उल्लास से चौंकता है सन्नाटादिल की बातनिशि रंजनयह एक अच्छी सुबह थी. कोहरे में लिपटी हुई सुबह में भी एक ताजगी थी. ज्यों-ज्यों दिन चढ़ा, मौसम और भी खुशनुमा होता गया. गुनगुनी नरम धूप की बात ही कुछ और थी. पूरा शहर खूबसूरत लग रहा था. लोगों का उत्साह दिख रहा था. सामान्य लोग भी अच्छे ड्रेस में घर के बाहर घूम रहे थे. कोई मंदिर जा रहा था तो कोई पिकनिक मनाने. मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ थी. पिकनिक स्पॉटों पर लोगों का जमावड़ा था. गंगा घाट पर लोग ठंड के बावजूद गंगा स्नान कर रहे थे. कई जगहों पर मेला लगा था. हर वय के लोगों में एक अलग सा उमंग दिख रहा था. यह 2016 की पहली जनवरी की सुबह थी. इसके एक दिन पहले और एक दिन बाद की सुबह भी मैंने देखी. इस तरह की सामान्य सुबह देखने के बाद कुछ भी खास एहसास नहीं होता. पहली जनवरी की सुबह की खास बात थी उसका उल्लास, उमंग. एक पैटर्न पर चलती जिंदगी में एक खामोशी का एहसास होने लगता. जीवन की एकरसता कहीं न कहीं ऊब पैदा करती है. कई खुशियां एक-एक कर छूट जाती हैं. रोज सुबह सूरज निकलता है. चिड़िया चहचहाती है. फूल खिलते हैं. हमें इसका पता तक नहीं चलता है. लेकिन मात्र एक चीज उत्साह-उमंग आ जाये जीवन में तो पूरी दुनिया ही खूबसूरत दिखने लगती है. उत्साह से हमारे जीवन का सन्नाटा चौंकता है. इतनी कीमती चीज को कितने सस्ते में हमने कहां गिरवी रख दिया है. खैर यह तो आत्मविश्लेषण का सवाल है. फिलहाल यही दुआ कि यह उमंग-उत्साह बना रहे. हर सुबह, पहली जनवरी की सुबह की तरह हो. उत्साह से लबरेज, उमंग से भरा.
उल्लास से चौंकता है सन्नाटा
उल्लास से चौंकता है सन्नाटादिल की बातनिशि रंजनयह एक अच्छी सुबह थी. कोहरे में लिपटी हुई सुबह में भी एक ताजगी थी. ज्यों-ज्यों दिन चढ़ा, मौसम और भी खुशनुमा होता गया. गुनगुनी नरम धूप की बात ही कुछ और थी. पूरा शहर खूबसूरत लग रहा था. लोगों का उत्साह दिख रहा था. सामान्य लोग भी […]
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