कहोल ऋषि व अष्टावक्र की तपोभूमि में ही बने

कहोल ऋषि व अष्टावक्र की तपोभूमि में ही बनेकेंद्रीय विश्वविधालयप्रदीप विद्रोही, कहलगांवकहते हैं इतिहास खुद को दुहराता है. इतिहास को दोहराने में अड़चन नहीं डालना चाहिए. विक्रमशिला केंद्रीय विश्वविधालय की स्थापना को लेकर केंद्र सरकार की पहल से विक्रमशिला का इतिहास दोहराने को आतुर हो उठा है. बिना राजनीतक भेदभाव के राज्य सरकार को भी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 16, 2016 9:57 PM

कहोल ऋषि व अष्टावक्र की तपोभूमि में ही बनेकेंद्रीय विश्वविधालयप्रदीप विद्रोही, कहलगांवकहते हैं इतिहास खुद को दुहराता है. इतिहास को दोहराने में अड़चन नहीं डालना चाहिए. विक्रमशिला केंद्रीय विश्वविधालय की स्थापना को लेकर केंद्र सरकार की पहल से विक्रमशिला का इतिहास दोहराने को आतुर हो उठा है. बिना राजनीतक भेदभाव के राज्य सरकार को भी पहल करनी चाहिए. निर्माण कार्य खुदाई स्थल के आसपास ही हो. यह उद्गार कहलगांव के प्रबुद्ध नागरिकों का है.कहलगांव स्थित संत जोसफ स्कूल के शिक्षक डॉ जयप्रकाश तृषित की राय है कि इसकी स्थापना खुदाई स्थल के आसपास होने से तपोस्थली के ताप का पावन, प्रभाव शिक्षक व विधार्थी दोनों पर होगा. अन्यत्र स्थापना से ऐतिहासिक विक्रमशिला के अतीत की उपेक्षा होगी. साथ ही कर्म, ज्ञान, दान स्थल को ठेस पहुंचेगा. खुदाई स्थल के आसपास विवि के निर्माण से इसके महत्व व गौरव में चार चांद लगेगा. उपेक्षित बियाडा की जमीन पर शिक्षा के मंदिर का विरोध भू स्वामी हरगिज नहीं करेंगे.शहर के ही वयोवृद्ध आयुर्वेद चिकित्सक डॉ शंकर नारायण मिश्र ने कहा कि विक्रमशिला केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना हर हाल में खुदाई स्थल के ही निकट हो. एेतिहासिक विक्रमशिला व कहलगांव ऋषि मुनियों की कर्म व ज्ञान स्थली रही है. यह धरती प्रभु राम के गुरु वशिष्ठ मुनि की भी कर्मस्थली रही है. वशिष्ठ मुनि द्वारा ही बाबा बटेश्वर मंदिर के शिवलिंग की स्थापना पुराणों में वर्णित है. जाने माने चिकित्सक व लायंस क्लब के पूर्व अध्यक्ष डॉ संजय कुमार सिंह का कहना है कि बिना राजनितिक भेदभाव के विक्रमशिला केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना खुदाई स्थल के ही नजदीक हो. इससे एेतिहासिक विक्रमशिला का गौरव लौटेगा. इसके लिए आमजनों को भी सहयोग करना चाहिए. इतिहास के प्रोफेसर डॉ पुष्कर चौधरी ने कहा कि पूर्व में यह भूमि परम ब्रह्म की भूमि रही है. गुरु वशिष्ठ मुनि की धरती पर एेतिहासिक विक्रमशिला का सिसकना खत्म होना चाहिए. इससे एेतिहासिक विक्रमशिला की उपेक्षा दूर होगी. हर हाल में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना खुदाई स्थल के आसपास ही हो.

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