फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना में नेताजी आये थे भागलपुर
भागलपुर: अंग्रेजों की नींद हराम करनेवाले सुभाष चंद्र बोस का भागलपुर से विशेष जुड़ाव था. फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की तैयारी में जुटे सुभाष चंद्र बोस न केवल भागलपुर आये थे बल्कि अपने सहयोगियों से विचार-विमर्श भी किया था. 24 घंटे के भागलपुर प्रवास के दौरान उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ यहां आगे की रणनीति […]
भागलपुर: अंग्रेजों की नींद हराम करनेवाले सुभाष चंद्र बोस का भागलपुर से विशेष जुड़ाव था. फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की तैयारी में जुटे सुभाष चंद्र बोस न केवल भागलपुर आये थे बल्कि अपने सहयोगियों से विचार-विमर्श भी किया था. 24 घंटे के भागलपुर प्रवास के दौरान उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ यहां आगे की रणनीति तैयार की थी. इस दौरान उन्होंने भागलपुर में जनसभा कर लोगों को स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में तन-मन-धन से भाग लेने का आह्वान किया था.
नेताजी के संबंधी एवं बिहार बंगाली समिति, भागलपुर शाखा के सचिव निरुपम कांति पाल ने बताया कि ढेबर गेट समीप खरमनचक स्थित नेताजी के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस के ससुराल अर्थात मेरे घर से लाजपत पार्क मैदान में आयोजित जनसभा तक पहुंचे तो यहां की जनता उनके सादगी से खासा प्रभावित हुई. यहां पर उन्होंने जनता को आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए संबोधित किया. भागलपुर में रहने वाले दूसरे संबंधी अरुणाभ बोस ने बताया कि 1941 में कांग्रेस छोड़ फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी बनाने की चाहत में भागलपुर आये थे. भागलपुर आने के क्रम में ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस के कट्टर समर्थक अरविंद मुखर्जी उर्फ बुलु दा के साथ बैठ कर देश की आजादी की लड़ाई को लेकर रणनीति तैयार की थी. आज भी यहां पर रहे संबंधी उनके हरेक चिन्ह संजोये रखे हैं.
नेताजी के बड़े भाई के पोता सोमनाथ बोस से विशेष बातचीत
नेताजी से संबंधित जानकारी को सार्वजनिक कराने के मामले को लेकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस के पोता सोमनाथ बोस दिल्ली गये हैं. वहां से उन्होंने फोन पर बताया कि अभी तक उनके बारे में कई बातें अंधेरे में है. इन मामलों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वह तीसरी बार मुलाकात करेंगे. उन्होंने कहा कि आज तक किसी को मालूम नहीं है कि उन्हें क्या हुआ था. पहले तो भारत आजाद होने के बाद सरकार ने कहा कि ताइवान के ताइओको में हवाई दुर्घटना में मौत हो गयी. सबसे पहले शाहनवाज कमीशन गठित की गयी.
इसके बाद खोसला कमिशन दोनों की रिपोर्ट गलत साबित हुई. उन्हें ढूंढ़ने में खुद दादा सुरेश चंद्र बोस इधर-उधर हाथ-पैर मारते रहे. 1999 में अटल बिहारी सरकार ने मुखर्जी कमीशन बनायी. 2005 में रिपोर्ट दाखिल की गयी, जिसमें बताया कि दुर्घटना हुई ही नहीं थी. लगातार कोई वियतनाम, कोई रुस, कोई गुमनामी बाबा की बात कर रहे हैं. जबकि सरकार के पास सब कुछ मौजूद था. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मदद कर रहे हैं और वे रुस, जापान, ब्रिटेन, चीन आदि देश में पत्र भेज कर हरेक प्रकार की जानकारी एकत्र करा रहे हैं.