले से तैयारी शुरू कर देते हैं. नामांकन फॉर्म या इंटरव्यू के दिन स्कूल में लंबी कतार लगी होती है. जिसका नामांकन हुआ लकी माना जाता है. नर्सरी के एडमिशन से शुरू पढ़ाई का यह खर्च क्रमश: बढ़ता जाता है. एक बच्चा नर्सरी से कोचिंग तक होते हुए अगर मेडिकल या इंजीनियरिंग कॉलेज तक पहुंचे, इस खर्च को वहन कर पाना एक औसत दर्जे के आमदनी वाले अभिभावक के लिए संभव है क्या. इस विचारणीय प्रश्न को अभी यहीं छोड़ते हैं. ग्रामीण इलाके के कुछ एेसे अभिभावकों से मिला, जिनके पास महज दो से तीन बीघे जमीन थे. लेकिन उन्होंने अपनी दो बीघे तक बेच दी थी या सूदभरना पर लगा दिया था. यह पैसा वे बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर रहे हैं. शिक्षा का एक विकल्प सरकारी स्कूल भी हैं. यहां भी बच्चों का नामांकन होता है. लेकिन यहां कभी नामांकन के लिए अभिभावकों की कतार नहीं लगती. पूरे जिले में ऐसे कई नामचीन हाइस्कूल हैं, जहां एक समय इसी तरह नामांकन के लिए छात्रों की कतार लगती थी. यहां के छात्र इंजीनियर-डॉक्टर बनते थे, वह भी बिना कोचिंग के. यह बहुत दिन पहले की बात नहीं है. शहर के एक प्रतिष्ठित हाइस्कूल के बारे में एक सज्जन ने बताया कि 30 से अधिक डॉक्टर इसी स्कूल के छात्र रहे हैं. लेकिन अचानक से क्या हो गया कि पूरा दृश्य ही बदल गया है.